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Religion

भगवान श्रीराम क्यों नहीं चाहते थे हनुमान जी अयोध्या में रहें? कुमार विश्वास से जानें इसका रहस्य, पढ़ें यह कथा

देश के जानेमाने कवि और कथावाचक कुमार विश्वास ने एक वीडियो में यह बताया है कि जब रामराज्य की स्थापना हो गई। तब भगवान राम चाहते थे कि हनुमान जी अयोध्या में न रहें। आइए जानते हैं कि भगवान राम ऐसा क्यों चाहते थे और जब हनुमान जी से यह कहा तो उन्होंने क्या किया?

Author Edited By : Shyamnandan Updated: Mar 27, 2025 07:47
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देश के विख्यात कवि कुमार विश्वास आज कल अपनी रामकथा से न केवल लोगों का मन मोह रहे हैं, बल्कि लोगों के जीवन में भक्ति का रस भी घोल रहे हैं। एक वीडियो में वे कहते हैं कि रामकथा में हनुमान जी का स्थान अद्वितीय है। उनकी भक्ति, वीरता और ज्ञान ने उन्हें भगवान श्रीराम का प्रिय भक्त बना दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब रामराज्य की स्थापना के बाद हनुमान जी अयोध्या में ठहर गए, तो भगवान श्रीराम ने उन्हें वहां रहने से क्यों मना करना चाहते थे? आइए जानते हैं, रामकथा की यह कहानी, कुमार विश्वास की जुबानी।

भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद, अयोध्या में सब कुछ सामान्य हो गया। भगवान श्रीराम का राज्य स्थापित हो चुका था। सभी प्रमुख पात्र जैसे सुग्रीव, अंगद, जामवंत, विभीषण, नल-नील, निषादराज और लंका युद्ध के सभी सहयोगी अपने-अपने घर लौट चुके थे। ऐसे में केवल हनुमान जी अयोध्या में अकेले रह गए थे। इसका कारण यह था कि वे भगवान राम के परम भक्त थे और उनका दिल अयोध्या में ही था।

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लेकिन इस बात को लेकर अयोध्या की जनता ने धीरे-धीरे यह चर्चा शुरू कर दी कि हनुमान जी तो बस यहीं अयोध्या में रुके हुए हैं, लगता है उन्हें कुछ सम्मान, पुरस्कार या पद नहीं मिला है। हनुमान जी की अयोध्या में उपस्थिति पर नगरवासियों की बातें बढ़ने लगीं। फिर यह बात भगवान श्रीराम तक भी पहुंची, जिसे सुनकर वे बड़े चिंतित हो गए।

इस बात को लेकर एक रात, भगवान श्रीराम ने माता सीता से कहा, ‘हमारे प्यारे हनुमान जी को कोई जिम्मेदारी देनी चाहिए, ताकि वे खुश रहें और कोई और न कुछ कह सके। फिर वे यहां से जाना चाहें तो चले जाएं। यह बात आप उनसे कह दीजिए।’ यह सुनकर सीता जी ने परिहास में कहा, ‘आपके परिवार में तो अपने बेटे को बाहर निकालने की परंपरा है, लेकिन मुझे तो ऐसा कोई विचार नहीं है कि मैं अपने बेटे को घर से बाहर भेजूं।’ यह सुनकर भगवान श्रीराम चुप हो गए और इस विचार पर गंभीरता से सोचने लगे।

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सुबह होते ही भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा, ‘लक्ष्मण, हनुमान जी के बारे में सोचो।’ फिर वही बात दोहराई जो, उन्होंने माता सीता से कही थी। इस पर लक्ष्मण जी ने उत्तर दिया, ‘प्रभु, आपने तो पहले ही मेरी विपत्ति के समय में वह सब कुछ देखा है, जो हनुमान जी ने किया था। जब हनुमान जी मेरे लिए संजीवनी बूटी लेकर आए थे। वह क्षण तो वह आपके भी जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। हमें उनका आदर करना चाहिए।’

तब भगवान राम ने भरत से कहा कि वे हनुमान जी से कह दें कि वे सम्मान-पुरस्कार लें और अयोध्या से चले जाएं। इस पर भरत ने कहा, ‘हे प्रभु, आपके वियोग में तो मैंने अपने चिता सजा ली थी, लेकिन तब हनुमान जी ने ही मुझे बचाया। इसलिए मैं ये बात उनसे नहीं कह सकता।’ भगवान राम यहां भी निरुत्तर हो गए।

फिर भगवान राम ने शत्रुघ्न से कहा कि वे हनुमान से यह संदेश कह दें। शत्रुघ्न ने भी हाथ जोड़ लिए और बोले, “हे भ्राता! पूरी रामायण कथा लगभग खत्म हो गई और मैंने अभी तक कुछ बोला ही नहीं हैं। अब ‘ये काम’ आया है, तो ये आप हमें दे रहे हैं? ये नहीं चलेगा, जो करना है अब आप को ही करना है।

तब अगले दिन राज्य सभा में भगवान राम जी ने हनुमान की निष्ठा और साहस की खूब सराहना की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लक्ष्मण से दोगुना मदद किया है। आखिरकार, भगवान श्रीराम ने हनुमान जी की महानता को समझते हुए, उन्हें पद देने का प्रस्ताव रखा, उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वे कोई पद ले लें और अपना राज्य चलाएं।

हनुमान जी ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया कि हे प्रभु, जब मेरा काम लक्ष्मण जी से दोगुना है, तो मैं पद भी दोगुना लूंगा। ये सुनकर भगवान राम जी बड़े प्रसन्न हुए और बोले कि हनुमान जी जो चाहें, मांग सकते हैं।

भगवान राम का यह कहना ही था कि हनुमान जी ने भगवान राम के एक नहीं बल्कि पादुका सहित दोनों पद पकड़ लिए और वे बोले, ‘इन दो पदों के आगे दुनिया का कोई भी पद और सम्मान मेरे लिए किसी काम की नहीं है। हे प्रभु, मेरे लिए तो भगवान श्रीराम का साथ ही सबसे बड़ा पद है। मुझे किसी पद की आवश्यकता नहीं है। मैं सिर्फ आपका सेवक हूं।’

हनुमान जी की भक्ति और समर्पण देख भगवान श्रीराम गदगद हो उठे। उन्होंने कहा, ‘हनुमान, तुम मेरे लिए सबसे प्रिय हो। तुम्हारी सेवा में कोई कमी नहीं है। तुम मेरे लिए दोगुने उपकारक हो और तुम्हारा स्थान मेरे दिल में हमेशा रहेगा। आज से तुम इस सभा और मेरे जीवन के अभिन्न भाग हो।’

महाकवि और कथावाचक कुमार विश्वास की इस रामकथा से हमें यह सीख मिलती है कि हनुमान जी ने कभी किसी पद की चाह नहीं की, क्योंकि उनका जीवन केवल भगवान श्रीराम की सेवा में समर्पित था। उनकी भक्ति और निष्कलंक सेवा ही उनका सर्वोत्तम आदर्श था। हनुमान जी का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची भक्ति और सेवाभाव से बड़ा कोई पद नहीं होता हैं।

देखें वीडियो:

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी यूट्यूब पर अपलोड प्रख्यात कवि और कथावाचक कुमार विश्वास की रामकथा वीडियो और धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Mar 27, 2025 07:47 AM

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