History of Indian Currency: आज के समय हम खरीददारी करने के लिए रुपए का इस्तेमाल करते हैं लेकिन हमारे पूर्वज कौड़ी, पाई का इस्तेमाल करते थे। कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि ‘मेरे पास एक फूटी कौड़ी नहीं है’ या ‘पाई पाई का हिसाब लिया जाएगा’ लेकिन क्या आपने ‘कौड़ी या पाई’ देखी है? चलिए आज हम ‘पाई और कौड़ी’ समेत उन मुद्राओं के बारे में बात करते हैं, जिनका हमारे पूर्वज इस्तेमाल करते थे।
फूटी कौड़ी की कीमत?
प्राचीन काल में भारत में पैसे के तौर पर ‘कौड़ी’ का इस्तेमाल किया जाता था। इसी से लेनदेन होता था। तीन फूटी कौड़ी मिलकर एक साबुत कौड़ी बनती थी। 10 कौड़ी मिलाकर एक दमड़ी बनती थी। इसी तरह पाई का भी उपयोग पैसे के तौर पर होता था। पाई सबसे छोटी करेंसी हुआ करती थी।
10 कौड़ी की कीमत एक दमड़ी
भारत के आजाद होने के बाद आना और पैसे की शुरुआत हुई। इसके बाद एक पैसा, दो पैसा और पांच पैसे के सिक्के जारी किए गए। आपको जानकर हैरानी होगी कि 10 कौड़ी मिलकर एक दमड़ी बनती थी और दो दमड़ी मिलकर 1.5 पाई। 1.5 पाई मतलब एक धेला और 2 धेला एक पैसा के बराबर होता था।
5,275 फूटी कौड़ी एक रुपए के बराबर
3 पैसा मिलकर एक टका बनता था और 2 टका एक आना हुआ करता था। 4 आना मतलब चवन्नी, आठ आना मतलब अठन्नी हुआ करता था। इसी तरह सोलह आना मतलब एक रुपया हुआ करता था। इस तरह एक रुपया 5,275 ‘फूटी कौड़ियों’ के बराबर था, जो छोटी समुद्री सीपियां हुआ करती थीं। इसके अलावा ‘पाई’, ‘ढेला’, ‘पैसा’, ‘टका’, ‘आना’, ‘दोवन्नी’, ‘चवन्नी’ और ‘रुपया’ सिक्के हुआ करते थे।
मुद्राओं से बनीं कहावतें
कहा जाता है कि साल 1540 से 1545 के बीच जब शेरशाह सूरी का शासन था, तब पहली बार रुपए शब्द का प्रयोग हुआ। मुद्राओं से कई कहावतें भी बनी हैं, जैसे
जेब फूटी कौड़ी है नहीं है और चले आए।
एक एक पाई का हिसाब लूंगा
सोलह आने सच