Rath Yatra 2025: हर साल आषाढ़ के महीने में प्रभु जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा निकलती है। इस यात्रा को ओडिशा के पुरी में मनाया जाता है। हालांकि, देश के कई राज्यों में ये महोत्सव मनाया जाता है लेकिन इस स्थान पर रथयात्रा की छवि कुछ अलग ही होती है। यह प्रभु की नगरी है, यहां उनका अपना घर यानी श्रीमंदिर स्थित है। हर साल रथयात्रा के अवसर पर दुनियाभर से लाखों की संख्या में लोग पुरी आते हैं। रथयात्रा से पहले भगवान अपने मंदिर में ही रहते हैं। यहां वे अपने भाई-बहन और माता लक्ष्मी के साथ रहते हैं। पुरी का जगन्नाथ मंदिर रहस्यों से भरा माना जाता है।
इस मंदिर के चार मुख्य द्वार है, जिनकी पहरेदारी में अलग-अलग देव मौजूद है। चारों दरवाजों के नाम हैं- सिंह द्वार, हस्ति द्वार, व्याघ्र द्वार और अश्व द्वार। इन दरवाजों को सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का भी प्रतिनिधि माना जाता है। आइए जानते हैं इन दरवाजों के बारे में।
1.सिंह द्वार, मुख्य द्वार (East Gate)
इस दरवाजे पर जय और विजय विराजमान हैं, जो भगवान विष्णु के द्वारपाल है और गरुड़ देव भी यहां स्थित हैं। यह मंदिर का मुख्य द्वार है, जहां से श्रद्धालु प्रवेश करते हैं। इसे “लायन गेट” भी कहा जाता है। सिंह द्वार पूर्व दिशा की ओर है, जहां एक अरुण स्तंभ भी है। इस द्वार को मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। इस दरवाजे पर शेर मौजूद हैं।
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2.हस्ति द्वार (West Gate)
इस दरवाजे पर भगवान गणेश विराजमान है। ये दरवाजा पश्चिम दिशा में हैं, भगवान गणेश, जो सभी कार्यों में प्रथम पूज्य माने जाते हैं और विघ्नहर्ता हैं। इस द्वार का प्रतीक हाथी है, जो समृद्धि और ऐश्वर्य का भी प्रतीक है।
3.अश्व द्वार (South Gate)
मंदिर के दक्षिण में स्थित यह दरवाजा विजय का प्रतीक माना जाता है। यहां अश्व यानी घोड़े मौजूद हैं। प्राचीन काल में योद्धा इस द्वार का उपयोग जीत की कामना के लिए करते थे। यह दरवाजा ज्ञान, तप और तेज का प्रतीक भी माना जाता है।
4.व्याघ्र द्वार (North Gate)
चौथा और मंदिर का अंतिम दरवाजा व्याघ्र द्वार कहा जाता है, जहां बाघ पहरेदारी कर रहे हैं। दरअसल, इस द्वार को नृसिंह भगवान को भी समर्पित है, क्योंकि दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है। नृसिंह अवतार अधर्म और मृत्यु पर विजय के प्रतीक होते हैं।
प्रभु किस द्वार से आते हैं?
भले ही चारों द्वारों की विशेषता अलग-अलग होती है लेकिन रथयात्रा पर प्रभु मंदिर से बाहर और वापस अंदर एक ही दरवाजे से जाते हैं, वह सिंह द्वार यानी मुख्य द्वार है। भक्तों के लिए भी इस दरवाजे से ही प्रवेश की अनुमति दी गई है। बता दें कि इन चारों दरवाजों की सुरक्षा में पुलिसकर्मी भी तैनात किए गए हैं।
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हनुमान जी ने क्यों पहनीं बेड़ियां?
दरअसल, इसके पीछे भी एक कथा है, वह इस प्रकार है। जैसा कि आप जानते हैं विष्णु जी के ससुर समुद्र देव हैं, उनका मंदिर भी चारों तरफ समंदर से घिरा हुआ है। जब भी प्रभु विश्राम के लिए जाते थे, तब ही समंदर की तेज लहरों से उनकी नींद खराब हो जाती थी। एक दिन उन्होंने माता लक्ष्मी से शिकायत करते हुए कहा कि उनके पिता उनके विश्राम में बाधा डाल रहे हैं। इस बात को सुनने के बाद हनुमान जी ने लहरों की आवाज को रोकने का फैसला किया, मगर वे फिर भी बार-बार प्रभु के दर्शन करने के लिए मंदिर के अंदर चले जाते थे। वे अंदर न आ पाएं, इसके लिए उन्हें चारों दरवाजों के बाहर बेड़ियों से बांध दिया था।
रथयात्रा से भी इसका संबंध है। एक कथा के अनुसार, जब तीनों भाई-बहन रथयात्रा के लिए मंदिर से बाहर जाते हैं, तो समुद्र के रास्ते आसुरी शक्तियों का मंदिर की तरफ आना होता है, ऐसे में हनुमान मंदिर की इन दिनों में सुरक्षा कर सके।
बंध हनुमान की होती है पूजा
मंदिर के पुजारियों द्वारा हनुमान जी, जो रक्षा के लिए तैनात है। उनकी भी पूजा की शुरुआत की गई, उन्हें यहां बंध हनुमान जी के नाम से पूजा जाता है।
कब है रथयात्रा?
इस साल रथयात्रा 27 जून को मनाई जाएगी। वहीं, बाहुड़ा यात्रा 5 जुलाई को हैं।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।