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5000 साल पुराना पेड़, भगवान राम यहीं से गए वनवास; ‘प्रयाग’ को पहचान दिलाने वाले अक्षयवट की कहानी

Akshayavat Tree Story Prayagraj Maha Kumbh: प्रयागराज के महाकुंभ में संगम स्नान के अलावा अक्षयवट की चर्चा भी जोरों पर है। कई लोग इसे मामूली पेड़ मान रहे हैं। मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि पौराणिक मान्यताओं से लेकर धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से यह पेड़ बेहद खास है। आइए जानते हैं क्यों?

Edited By : Sakshi Pandey | Updated: Jan 16, 2025 12:20
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Akshayavat Tree Story Prayagraj Maha Kumbh 2025: संगम नगरी प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक महापर्व का आगाज हो चुका है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने के बाद कई श्रद्धालु कुंभ नगरी के अन्य मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं। इसी बीच प्रयागराज का अक्षयवट भी सुर्खियों में है। संगम स्नान करने पहुंचे ज्यादातर लोग अक्षयवट के दर्शन जरूर करते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि आखिर इस वृक्ष की खासियत क्या है?

अक्षयवट का महत्व

अकबर के किले में मौजूद इस पेड़ को औरंगजेब और अंग्रेजों ने इसे नष्ट करने की कोशिश की। इस दौरान अक्षयवट तक पहुंचने का रास्ता बंद कर दिया गया था। 470 साल तक इस पेड़ के पास कोई नहीं जा सका। वहीं 2019 में इस रास्ते को फिर से खोला गया था। अक्षय वट की पत्तियों को लोग प्रसाद मानते हैं। महाकुंभ में आए VIP मेहमानों को भी प्रसाद के रूप में अक्षयवट की पत्तियां दी जाएंगी। तो आइए जानते हैं अक्षयवट आखिर क्यों मशहूर है?

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अक्षयवट की पौराणिक मान्यता

मान्यता है कि संगम किनारे मौजूद अक्षयवट सदियों पुराना है। पुराणों में इसका जिक्र सुनने को मिलता है। पदम पुराण में इसे तीर्थराज प्रयाग का छत्र और वृक्षराज कहा गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षयवट के नीचे बने हवनकुंड में सबसे पहले ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था। इस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत 33 करोड़ देवी-देवताओं ने हिस्सा लिया था। तभी से इस शहर को प्रयाग कहा जाने लगा। दरअसल प्र का मतलब प्रथम और याग का अर्थ यज्ञ होता है यानी प्रयाग प्रथम यज्ञ स्थल है।

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रामायण में मिला जिक्र

अक्षयवट का जिक्र हिंदू धर्म ग्रंथ रामचरितमानस में भी मौजूद है। वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है कि जब भगवान राम वन जा रहे थे, तो महर्षि भारद्वाज ने उन्हें संगम किनारे मौजूद श्यामवट के नीचे सिद्ध पुरुषों से आशीर्वाद लेने को कहा था। मान्यता है कि यह वही श्यामवट है, जिसे आज हम अक्षयवट के नाम से जानते हैं।

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औरंगजेब और अंग्रेजों ने जलाया

अक्षय शब्द का अर्थ है कभी नष्ट न होने वाला। कहते हैं इसे अमरता का वरदान प्राप्त है। सदियों पुराना यह वृक्ष सृष्टि के अंत तक जिंदा रहेगा। ऐतिहासिक कहानियों की मानें तो मुगल बादशाह औरंगजेब और अंग्रेजों ने इस वृक्ष को नष्ट करने की बहुत कोशिश की। इसे जलाया गया, काटा गया, मगर अक्षयवट कभी नहीं सूखा। इसके पत्ते हमेशा हरे-भरे रहे। जाहिर है यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।

PM Modi AkshayVat Prayagraj Maha Kumbh

470 साल तक बंद था रास्ता

पौराणिक मान्यता है कि इस वृक्ष को माता सीता का वरदान प्राप्त है। संगम स्नान करने के बाद अक्षयवट के दर्शन करने से ही स्नान सफल माना जाता है। अक्षयवट के सामने लोग ढेरों मनोकामनाएं मांगते हैं। कहते हैं कि इसकी 1 परिक्रमा ब्रह्मांड की परिक्रमा करने के बराबर है। हालांकि मुगल काल के बाद अक्षयवट तक पहुंचने का रास्ता बंद करवा दिया गया था। वहीं 470 साल बाद 2019 के कुंभ मेले में इस रास्ते को दोबारा खोला गया। 16 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां कॉरिडोर बनवाने की घोषणा की थी।

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जड़ों में बहती है सरस्वती नदी

अक्षयवट की कहानियां यहीं खत्म नहीं होती हैं। मुगल बादशाह अकबर ने इसी वृक्ष के आसपास किला बनवाया था, जिसे अकबर किले के नाम से जाना जाता है। अक्षयवट के पास शूल टंकेश्वर शिवलिंग भी मौजूद है। इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के बाद इसका पानी सीधे अक्षयवट की जड़ों में जाता है। ऐतिहासिक कहानियों की मानें तो अकबर की पत्नी जोधाबाई भी इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करती थीं। कहते हैं संगम की तीसरी अदृश्य नदी सरस्वती भी अक्षयवट के नीचे से बहती है।

क्यों खास है अक्षयवट की पत्तियां?

अक्षयवट को छूना या इसकी पत्तियां तोड़ना सख्त मना है। हालांकि इसकी गिरी हुई पत्तियों और टहनियों को लोग प्रसाद समझकर अपने साथ ले जाते हैं। भारत सरकार ने महाकुंभ में 100 देशों से खास मेहमानों को आमंत्रित किया है। खबरों की मानें तो उन्हें भी तोहफे के तौर पर अक्षयवट की पत्तियां दी जाएंगी। पेड़ से गिरी पत्तियों को छांटकर विदेशी अतिथियों के लिए पैक किया जाएगा।

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Sakshi Pandey

First published on: Jan 16, 2025 12:20 PM

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