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UP News: बनारसी पान और लंगड़ा आम को मिला GI टैग, जानिए इससे क्या होगा फायदा?

UP News: उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लिए आज का दिन काफी खास है। भारत सरकार की ओर से वाराणसी के तीन उत्पादों को जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) प्रदान किया है। इनमें बनासरी पान, लंगड़ा आम और रामनगर का भंता (बैगन) शामिल है। यानी कह सकते हैं कि फिल्म ‘डॉन’ में अमिताभ बच्चन ने […]

Edited By : Naresh Chaudhary | Updated: Apr 5, 2023 12:23
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UP News: Banarasi Paan and Langda Mango got GI tag, know what will be benefit of this?

UP News: उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लिए आज का दिन काफी खास है। भारत सरकार की ओर से वाराणसी के तीन उत्पादों को जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) प्रदान किया है। इनमें बनासरी पान, लंगड़ा आम और रामनगर का भंता (बैगन) शामिल है। यानी कह सकते हैं कि फिल्म ‘डॉन’ में अमिताभ बच्चन ने जिस बनारसी पान को खाया, उसे अब अपनी खास पहचान मिल गई है। कुछ समय पहले वाराणसी के पड़ोसी जिले चंदौली के खास चावल को भी यही टैग मिला था।

देश में 33 उत्पादों को एक साथ मिले टैग

जानकारी के मुताबिक जीआई रजिस्ट्री, चेन्नई की ओर से 31 मार्च को एक ही दिन में 33 उत्पादों को जीआई टैग के सर्टिफिकेट प्रदान किए गए हैं। इनमें 10 उत्पाद उत्तर प्रदेश के हैं, जिनमें से तीन अकेले वाराणसी से हैं। बताया गया है कि अभी तक उत्तर प्रदेश में मिलने वाले 45 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इनमें से 20 उत्पाद पूर्वी यूपी के वाराणसी क्षेत्र के हैं।

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पान और आम के साथ ये खास बैगन भी जुड़ा

बनारस के पान और आम के अलावा प्रसिद्ध कृषि उत्पाद रामनगर भंता (बैंगन) को भी जीआई सर्टिफिकेट दिया गया है। पड़ोसी जिला चंदौली का अदमचीनी चावल (खास चावल) एक महीने पहले जीआई क्लब में शामिल हुआ था। वाराणसी को कृषि और बागवानी उत्पादों में जीआई टैग मिलना शुरू हो गया है।

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पीएम मोदी को दिया धन्यवाद

अब तक यह शहर मुख्य रूप से अपने जीआई-टैग वाले हथकरघा और हस्तकला के सामान के लिए जाना जाता था। जाने-माने जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री रजनीकांत ने बताया कि मैं प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करता हूं, जो वाराणसी के सांसद भी हैं। उन्होंने इसमें दिलचस्पी ली और पारंपरिक जीआई उत्पादों को बढ़ावा दिया।

नाबार्ड ने निभाई अहम भूमिका

रजनीकांत ने कहा कि उनकी प्रेरणा से आत्मनिर्भर भारत अभियान में जीआई सामान स्थानीय से वैश्विक स्तर की ओर जा रहा है। देश अपनी विरासत को दुनिया भर में प्रदर्शित कर रहा है। नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड), लखनऊ ने जीआई प्रमाणन प्राप्त करने के लिए स्थानीय उत्पादों का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि पोस्ट जीआई पहल नाबार्ड की मदद से जल्द ही शुरू होगी।

25 हजार करोड़ रुपये का होता है कारोबार

उन्होंने दावा किया कि लगभग 20 लाख लोग वाराणसी और पूर्वी यूपी में जीआई सामानों के उत्पादन में लगे हुए हैं। इससे लगभग 25,500 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार होता है। नाबार्ड वाराणसी के एजीएम अनुज कुमार सिंह ने बताया कि ग्रामीण बैंक जीआई टैग प्राप्त करने के लिए पारंपरिक उत्पादों को बढ़ावा देना जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि हम जीआई उत्पादों को और बढ़ावा देने के लिए नई पहल और योजनाएं शुरू करेंगे।

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वाराणसी के कुछ प्रमुख जीआई-टैग किए गए सामान

बनारस ब्रोकेड और साड़ियां: बनारस ब्रोकेड और साड़ियों की विशेषताएं जटिल पुष्प और पत्तेदार डिजाइन, बुनाई और मीना वर्क हैं। विभिन्न पारंपरिक प्रकार की साड़ियां जैसे जामदानी, जांगला, जामवार, तनचोई, टिश्यू, कटवर्क, बुटीदार, सिफॉन बहुत लोकप्रिय हैं।

बनारस गुलाबी मीनाकारी शिल्प: गुलाबी मीनाकारी (गुलाबी मीनाकारी) मुगल काल के दौरान 17वीं शताब्दी में फारसियों द्वारा भारत लाया गया था। बनारस की खासियत सफेद मीनाकारी पर गुलाबी मीना है। अक्सर कमल की आकृति का काम करती है।

वाराणसी सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क: जाली या फ्रेटवर्क को सॉफ्ट स्टोन (मोनोलिथिक और बिना किसी जोड़ के) पर जटिल रूप से उकेरा गया है। इसकी प्रक्रिया के लिए चिनाई और डिजाइन बनाने के लिए महारत की आवश्यकता होती है। वाराणसी की जाली का काम काफी कौशल का प्रतीक है।

वाराणसी लकड़ी के लाख के बर्तन और खिलौने: वाराणसी व मिर्जापुर अपने लकड़ी के लाख के बर्तन और लकड़ी के खिलौनों के लिए प्रसिद्ध हैं। यह एक प्राचीन शिल्प है और वाराणसी इसका एक प्रमुख केंद्र रहा है। ये खिलौने बिना किसी जोड़ के बनाए जाते हैं।

बनारस मेटल रिपोसे शिल्प: वाराणसी में यह कला मुख्य रूप से कसेरा समुदाय द्वारा प्रचलित है। रेपोज तकनीक को कभी-कभी पीछा करना या एम्बॉसिंग (खल-उभर का काम) कहा जाता है। पुरानी वाराणसी की गलियों में यह कला पीढ़ियों से संरक्षित है।

वाराणसी ग्लास बीड्स: यह शिल्प पूर्ण हस्तकला है, क्योंकि इसमें उपकरणों का काफी कम हस्तक्षेप होता है। शिल्प कौशल ज्यादातर मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती है। वाराणसी में मनका उत्पादन और हस्तशिल्प में 2,000 से अधिक कारीगर शामिल हैं।

क्या होता है जीआई टैग

जीआई टैग का पूरा नाम है Geographical Indication Tag. हिंदी में कहें तो भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग। इसका मतलब है कि एक ऐसा उत्पाद, जिसकी खुद की एक भौगोलिक पहचान है। यानी जिस उत्पाद को सरकार की ओर से जीआई टैग मिलता है उस पर प्रमाणीकता की मुहर लग जाती है। विदेशों में उत्पाद के निर्यात पर भी इसका काफी लाभ होता है।

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Written By

Naresh Chaudhary

Edited By

Manish Shukla

First published on: Apr 04, 2023 06:23 PM

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