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‘1956 से पहले हुई पिता की मौत तो बेटी नहीं मांग सकती हिस्सा…’, संपत्ति विवाद में बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

Bombay High Court News: संपत्ति विवाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जस्टिस एएस चंदुरकर और जितेंद्र जैन की पीठ ने कहा कि अगर पिता की मौत हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने से पहले हुई है तो बेटियों को संपत्ति में उत्तराधिकारी नहीं माना जा सकता। विस्तार से मामले के बारे में जानते हैं।

Edited By : Parmod chaudhary | Updated: Nov 13, 2024 22:14
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Bombay High Court

Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने संपत्ति विवाद से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायालय ने कहा कि अगर पिता की मौत हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने से पहले हो चुकी है। अगर मृतक अपने पीछे बेटी और विधवा दोनों को छोड़कर गया है तो बेटी को प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं मिलेगा। बेटी को पूर्ण और सीमित उत्तराधिकारी नहीं माना जा सकता। जस्टिस जितेंद्र जैन और एएस चंदुरकर की पीठ ने विवाद को लेकर फैसला सुनाया। 2007 में इस मामले को लेकर दो एकल न्यायाधीशों की पीठों के अलग-अलग विचार सामने आने के बाद केस खंडपीठ को ट्रांसफर किया गया था। खंडपीठ से यह तय करने की मांग की गई थी कि क्या बेटी को अपने पिता की संपत्ति में कोई हक मिल सकता है?

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वकीलों ने दिए ये तर्क

बेटी के वकीलों का तर्क था कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत बेटियों को भी उत्तराधिकारी माना जाना चाहिए। 1937 के अधिनियम के अनुसार बेटी को बेटे के बराबर माना जाना चाहिए। 2005 में भी एक संशोधन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में किया जा चुका है। लेकिन दूसरी शादी से हुई बेटी के वकील ने हवाला दिया कि उसकी मां को पूरी संपत्ति विरासत में मिली है। पिता की मौत 1956 से पहले हुई है। इसलिए उसका ही पूरी संपत्ति पर अधिकार है। 1937 के अधिनियम में सिर्फ बेटों का उल्लेख है, बेटियों का नहीं। अब फिर से यह केस अपील के शेष गुण-दोष पर निर्णय के लिए एकल न्यायाधीश को ट्रांसफर किया गया है।

ये था पूरा मामला

मामला एक पारिवारिक विवाद से जुड़ा है। एक ऐसे शख्स की मौत के बाद केस शुरू हुआ था, जिसकी दो बीवियां थीं। पहली शादी से दो और दूसरी शादी से एक बेटी थी। पहली पत्नी की मौत 1930 में हुई थी। जिसके बाद पति का निधन 10 जून 1952 को हुआ था। इससे पहले शख्स की एक बेटी का निधन भी 1949 में हुआ था, जो पहली पत्नी से थी। दूसरी पत्नी का देहांत 8 जुलाई 1973 को हो गया था।

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बेटी के पक्ष में दूसरी पत्नी 14 अगस्त 1956 को वसीयत छोड़कर गई थी। जिसके बाद पहली शादी से हुई दूसरी बेटी ने संपत्ति में आधा हिस्सा मांगते हुए कोर्ट में केस दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने दावा खारिज किया था। न्यायालय ने कहा था कि मृतक की पहली पत्नी को हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम 1937 के तहत पूरी प्रॉपर्टी मिली है। 1956 के अधिनियम के बाद भी उसका संपत्ति पर पूरा हक है। इसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा था।

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Edited By

Parmod chaudhary

First published on: Nov 13, 2024 10:14 PM

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