Santhara Ritual: जैन धर्म एक पुराना और खास धर्म है। इस धर्म को मानने वाले लोग अहिंसा, सादगी से जीवन जीते हुए अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं। इस धर्म में संथारा एक बहुत खास आध्यात्मिक प्रथा है, जिसे सल्लेखना या समाधिमरण भी कहते हैं। यह एक ऐसा तरीका है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के आखिरी समय में खाना और पानी धीरे-धीरे छोड़ देता है, ताकि वह शांति के साथ मृत्यु को स्वीकार कर सके। संथारा का मकसद आत्मा को साफ करना और मोक्ष यानी जन्म-मृत्यु के चक्कर से आजादी पाना है।
संथारा का मतलब शरीर और बुरे विचारों, जैसे लालच, गुस्सा या मोह, को कम करना है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी मर्जी और शांत मन से खाना और पानी छोड़ता है। ऐसा वह व्यक्ति तब करता है जब उसे लगता है कि उसका शरीर अब कमजोर हो गया है या मृत्यु करीब है। यह आत्महत्या से बिल्कुल अलग है, क्योंकि आत्महत्या गुस्से, दुख या हताशा की वजह से होती है, जबकि संथारा पूरी शांति और धार्मिक मकसद के साथ किया जाता है। जैन धर्म में इसे ‘समाधिमरण’ कहते हैं, यानी ऐसी मृत्यु जो आत्मा को शांति और सम्मान दे।
जैन धर्म में संथारा को मृत्यु का जश्न माना जाता है। यह व्यक्ति को अपने आखिरी समय में डर, दुख या बुरे विचारों से आजादी देता है। जैन ग्रंथों में संथारा को आत्मा को साफ करने का एक खास रास्ता बताया गया है। इसे शुरू करने से पहले व्यक्ति अपने गुरु से इजाजत लेता है और फिर ध्यान, प्रार्थना और धार्मिक किताबें पढ़ने में समय बिताता है। यह प्रथा न सिर्फ व्यक्ति को शांति देती है, बल्कि उसके परिवार और आसपास के लोगों को भी मृत्यु को सकारात्मक नजरिए से देखने की सीख देती है।
क्यों चर्चा में है संथारा?
भोपाल में रहने वाले एक दंपति ने एक ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित अपनी 3 साल की बेटी वियाना को संथाना अनुष्ठान कराया है। जिसे बाद उस बच्ची ने अपनी देह का त्याग कर दिया। बच्ची के माता-पिता के अनुसार वे उसे इस तकलीफ में देख नहीं पा रहे थे। काफी इलाज के बाद भी उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं था।
इस कारण राजेश मुनि महाराज के बच्ची को संथारा कि दीक्षा दिलाकर उसका अन्न व पानी छुड़वा दिया गया था। इसके बाद 10 मिनट में ही बच्ची ने देह त्याग कर दिया था। यह बच्ची सबसे कम उम्र में संथारा लेने वाली शख्स बन गई है। बच्ची का नाम ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज किया गया है।
क्या हैं संथारा के नियम?
- संथारा शुरू करने से पहले जैन गुरु या आचार्य की इजाजत लेनी जरूरी है, ताकि यह पक्का हो कि फैसला सोच-समझकर लिया गया है।
- संथारा सिर्फ अपनी मर्जी से किया जा सकता है। किसी का दबाव या मजबूरी इसमें नहीं होनी चाहिए।
- खाना और पानी धीरे-धीरे छोड़ा जाता है। पहले एक वक्त का खाना बंद करते हैं, फिर धीरे-धीरे पूरी तरह उपवास शुरू करते हैं।
- संथारा के दौरान धार्मिक माहौल रखा जाता है, जिसमें जैन किताबें पढ़ना, णमोकार मंत्र का जाप और धार्मिक बातें करना शामिल है।
- व्यक्ति अपनी जिंदगी की गलतियों के लिए माफी मांगता है और सबके प्रति नफरत या गुस्सा छोड़कर मन को साफ रखता है।
- अगर कोई अहिंसक इलाज मुमकिन हो, तो उसे अपनाया जाता है। संथारा तब शुरू होता है, जब इलाज का कोई रास्ता न बचे।
- संथारा ज्यादातर बुजुर्ग, गंभीर बीमार लोग या वे लोग लेते हैं, जिन्हें लगता है कि उनका शरीर अब धर्म के काम नहीं आ सकता है।
संथारा का क्या है महत्व?
संथारा जैन धर्म की गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक सोच को दिखाता है। यह व्यक्ति को अपने आखिरी समय में अपनी जिंदगी का हिसाब-किताब करने और आत्मा को साफ करने का मौका देता है। यह प्रथा सिर्फ मृत्यु को आसान बनाने के लिए नहीं है, बल्कि यह समाज को सिखाती है कि मृत्यु को डर की बजाय शांति और सम्मान के साथ देखना चाहिए। संथारा व्यक्ति को अपने कर्मों को कम करने और आत्मा को मोक्ष के करीब ले जाने में मदद करता है। यह प्रथा जैन धर्म के अहिंसा और आत्म-नियंत्रण के सिद्धांतों को और मजबूत करती है।
इस प्रथा को लेकर हुआ था विवाद
संथारा को लेकर 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया था। कोर्ट ने संथारा को आत्महत्या मानते हुए इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया और कहा कि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत अपराध है। इस फैसले से जैन समुदाय में काफी नाराजगी फैली, क्योंकि वे इसे अपनी धार्मिक प्रथा और आध्यात्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं।
जैन समुदाय और संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 31 अगस्त 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संथारा एक धार्मिक प्रथा है और इसे आत्महत्या से जोड़ना सही नहीं है। कोर्ट ने इस मामले को और गहराई से देखने की बात कही और राजस्थान सरकार व केंद्र सरकार को चार हफ्तों में जवाब देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि संथारा जैन धर्म की अहिंसा और आत्मशुद्धि की सोच से जुड़ा है, जो इसे आत्महत्या से अलग करता है। इस रोक के बाद जैन समुदाय को संथारा की प्रथा को जारी रखने की इजाजत मिल गई। हालांकि, यह मामला अभी पूरी तरह सुलझा नहीं है और सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई बाकी है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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