MP Assembly Election: मध्य प्रदेश में सत्ता का किला फतह करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जीत की जमावट में जुटी हुई हैं। क्योंकि एमपी का इस बार का चुनाव बेहद खास होने वाला है, हर बार की तरह इस बार भी सियासत में आदिवासी वोटर्स बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले हैं। ऐसे में दोनों पार्टियों ने अभी से यहां फोकस बना रखा है।
2018 में अहम भूमिका में रहे आदिवासी
मध्य प्रदेश में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था, जिसके पीछे मुख्य रूप से आदिवासी वोटर्स का बीजेपी से दूरी बनाना बड़ा कारण था। यही वजह है कि आदिवासी वोटर्स को लेकर चुनावी साल में जमकर सियासत देखने को मिल रही है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस वोटर्स को अपना बता रहे हैं। बीजेपी जहां आदिवासियों के हित में किए कामों को बता रही है, तो वही कांग्रेस बीजेपी के इस दावे को झूठा बात रही है।
बीजेपी का पूरा फोकस
भारतीय जनता पार्टी ने मिशन 2023 को हासिल करने के लिए मिशन आदिवासी भी शुरू कर दिया है। बीजेपी के कद्दावर नेता आदिवासी जनजाति समाज के बीच सीधी पैठ बनाने के लिए उनके बीच पहुंच रहे हैं। कभी सूबे के मुखिया इस समुदाय के साथ बातचीत और नाचते गाते नजर आते हैं तो कभी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इनके बीच लोकगीत पर झूम रहे हैं। बीजेपी संगठन ने अपने विधायक, मंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को मिशन आदिवासी को हासिल करने उतार दिया है।
मंत्री ओपीएस भदौरिया का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी सभी धर्म समुदाय जाति के साथ खड़ी रहती है। खासकर आदिवासी वर्ग के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कई महत्वपूर्ण काम कर उनको सम्मान दिया है। जबकि कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के साथ हमेशा धोखा किया है।
कांग्रेस ने साधा निशाना
वहीं आदिवासियों को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर निशाना साध रही है। आदिवासियो को लेकर कांग्रेस का कहना है की जातिगत आधार पर प्रदेश और धर्म के आधार पर देश को बांटने का काम भारतीय जनता पार्टी कर रही है। आज बीजेपी पेसा एक्ट लागू करने की बात करती है और आदिवासियों के साथ अन्याय कर रही है। मध्य प्रदेश में आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार को देखते हुए प्रदेश की जनता सब समझ चुकी है, यही वजह है कि आज आदिवासियों के साथ ही हर वर्ग कांग्रेस के साथ खड़ा हुआ है।
एमपी में आदिवासी वोट बैंक की ताकत
- मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 2 करोड़ हैं।
- प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं।
- 100 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी वोटर्स हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं।
- प्रदेश की अन्य 35 विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं।
- -2018 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 30 सीट कॉंग्रेस ने जीती थी।
- 2018 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से महज 17 सीट ही बीजेपी जीत पाई थी।
- आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी।
- ऐसे में BJP और CONG दोनो ही इस वर्ग के बीच अपनी पैठ जमाते हुए सभी आदिवासी सीटों पर फोकस कर रही है।
दोनों पार्टियां आदिवासियों को लुभाने में जुटी
इन्ही मुख्य कारणों के चलते आदिवासी वोटरों को लुभाने में बीजेपी और कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। बीजेपी ने पेसा एक्ट लागू करने के साथ आदिवासी जननायकों का भी खूब महिमामंडन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी के कद्दावर नेता आदिवासियों के बीच पहुंच सीधा संवाद कर रहे हैं।
वहीं कांग्रेस भी आदिवासियों को अपनी ओर खींचने में जुट गई है। हाल ही में मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल महाकौशल क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी ने चुनावी आगाज कर दिया है। लेकिन इन सब कोशिशों के बाबजूद 2023 के चुनावी रण में जो भी खेमा आदिवासी वोटरों को साधने में कामयाब हुआ, उसके लिए “मिशन मध्य प्रदेश फतह” आसान हो जाएगा।
ग्वालियर से कर्ण मिश्रा की रिपोर्ट