Sadhguru Viral Video: ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति का गुस्सा, निराशा और दुख गुलामी के समान होते हैं। कुछ समय का गुस्सा भी आपके जीवन और आपके रिश्तों में बड़ी अड़चन पैदा कर सकता है। इस विषय पर सद्गुरु कहते हैं कि क्रोध और दुख व्यक्ति की आंतरिक गुलामी के प्रतीक हैं। उनका तात्पर्य यह है कि जब हम अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण खो बैठते हैं और बाहरी परिस्थितियां हमारे भीतर क्रोध या दुख उत्पन्न करती हैं, तो इसका मतलब है कि हमारी भावनाओं की बागडोर हमारे हाथ में नहीं, बल्कि दूसरों के हाथों में है। यही स्थिति वास्तव में आंतरिक गुलामी है।
सद्गुरु कहते हैं आपका गुस्सा, निराशा और दुख अगर कोई और तय कर रहा है यानी आपके भीतर क्या होना चाहिए, यह कोई बाहरी व्यक्ति या परिस्थिति नियंत्रित कर रही है तो यह सबसे भयानक किस्म की गुलामी है। यह आप तय करें कि आपके भीतर क्या होना चाहिए, न कि कोई और। वे कहते हैं कि हमारे आसपास की चीजों और लोगों की अपनी-अपनी राय होती है, और हम बाहरी परिस्थितियों को थोड़ा बहुत बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जो कुछ हमारे भीतर हो रहा है, वह पूरी तरह हमारे हाथ में है। यदि व्यक्ति यह तय कर ले कि “मेरे भीतर वही होगा जो मैं चाहता हूं तो वह अपने मन और भावनाओं को एक अत्यधिक सुखद और शांत अवस्था में रख सकता है। जब व्यक्ति भीतर से पूर्णतः खुश होता है, तो बाहरी समस्याएं उसकी जीवन दिशा तय नहीं कर सकतीं।
सद्गुरु के अनुसार, सच्चा आत्मस्वामी वही होता है जो हर परिस्थिति में अपने भावों पर नियंत्रण रख सके। अगर कोई व्यक्ति दूसरों की बातों, व्यवहार या किसी परिस्थिति से दुखी या क्रोधित हो जाता है,
तो वास्तव में वह उस परिस्थिति का गुलाम बन जाता है। आत्मज्ञान और ध्यान के अभ्यास से ही हम भीतर की स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं — जहां क्रोध और दुख हमारे जीवन को नियंत्रित नहीं करते, बल्कि हम स्वयं अपने मन के स्वामी बन जाते हैं।
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