बिहार में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। इससे पहले बिहार में वक्फ बोर्ड बिल और रोजा इफ्तार पार्टियों को लेकर जमकर सियासत हो रही है। वक्फ बोर्ड बिल को लेकर मुस्लिम संगठनों ने सीएम नीतीश कुमार और चिराग पासवान की इफ्तार पार्टियों के बहिष्कार का ऐलान किया। इसके बाद कई मुस्लिम संगठन दोनों नेताओं की इफ्तार पार्टियों से दूर रहे। आरजेडी ने मुस्लिमों को साधने के लिए बिल के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में शामिल होने का फैसला किया है। इस बीच एक फोटो इन दिनों वायरल हो रही है। इस फोटो में बिहार एनडीए के तीन बड़े चेहरे हैं। सीएम नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी।
थाली एक दावेदार तीन
फोटो में देखा जा सकता है कि चिराग पासवान और सम्राट चौधरी की नजर सीएम नीतीश कुमार की थाली पर है। सीएम नीतीश कुमार थाली से लेकर कुछ खा रहे हैं। फोटो इफ्तार पार्टी का है। सीएम नीतीश कुमार ने टोपी भी पहन रखी है। ऐसे में इस फोटो को लेकर सियासी जानकार कई कयास लगा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चिराग पासवान की नजर महादलित वोटर्स यानी पासवान वोटर्स पर है। जबकि बीजेपी के सम्राट चौधरी की नजर प्रदेश के अति पिछड़ा वोट बैंक पर हैं। जोकि नीतीश कुमार के परंपरागत वोटर्स रहे हैं। जबकि नीतीश कुमार की नजर दोनों ही वोटबैंक पर है।
बीजेपी की नजर अति पिछड़ों पर
बिहार की राजनीति में पकड़ रखने वालों की मानें तो बीजेपी इस बार बिहार में सवर्णों के साथ-साथ अति पिछड़ा वोटर्स पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पार्टी की कोशिश है कि 36 प्रतिशत अति पिछड़ा वोटर्स जिसमें कुर्मी और कोईरी दोनों जातियां आती है इस पर अपनी पकड़ मजबूत की जाए। वहीं दलित वोटर्स परंपरागत तौर पर लोजपा के साथ रहे हैं। हालांकि इससे पहले दलित वोटर्स कांग्रेस के साथ था। एलजेपी के गठन के बाद से ही दलित खासकर पासवान वोटर्स रामविलास के भरोसेमंद रहे हैं।
कुछ ऐसा है वोटिंग पैटर्न
बिहार में कुर्मी परंपरागत तौर पर नीतीश कुमार के वोटर्स हैं। वोटिंग पैटर्न की बात करें तो करीब 81 प्रतिशत कुर्मी एनडीए को वोट देते आए हैं। वहीं कोईरी जाति के 51 प्रतिशत लोग एनडीए को तो 16 प्रतिशत लोग विपक्षी महागठबंधन का साथ देते हैं। वहीं पासवान वोटर्स 17 प्रतिशत एनडीए और 32 प्रतिशत लोजपा के साथ है। जबकि 22 प्रतिशत पासवान वोटर्स महागठबंधन के साथ रहते आए हैं।
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2020 के चुनाव में एनडीए को मिला फायदा
2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी और नीतीश ने साथ मिलकर लड़ा, इसके बावजूद ओबीसी वोटर्स का बड़ा हिस्सा आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ रहा। जिसमें प्रमुख रूप से यादव शामिल हैं। 2020 के चुनाव में एनडीए को ओबीसी के 26 प्रतिशत वोट मिले, जबकि महागठबंधन को 60 प्रतिशत वोट मिले। वहीं बात जब अति पिछड़ा की आती है तो यह आंकड़े एकदम उलट जाते हैं। 58 प्रतिशत अति पिछड़ा वोटर्स एनडीए के साथ था जिसमें कुर्मी, कोईरी और कुशवाहा जातियां शामिल हैं। जबकि महागठबंधन को सिर्फ 18 प्रतिशत वोट मिले।
2024 में एनडीए को नुकसान हुआ
वहीं बात करें लोकसभा चुनाव 2024 की तो एनडीए को 2019 के चुनाव की तुलना में नुकसान हुआ। इसका असर नतीजों में भी दिखा। एनडीए को इस बार 40 में से 30 सीटों पर जीत मिली। 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को कुर्मी और कोईरी जाति का 12 प्रतिशत वोट कम मिला। जबकि सवर्णों का 15 प्रतिशत वोट महागठबंधन को मिला। हालांकि एनडीए गठबंधन ने यादव वोट बैंक में सेंध लगाई। गठबंधन को इस बार यादव समुदाय के 26 प्रतिशत वोट मिले। वहीं पासी जाति के 19 प्रतिशत वोटर्स छिटककर महागठबंधन की ओर चले गए। जबकि दलितों के 18 प्रतिशत वोट भी इस बार महागठबंधन के खाते में गए। हालांकि मुस्लिम वोटर्स ने इस बार एनडीए के पक्ष में वोट किया।
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