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डाक कांवड़ क्या है? जानें यात्रा के नियम, एक भी टूटी तो पूरी नहीं होगी मनोकामना

Kanwar Yatra 2024: सावन आते ही भगवान शिव की भक्ति से हर नगर का शिवधाम गुलजार हो उठता है। दूर-दूर से गंगाजल कांवड़ से गंगाजल ढोकर शिव भक्त और श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। आइए जानते हैं, डाक कांवड़ क्या है और इसके नियम क्या हैं?

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Jul 20, 2024 06:08
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Kanwar Yatra 2024: भगवान शिव को प्रिय सावन का पवित्र माह 22 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस महीने की शुरुआत सोमवार से होने के कारण कांवड़ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री यानी कांवड़िया हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, सुल्तानगंज आदि स्थानों पर जुटने लगे हैं। आइए जानते हैं, शिव भक्तों और श्रद्धालुओं द्वारा की जाने वाली कांवड़ यात्रा का एक विशेष प्रकार ‘डाक कांवड़’ क्या है और इससे जुड़े नियम क्या हैं? मान्यता है कि एक भी नियम टूटने पर कांवड़ यात्रा असफल हो जाती है और मनोकामना अधूरी रह जाती है।

डाक कांवड़ क्या है?

डाक कांवड़, सावन मास में भगवान शिव की पूजा के लिए किया जाने वाला कांवड़ यात्रा का एक विशेष और बेहद कठिन रूप है। इसमें शिव भक्त बिना रुके और बिना आराम किए गंगाजल लेकर दौड़ते हुए या तेज गति से चलते हुए उत्तराखंड के हरिद्वार या बिहार के सुल्तानगंज से या अन्य स्थानों से अपने गंतव्य शिवालय तक जाते हैं और जल अर्पित कर अपनी यात्रा समाप्त करते हैं।

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बता दें, बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल उठाने के बाद डाक कांवड़िया झारखंड के देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम तक की लगभग 105 किलोमीटर की दूरी 24 घंटे के भीतर पूरी करते हैं। इसका वहां बाकायदा रिकॉर्ड रखा जाता है।

क्यों कठिन है डाक कांवड़ यात्रा?

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डाक कांवड़ इसलिए भी कठिन है कि कांवड़िया भोजन और पानी भी सीमित मात्रा में ग्रहण करते हैं, ताकि शौच न लगे। बता दें, यात्रा के समय मल-मूत्र का त्याग तक नहीं किया जाता है। शौच लगने के बाद रुकने पर डाक कांवड़ में नियम की अवहेलना से यात्रा खंडित हो जाती है। दरअसल, कांवड़ यात्रा के इस विशेष प्रकार में शिव भक्तों को अपनी शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत अधिक क्षमता का प्रदर्शन करना होता है।

डाक कांवड़ के महत्वपूर्ण नियम

  • डाक कांवड़ को नंगे पांव तेज गति से चलकर या दौड़कर पूरा करना होता है।
  • यात्रा के समय मल-मूत्र का त्याग तक नहीं किया जाता है।
  • डाक कांवड़िया केवल एक बार स्नान कर गंतव्य शिवालय में भगवान शिव का जलाभिषेक के बाद ही दोबारा नहा सकते हैं।
  • यह कांवड़ यात्रा भोजन और पानी के सीमित सेवन से करना होता है।
  • यात्रा बिना रुके और बिना आराम किए यात्रा पूरी करनी होती है।
  • इसके लिए एक निश्चित बाना यानी ड्रेस धारण किया जाता है, ताकि भीड़ में आसानी पहचाने जा सकें और आगे जाने के लिए रास्ता मिल सके।
  • इन्हें ‘डाक बम’ और ‘बोल बम’ का जयकारा लगाना अनिवार्य होता है।
  • इन नियमों के साथ ही डाक कांवड़िया को कांवड़ यात्रा के सामान्य नियमों का पालन भी करना होता है।

डाक कांवड़ का महत्व

सदियों से डाक कांवड़ यात्रा भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह श्रद्धा, भक्ति और आत्मबल का प्रतीक है। भगवान शिव के प्रति अत्यधिक भक्ति और समर्पण का यह प्रदर्शन बिना आत्म-संयम और अनुशासन के अभ्यास के संभव नहीं है। मान्यता है कि इसे एक बार करने से इस जन्म सहित पिछले सभी जन्मों के पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस यात्रा को आत्म-शुद्धि कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का साधन भी माना गया है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र पर आधारित हैं और केवल जानकारी के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Shyam Nandan

First published on: Jul 20, 2024 06:08 AM

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