Bihar Government Herbal Liquor Project: बिहार में शराब का सबसे अच्छा विकल्प नीरा, जिसे ताड़ी भी कहते हैं, वह अब हर्बल शराब के रूप में तैयार की जाएगी। प्रदेश सरकार का यह नया प्रोजेक्ट है, जिसे शराब पीने के शौकीनों के लिए नई पहल कहा जा सकता है। प्रोजेक्ट के तहत सरकार बिहार कृषि विश्वविद्यालय के साथ मिलकर पासी समाज को नीरा ताड़ी बनाने की ट्रेनिंग देगी। यूनिवर्सिटी इस प्रोजेक्ट के लिए आत्मजीविका NGO से भी संपर्क करेगी, ताकि इलाके में जाकर लोगों को ताड़ी बनाने के तरीके सिखाए जा सकें। उन्हें इसे बनाने के फायदे बताते हुए ज्यादा से ज्यादा बनाने के लिए जागरूक कर सकें। वैसे शराब के विकल्प के रूप में ताड़ी बिहार के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाड़ु, केरल और आंध्र प्रदेश में भी पी जाती है।
Bihar | Ice creams being manufactured in Gaya from the ‘Neera’ that comes from the Palm tree. pic.twitter.com/qPia8Ktg2K
— ANI (@ANI) April 29, 2023
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ताड़ी बनाने की नई टेक्नोलॉजी और स्पेशल कंटेनर
दरअसल, बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने ताड़ी बनाकर इसे स्टॉक करने के लिए एक प्रकार का स्पेशल कंटेनर बनाया है, जिसमें नीरा को प्रोसेसिंग प्लांट तक पहुंचाने से पहले कई घंटे रखा जा सकेगा और वह खराब भी नहीं होगा। इस टेक्नोलॉजी और कंटेनर को भारत सरकार पेटेंट कर चुकी है। यह कंटेनर बनाने में सिर्फ 100 रुपये खर्च होते हैं। अब तक पासी समाज के लोग मिट्टी के बर्तन में ताड़ी को रखते हैं, जो प्रोसेसिंग प्लांट में जाकर अल्कोहल रहित नीरा बन जाती है, लेकिन अब पासी समाज के लोगों को यूनिवर्सिटी द्वारा बनाए गए कंटेनर में स्टॉक करने की सलाह दी जाएगी और उन्हें जागरूक भी किया जाएगा। प्रोजेक्ट के बारे में यह सभी जानकारियां बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ वसीम सिद्दीकी ने मीडिया को दी।
ताड़ी पीना स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद
नीरा, ताड़ी पीना स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। इसमें आयरन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-ए, बी, सी, बी-कॉम्पलेक्स, फास्फोरस, कैल्शियम, जिंक, पोटेशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं। नीरा पीने से बाल नहीं झड़ते। नाखून हेल्दी रहते हैं। आंखों और पेट की की बीमारियां दूर होती हैं। नीरा शुगर, कब्ज, दमा, टीबी, पाइल्स और पीलिया जैसी बीमारियों के इलाज में कारगर है।
कैसे बनती है ताड़ी? आजीविका का साधन
नीरा, ताड़ी को खजूर और ताड़ के पेड़ से निकालकर बनाया जाता है। यह दोनों पेड़ों से निकलने वाला रस होता है, जो सड़-सड़ कर ताड़ी बन जाता है। इसमें अल्कोहल नहीं होता। नीरा यानी ताजा रस मीठा होता है, लेकिन जब से सड़ाकर ताड़ी बनाया जाता है तो यह खट्टा हो जाता है। बिहार में शराबबंदी के बाद सरकार ने इसे शराब के विकल्प के रूप में प्रचारित किया था, जिसे हर्बल शराब कह सकते हैं। आज यह बिहार के लोगों के लिए आजीविका का साधन है। भागलपुर जिले में यह बिजनेस के रूप में अपनाया गया है। इससे लाई, लड्डू और तिलकूट भी बनाए जाते हैं, जो बाजार में भी बिकते हैं।
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