Delhi NCR Landslide Due To Excessive Use Of Ground Water: दिल्ली-NCR में पानी की बर्बादी से जोशीमठ जैसा खतरा मंडरा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी और इसके आसपास के कई इलाकों में जमीन साल-दर-साल धीरे-धीरे खिसक रही है। ये जानकारी एक रिसर्च के स्टडी में सामने आई है, जिसे बुलेटिन ऑफ इंजीनियरिंग जियोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट में पब्लिश किया गया है। स्टडी के मुताबिक, दिल्ली-NCR में भू-धंसाव वाले दो इलाके प्रमुख हैं, इनके अलावा भी कुछ इलाके हैं, जहां की रिपोर्ट चौंकाने वाली है।
दरअलस, दिल्ली-NCR में पानी की बड़े पैमाने पर डिमांड है। पानी की जरूरतों को पूरा करने लिए बड़े पैमाने पर ग्राउंड वाटर का यूज किया जाता है। ग्राउंड वाटर का ज्यादा उपयोग दिल्ली-NCR के लिए खतरनाक हो सकता है। दरअसल, जमीन धंसने के कारणों पर किए गए रिसर्च में ये बात सामने आई है कि दिल्ली-NCR के दो ऐसे इलाके हैं, जो जमीन धंसने की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
इन दो इलाकों में जमीन धंसने की समस्या
दिल्ली-NCR के द्वारका, पालम और राज नगर (DPR) और कापसहेड़ा गुरुग्राम (KG), ऐसे क्षेत्र हैं, जो जमीन धंसने की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। रिसर्च की स्टडी के मुताबिक, DPR यानी द्वारका, पालम और राजनगर में जमीन धंसने का पहला मामला 2005-06 में सामने आया था।
रिसर्चर्स के मुताबिक, 2005 से सैटेलाइट्स के जरिए मिले फोटोज और उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों और ग्राउंड ऑबजर्वेशन के जरिए पता चला है कि 2005-06 के दौरान DPR में जमीन धंसने की दर करीब 3 सेंटीमीटर प्रति वर्ष थी, जो 2010-11 में बढ़कर 9 सेंटीमीटर तक पहुंच गई। हालांकि, 2014 के बाद से डीपीआर क्षेत्र में जमीन धंसने की दर में कमी आई है।
वहीं, कापसहेड़ा गुरुग्राम यानी KG में जमीन धंसने का पहला मामला 2008 में आया था। KG में 2008-09 में जमीन धंसने की दर पांच सेंटीमीटर प्रतिवर्ष थी, जो 2010-11 में बढ़कर करीब 8 सेंटीमीटर हो गई। दोनों ही इलाकों में रिसर्च के दौरान ग्राउंड वाटर के जमकर यूज के संकेत मिले हैं। कापसहेड़ा गुरुग्राम क्षेत्र में जमीन धंसने की दर में अभी भी बढ़ोतरी जारी है। ये फिलहाल 10 से 13 सेंटीमीटर प्रति वर्ष पहुंच गई है।
भू-धंसाव वाले नए इलाकों की भी पहचान की गई
स्टडी के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने 2014 और 2019 के बीच DINSAR के जरिए जमीन धंसने वाले नए क्षेत्रों को भी चिन्हित किया है। नए इलाकों में महिपालपुर, विजवासन, कुतुब विहार, द्वारका के पश्चिमी हिस्से, गुरुग्राम, फरीदाबाद और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के आसपास के क्षेत्र शामिल हैं। रिसर्च के दौरान 2005 से 2020 के बीच दक्षिण पश्चिमी, दक्षिण दिल्ली के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर के लेबल और जमीन धंसने के कारणों पर स्टडी को केंद्रित किया गया है। स्टडी के मुताबिक, जमीन धंसने की घटना तब होती है, जब भूमिगत मिट्टी से बड़ी मात्रा में ग्राउंड वाटर निकाला जाता है।
फरीदबाद में भी जमीन धंसने की घटना
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जमीन धंसने की घटना फरीदाबाद में भी सामने आई है। यहां 2014 से 16 के बीच प्रतिवर्ष जमीन धंसने की रफ्तार 2.15 सेंटीमीटर थी, जो 2018 के अंत तक 5.3 सेंटीमीटर पहुंच गई। एक साल बाद ही ये तेजी से बढ़कर 7.83 सेंटीमीटर प्रति वर्ष हो गई। शोधकर्ताओं ने इसके पीछे का कारण ग्राउंड वाटर लेबल के गिरते स्तर को बताया।