Chaturmas 2024: चातुर्मास का अर्थ है चार महीनों की अवधि, जिसे हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह की अवधि में भगवान विष्णु सहित सभी देवी-देवता शयन करते हैं यानी सो जाते हैं। मान्यता है कि सभी देव धरती को छोड़ स्वर्ग में अपने-अपने वास-स्थान पर चले जाते हैं। आइए जानते हैं, हिन्दू धर्म में चातुर्मास का महत्व क्या है और इस अवधि में क्या करें और क्या नहीं करें?
कब से कब तक है चातुर्मास 2024?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में देवशयनी एकादशी के अगले दिन से होती है। साल 2024 में यह एकादशी 17 जुलाई को पड़ रही है। इस दिन से जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। वे चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी के दिन निद्रा से जागते हैं। इस साल यह एकादशी 12 नवंबर को पड़ रही है। इस प्रकार 17 जुलाई से 12 नवंबर, 2024 तक समय चातुर्मास का रहेगा।
चातुर्मास का महत्व
प्रत्यक्ष रूप से देवताओं की कृपा नहीं होने से चातुर्मास को हिन्दू धर्म में चार महीने का आत्मसंयम काल माना जाता है। इस अवधि में मनुष्य अपने कर्म और भाग्य के सहारे जीता है। इस अवधि में हर तरह के मांगलिक कार्य, जैसे विवाह, उपनयन, मुंडन, कर्ण-नासिका छेदन, भूमि पूजन, गृह प्रवेश और अन्य 16 संस्कार नहीं किए जाते हैं। मान्यता है कि इस अवधि में शुभ कार्य करने से या तो वे काम बिगड़ जाते हैं, अनिष्ट हो सकता है या धन हानि हो सकती है। बता दें, चातुर्मास में वधु-विदाई भी नहीं होती है। यह अवधि समाप्त होने के बाद मांगलिक कार्य फिर शुरू हो जाते हैं।
चातुर्मास में क्या करें?
चातुर्मास के चार महीनों में देवताओं के सो जाने से यह समय स्व-साधना और आत्मसंयम के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। इस अवधि में विशेष रूप से जाप, पाठ, ध्यान और आत्म-चिंतन करना चाहिए। पठन-पाठन और लेखन के कार्य के लिए यह समय श्रेष्ठ माना गया है। चातुर्मास में दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। गरीबों और जरुरतमंदों को छतरी, जूते-चप्पल, धन और अन्न का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास में क्या न करें?
हिन्दू धर्म में चातुर्मास संयमित जीवन जीने का समय माना गया है। मान्यता है कि इन चार महीनों में कुछ चीजों, जैसे- दही, अचार, साग, मूली आदि खाने से परहेज करना चाहिए। मांगलिक कार्य, जैसे- सगाई, विवाह, मुंडन, बच्चे का नामकरण, गृहप्रवेश आदि नहीं करना चाहिए। यह भी मान्यता है कि इस दौरान तामसिक भोजन (मांस, मछली, अंडा, शराब) का सेवन नहीं करना चाहिए।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।