Bihar Assembly Election: बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को पूरा हो गया, अब दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोटिंग की जाएगी. बिहार में चुनाव से पहले ही राजनीतिक पार्टियों ने महिलाओं के लिए बड़े-बड़े ऐलान करने शुरू कर दिए थे, जिसके बाद यह तो साबित हो गया है कि चुनाव में ‘आधी आबादी’ की शक्ति को राजनीतिक दल भी गंभीरता से ले रहे हैं. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश हो या दिल्ली, जहां भी बीते कुछ वर्षों में चुनाव हुए हैं, वहां राजनीतिक पार्टियों ने महिलाओं के लिए कई बड़े वादे किए और स्कीम चलाई. बिहार में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है, एनडीए और इंडिया गंठबंधन ने पहले ही महिलाओं के खाते में पैसे डालने का ऐलान कर दिया है.
महाराष्ट्र के चुनाव में काम आई महिला योजनाएं
2024 के महाराष्ट्र और 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव इस बात को पुख्ता करते हैं कि महिला मतदाताओं को सीधे कैश ट्रांसफर करना चुनावी नतीजों को नाटकीय रूप से बदल सकता है. महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो विधानसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले शुरू की गई लड़की बहन योजना ने एनडीए को लोकसभा चुनावों में 0.5% की कमी से उबरकर विधानसभा चुनावों में 14% की बढ़त दिलाने में मदद की, जिससे उसे 288 सदस्यीय सदन में 49.3% वोट शेयर और 200 से ज्यादा सीटें मिलीं.
मध्य प्रदेश में भी मिला था फायदा
मध्य प्रदेश के चुनाव नतीजों में भी ऐसा ही कुछ फेरबदल देखने को मिला, जब महिलाओं के लिए लाडली बहना योजना का ऐलान किया गया. इस योजना के तहत एमपी की महिलाओं को 1250 रुपये प्रति माह मिला, तो भाजपा को भी 2018 के 41.1% वोट शेयर से 2023 में 50.2% तक पहुंचाने में मदद मिली, जिससे उसे 230 में से 163 सीटें मिलीं. इन योजनाओं ने सिर्फ वित्तीय राहत ही नहीं दी, बल्कि इन्होंने जाति और पहचान संबंधी मुद्दों से ऊपर उठकर संवैधानिक खतरों और आरक्षण विरोधी भावनाओं पर केंद्रित विपक्षी अभियानों को बेअसर कर दिया.
बिहार में कफी कठिन चुनौती
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश सरकार द्वारा एक योजना के तहत खाते में 10000 रुपये भेजने के बाद से ही विपक्ष इस पर भड़का हुआ है. महागठबंधन ने इसे वोटों की खरीद-फरोख्त बताया. हालांकि एनडीए को लिए महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की तरह बिहार में महिलाओं को साधना मुश्किल लग रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2020 में के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार में 0.03% वोटों के बेहद कम अंतर से जीत हासिल की थी, जबकि महागठबंधन (एमजीबी) से उसका अंतर केवल 3.3 लाख वोटों का था. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के मैदान में उतरने से समीकरण और जटिल हो गए हैं.
प्रशांत किशोर की वजह से पलट सकती है बाजी
बिहार में एनडीए की सरकार पिछले 20 वर्षों से है, जिसे देखते हुए चुनाव नतीजों से पहले जनता के मूड का कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता. अब प्रशांत किशोर के चुनावी मैदान में आने से एनडीए को बड़ा झटका लग सकता है. अगर प्रशांत किशोर एनडीए के सिर्फ 5% वोट ही ले पाते हैं, तो बाजी पलट सकती है. एक अनुमान के मुताबिक चुनावी नतीजों तक एनडीए को 34.2 प्रतिशत और महागठबंधन को 40 प्रतिशत वोट मिलेंगे तो 6 प्रतिशत का अंतर एनडीए को चुनाव में हार का सामना करना पड़ सकता है.
क्या महिला योजनाएं लगा सकती हैं NDA की नैया पार?
पिछले कई आंकड़े बताते हैं कि महिला-केंद्रित योजनाएं 6-9 प्रतिशत वोट शेयर में वृद्धि ला सकती हैं. मध्य प्रदेश के चुनाव में बीजेपी को 2018 की तुलना में 2023 में 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी मिली थी. वहीं, महाराष्ट्र में लोकसभा से विधानसभा तक के चुनाव में वोट शेयर में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. अगर एनडीए बिहार में भी यही करता है, तो वह प्रशांत किशोर के प्रभाव को बेअसर कर सकता है. 6 प्रतिशत की बढ़त मुकाबले को बराबर कर देगी और 9 प्रतिशत की बढ़त एनडीए को 3 प्रतिशत की बढ़त दिलाएगी.










