Shanidev ki Katha : गणेश पुराण मे वर्णित कथा के अनुसार जब गणेश जी का जन्म हुआ तो सभी देवता गणेश जी को देखने कैलाश पर्वत गए। शनिदेव भी गणेश जी को देखने पहुंचे, लेकिन वह गणेश जी ओर अपनी दृष्टि नहीं दे रहे थे । ऐसे में माता पार्वती ने शनिदेव से पूछा आप मेरे पुत्र की ओर क्यों नहीं देख रहे हैं? तब शनिदेव ने कहा माता मुझे क्षमा करें, मैंने अगर ऐसा किया तो आपके पुत्र का भाग्य नष्ट हो जाएगा। फिर माता पार्वती के पूछने पर शनिदेव ने अपनी वक्री दृष्टि का कारण बताया।
शनिदेव का विवाह
शनिदेव ने कहा मेरा विवाह चित्ररथ की अत्यंत सुंदरी, तेजस्वनी कन्या से हुआ था। वह सती भी निरंतर तपस्या में लगी रहती। एक बार उन्होंने मासिक धर्म के चौथे दिन सोलहों श्रृंगार किए। उस समय वह दिव्य अलंकारों से विभूषित और अत्यंत शोभामयी लग रही थी। उस समय उनका रूप मुनियों को भी मोहित कर लेने वाला बन गया। रात्रि होने पर वह मेरे पास उपस्थित हुई। मैं भगवान श्री कृष्ण के ध्यान में लीन था, इसलिए उनके आगमन पर भी मैं ध्यान न दिया। किन्तु, वह मदहोश हो रही थी, कुछ तीखे स्वर में बोली-स्वामी ! मेरी ओर देखो तो सही। किन्तु मैंने उसकी ओर कुछ भी ध्यान न दिया।
शनिदेव को मिला श्राप
वह अपने चंचल नेत्रों से देख रही थी, किन्तु मेरी तल्लीनता भंग न हो पाई। उसने अपना प्रयास असफल होते हुए देखा तो क्रोधित हो गई। क्योंकि उसका ऋतुकाल व्यर्थ हो रहा था। क्रोध में भी उसने मुझे समझाने का भरसक प्रयास किया था। जब वह मेरा ध्यान भंग करने में सफल नहीं हो सकी तब सहसा कामातुर हो कह बैठी, अरे मूर्ख! तूने मेरी ओर देखा तक नहीं, इस कारण मेरे ऋतुकाल की रक्षा नहीं हो सकी अर्थात मेरा ऋतुकाल व्यर्थ ही जा रहा है। इस कारण अब तू जिस किसी को भी देखेगा, वह अवश्य ही नष्ट हो जाएगा।
उसका शाप मेरे कानों में पड़ा जिससे मेरा ध्यान भंग हो गया। फिर सोचने लगा, यह तो मेरी पत्नी है, इसने मुझे ऐसा शाप क्यों दे दिया? फिर सोचा यदि अब भी संतुष्ट कर लूं तो शाप से बच सकता हूं। ऐसा दृढ विचार करके मैंने शांत करने का प्रयत्न किया। ‘इसी प्रकार मैंने उसे अनेक बार मनाया और जब वह शांत हो गई तब उसे काम्य प्रदान कर उससे शाप मिथ्या करने का आग्रह करने लगा । परन्तु, अब ऐसी कोई शक्ति न रह गई थी, जो अपने शाप को वह नष्ट कर सकती ।
इसलिए नहीं डालते नजर
शाप देने के कारण उसका पातिव्रत धर्म अशक्त हो गया था । उसने बहुत पश्चात्ताप करते हुए कहा भी था कि ‘मुझसे बड़ी भूल हो गई, मैं चाहती हूं कि मेरे द्वारा दिया गया शाप नष्ट हो जाये।’किन्तु शाप नष्ट नहीं हुआ। ऐसा ही समझता हुआ मैं उस दिन से किसी की भी ओर आंख उठाकर नहीं देखता। क्योंकि आंख उठाकर देखने से न जाने किसका अहित हो जाये। लोक-कल्याणार्थ ही मैं सब समय अपना मस्तक झुकाए रखता हूं । शनि को प्राप्त शाप और उसके कारण सदैव मुख को नीचें किये रहने की बात सुनकर पार्वतीजी हंस पड़ी। उनके साथ उनकी सभी सखियां, सभी दासियां, सभी अप्सराएं और सभी देवकन्याएं भी हंस पड़ीं। वह हंसी बहुत देर तक चलती रही। बेचारे शनिदेव अपना मुख नीचे किये खड़े रहे ।
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