Varanasi News: वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर हाल ही में एक भावुक और विलक्षण दृश्य देखने को मिला। एक मुस्लिम महिला ने वैदिक विधि-विधान से सनातन धर्म को अपनाया। यह महिला हैं 49 वर्षीय अंबिया बानो, जो अब अंबिया माला के नाम से जानी जाएंगी। मूल रूप से बांग्लादेश की निवासी अंबिया लंदन में पली-बढ़ीं, लेकिन उनका आत्मिक सफर उन्हें काशी की ओर ले आया।
संघर्षों से भरा जीवन
अंबिया का जीवन संघर्षों और मोड़ों से भरा रहा। उन्होंने युवावस्था में एक ईसाई युवक नेविल बॉर्न जूनियर से प्रेम विवाह किया। नेविल ने शादी के लिए इस्लाम धर्म अपना लिया था। दोनों का साथ लगभग दस वर्षों तक रहा, लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया। यही वह समय था जब अंबिया ने एक निर्णय लिया, जो उनके जीवन की दिशा बदल देगा।
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27 साल पहले गर्भपात करवाया था
करीब 27 साल पहले, पश्चिमी सोच और जीवनशैली से प्रभावित होकर उन्होंने गर्भपात करवाया। उस समय यह एक चॉइस जैसा लगा, लेकिन वर्षों बीतने के बाद यह निर्णय उनके जीवन का सबसे गहरा अपराधबोध बन गया। बार-बार उन्हें सपनों में एक छोटी बच्ची दिखाई देती थी, जो मुक्ति की गुहार लगाती थी। यह वही अजन्मी संतान थी, जिसे अंबिया ने जन्म लेने से पहले ही खो दिया था।
मोक्ष की तलाश ले आई वाराणसी
इस आत्मग्लानि और आध्यात्मिक बेचैनी ने उन्हें भारत आने को प्रेरित किया काशी, जहां मोक्ष की प्राप्ति संभव मानी जाती है। यहां आकर उन्होंने गहराई से आत्मचिंतन और शास्त्रों का अध्ययन किया। उन्हें समझ में आया कि गर्भस्थ शिशु भी एक जीवात्मा होता है, और उसकी हत्या भी एक महापाप है।
5 ब्राह्मणों ने करवाया पिंडदान संस्कार
पंडित रामकिशन पांडेय के मार्गदर्शन में अंबिया माला ने पंचगव्य से शुद्धिकरण कराया और पांच ब्राह्मणों की उपस्थिति में दशाश्वमेध घाट पर पिंडदान संस्कार किया अपनी अजन्मी संतान की आत्मा की शांति के लिए। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि उनके जीवन का नया अध्याय था।
क्या बोली अंबिया?
अंबिया माला कहती हैं, सनातन धर्म ने मुझे आत्मिक शांति दी। मुझे लगा कि सभी धर्मों की जड़ इसी में है। यह धर्म न केवल मोक्ष का मार्ग दिखाता है, बल्कि आत्मग्लानि से उबरने की शक्ति भी देता है।
आज अंबिया माला की यात्रा उन सभी के लिए एक सीख है, जो भौतिक सुखों की दौड़ में आत्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं। यह एक मां की ग्लानि से जन्मी, आस्था और मोक्ष की तलाश में गढ़ी गई प्रेरणादायक कथा है जो लंदन की गलियों से शुरू होकर काशी की शांति में समाप्त हुई।
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