Rath Yatra 2025: भारत में दुनिया का वह मंदिर है, जिसकी रसोई सबसे विशाल और भव्य मानी जाती है। इस रसोई में पकाया जाना वाला भोजन महाप्रसाद माना जाता है, जो दुनिया के किसी भी देवी-देवता के प्रसाद की तुलना में सबसे ज्यादा शुद्ध माना जाता है। अगर किसी ने इस प्रसाद का छोटा सा छोटा हिस्सा भी चख ले, तो वह धन्य हो जाता है। इसे उड़िया भाषा में बड़ा कहा जाता है। अबड़ा मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। इसकी भी एक खासियत है कि सभी व्यंजनों को एक साथ पकाया जाता है। दरअसल, इसमें मिट्टी की हांडियों को एक के ऊपर एक रखकर पकाया जाता है और जो सबसे ऊपर वाला बर्तन होता है, उसमें रखा व्यंजन सबसे पहले पकता है। चलिए आज हम आपको उस कथा के बारे में बताते हैं, जहां से ये भोग महाप्रसाद बना और सब लोगों को मिलने लगा।
कैसे बना महाभोग?
दरअसल, जो महाभोग है, वह पहले सिर्फ भगवान जगन्नाथ को माता लक्ष्मी द्वारा तैयार करके, उन्हें परोसा जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु यानी जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी से रूठकर घर से चले जाते हैं और जंगलों में भटकते हैं। जब मां ने उन्हें देखा, तो उन्हें बहुत बुरा महसूस हुआ। इसके बाद उन्होंने भगवान जगन्नाथ को 56 प्रकार के व्यंजनों से प्रसन्न किया था। इसके बाद महाप्रभु ने उन्हें कहा कि वे रोज इस आनंदमय भोजन को खाना चाहते हैं। एक दिन नारद मुनि प्रभु के दर पर पहुंचे और उन्होंने भोजन की खुशबू आने पर माता लक्ष्मी से पूछा कि ये किस व्यंजन की खुशबू है, तो वह बताती है कि यह प्रभु का महाप्रसाद है। फिर नारद मुनी ने इसे खाने की इच्छा जाहिर की थी।
भगवान शिव ने भी चखा
इस कथा में आगे बताया गया कि नारद मुनि जब प्रसाद खाने के लिए कहते हैं, तो मां लक्ष्मी उन्हें कहती है कि सिर्फ इतना ही भोग था, जो मैंने मेरे स्वामी को परोस दिया है। तब प्रभु अपने हिस्से में से एक कौर नारद मुनि को दे देते हैं, जिसे खाते ही वे खुद को प्रसन्न और संतुष्ट महसूस करते हैं। इसके बाद वे वैकुंठ धाम से प्रस्थान कर लेते हैं, तो उन्हें रास्ते में महादेव मिलते हैं, तो वे उन्हें देखकर पूछते हैं कि आप इतने प्रसन्न क्यों नजर आ रहे हैं, तो वह बोलते हैं कि मैंने प्रभु का महाप्रसाद चखा है, जिस पर फिर महादेव कहते हैं कि मुझे भी यह भोग चखना है, जो आपको इतना संतुष्ट कर रहा है।
नारद मुनि ने बताया कि महाप्रसाद तो भगवान के धाम में अब खत्म हो गया है, इतने में ही महादेव देखते हैं कि नारद मुनि के गालों पर एक चावल का दाना लगा हुआ है, तो वह उसे ही खा लेते हैं। इसके बाद वह भी खुद को संतुष्ट महसूस करते हैं।
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क्यों गुस्सा हुई थी माता पार्वती?
भगवान शिव माता पार्वती के पास आते हैं, तो वे देखती है कि उनके स्वामी बेहद प्रसन्न और किसी बात से बेहद खुश है, मगर इसका कारण नहीं जानती थी। उन्होंने उत्सुक्ता में पूछा कि वे इतने खुश क्यों है, तो प्रभु कहते हैं, मैंने इस विश्व का सबसे उत्तम भोग ग्रहण किया है, जिसका सेवन करने मात्र से वह खुद को धन्य मान रहे हैं। अब मां पार्वती भी व्याकुल हो गई कि आखिर महादेव ने कहां से खाया होगा ये भोग? उन्होंने महादेव से पूछा तो वह कहते हैं कि ये भगवान जगन्नाथ का भोग है। इसके बाद वे उन्हें यह भी बताते हैं कि ये महाप्रसाद है, जो माता लक्ष्मी बनाती है और महाप्रभु को इसका भोग लगाती है। वे प्रसन्नता में उन्हें यह भी बता देते हैं कि नारद मुनि ने भी इसका सेवन किया है। यह सुनकर माता पार्वती गुस्सा हो जाती है और सीधे भगवान जगन्नाथ से मिलने पहुंच जाती है।
कौन हैं मां विमला देवी?
माता पार्वती महादेव की अर्धांगिनी के साथ-साथ भगवान जगन्नाथ की बहन भी है। विमला देवी भी माता पार्वती है। जब वे गुस्सा होकर महाप्रभु के पास पहुंचती है, तो वहां वे उनसे अपनी नाराजगी व्यक्त करती है। जगन्नाथ जी उन्हें समझाने की हर संभव कोशिश करते हैं, मगर वे मानती नहीं है। माता लक्ष्मी भी उन्हें समझाती हैं, मगर वे नाराज ही रहती है। तब फिर भगवान जगन्नाथ कहते हैं कि गौरी तुम मेरी प्रिय बहन हो, इसलिए अब से यह भोग मुझे भी तब ही परोसा जाएगा, जब तुम इसे ग्रहण कर लोगी। साथ ही, वे कहते हैं कि ये भोग अब महाप्रसाद कहलाएगा, जो बिना किसी जाती-धर्म और संप्रदाय के हर किसी के हिस्से आएगा। ये भोग कभी झूठा नहीं कहलाया जाएगा, यदि कोई इसका एक कौर भी खाएगा, तो उसे भगवान की कृपा मिलेगी।
आज भी जिंदा है रिवाज
भगवान जगन्नाथ के धाम पुरी में या फिर किसी भी जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद का भोग पहले मां विमला यानी पार्वती मां को चढ़ता है, तब ही वह महाप्रसाद बनता है और उसके बाद ही जगन्नाथ जी को इनका भोग लगाया जाता है और फिर भक्तों को यह मिलता है। आज भी पुरी में महाप्रसाद पुरानी पद्धति से चूल्हे पर पकाया जाता है। यह चूल्हा मिट्टी का होता है, जिसकी रोजाना लिपाई की जाती है। भोग बनाने के लिए जो पानी लिया जाता है, वह मंदिर की रसोई में मौजूद कुएं से लिया जाता है। प्रसाद कोई भी किसी से भी मांग सकता है और 1 थाली में खा सकता है।
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