Krishna Story: महाभारत के 16वें अध्याय ‘मौसुल पर्व’ में भगवान कृष्ण के यादव वंश के विनाश का विस्तार से वर्णन किया गया है। यादव वंश का अंत भगवान कृष्ण की आंखों से सामने यादवों के आपस में लड़ने से हुआ था, जिसे वे और बलराम जी रोक नहीं पाए थे। इस लड़ाई को ‘मौसुल युद्ध’ कहा गया है, जिसमें श्रीकृष्ण के वृष्णि वंश के अधिकांश लोग मारे गए थे।
भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु
यादवों के विनाश से दुखी श्रीकृष्ण द्वारिका छोड़ प्रभास क्षेत्र चले गए थे। एक वहां एक वृक्ष के नीचे विश्राम करते समय एक भील ने भूल से उनके पांव में जहरीला तीर मार दिया। इसी को बहाना बनाकर भगवान कृष्ण ने देह को त्याग दिया। इसके बाद बलराम जी ने भी समुद्र में जल-समाधि ले ली। यादव वंश में दो ही पुरुष बचे थे, भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ और उनके पिता वसुदेव जी।
यदुवंशी स्त्रियों का दुःख देख रो पड़े अर्जुन
जब यह समाचार हस्तिनापुर में अर्जुन के पास पहुंचता है, तो वे द्वारिका पहुंचते हैं। उन्हें देखते ही भगवान श्रीकृष्ण की सभी पत्नियां और यदुवंशी महिलाएं बिलख-बिलखकर रोने लगती हैं। इन स्त्रियों ने पति, पुत्र और संबंधियों को खोया था। वे स्त्रियां विलाप कर कहती हैं, “हे कृष्णसखा अर्जुन! अब हमारा इस दुनिया में कौन है?” उनके आर्तनाद को सुनकर वीरों के वीर अर्जुन भी रो पड़ते हैं। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगती है।
वसुदेव जी ने बताया द्वारिका का राज
भगवान कृष्ण की पत्नियों से मिलने के बाद जब अर्जुन मामा वसुदेव से मिले तो वे अर्जुन को देखते ही उसे गले लगाकर रोने लगे। श्रीकृष्ण और बलराम जी का वियोग और यादव वंश के खात्मे से वे दोहरे हो गए थे। वे अर्जुन से कहते हैं, “हे कौन्तेय! श्रीकृष्ण ने कहा था कि तुम आओगे और तुम ही अब इन स्त्रियों के बारे में निर्णय लोगे। तुम्हारे यहां से चले जाने के बाद समुद्र इस द्वारिका नगरी को डुबो देगा।” थोडा ठहर कर वे फिर बोलते हैं, “मेरा भी अंतिम समय निकट है, मेरा अंतिम संस्कार भी तुम ही करोगे।” ये सब बातें सुनकर अर्जुन बहुत दुखी हो जाते हैं। वे फिर रो पड़ते हैं।
वसुदेव जी की मृत्यु
अर्जुन के सिर पर द्वारिकवासियों को बचाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी। मन ही मन दुखी अर्जुन वृष्णिवंश के मंत्रियों से मिलते हैं। इसके बाद वे नगर के बचे सभी स्त्री, बालक और बूढ़ों को वहां से इंद्रप्रस्थ ले जाने के लिए इंतजाम करने में जुट जाते हैं। अर्जुन उस रात द्वारिका में ही रुकते हैं। सुबह समाचार मिलता है कि वसुदेव जी ने प्राण त्याग दिए थे। द्वारिका नगरी एक बार फिर महिलाओं के रूदन-विलाप और आंसुओं से बिलखने लगती है।
यादवों का अंतिम संस्कार
अर्जुन ने अपने मामा वसुदेव के अंतिम संस्कार के साथ उन सभी यादवों का अंत्येष्टि कर्म किया, जो आपस में लड़कर मारे गए थे। लेकिन उनका दिल तब फट पड़ा जब वसुदेव जी चिता में आग लगा दी गई तो उनकी चारों पत्नियां—देवकी, भद्रा, रोहिणी और मदिरा—भी उस चिता पर जा बैठीं। यह भयानक दृश्य महाभारत में मारे गए लाखों लोगों की मौत से ज्यादा भयानक था।
देखते ही देखते समुद्र में समा गई द्वारिका
सभी के अंत्येष्टि कर्म के 7वें दिन प्रेतविधि कर्म करके अर्जुन सभी द्वारिकावासियों के साथ वहां से निकल पड़े। उनके साथ रथ, घोड़े, ऊंट, बैल, जो भी सवारी संभव हो पाई उसपे सवार हो चल पड़े। द्वारिकावासियों के साथ ही भगवान कृष्ण की आठों पत्नियां और श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ भी थे।
अर्जुन इन सभी लोगों के साथ जैसे ही द्वारिका से निकलते ही संपूर्ण नगरी देखते ही देखते समुद्र में डूब जाती है। इस अद्भुत दृश्य को अर्जुन और द्वारिकावासी अपनी आंखों से देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। ऐसा लग रहा था मानो समुद्र द्वारिका को डुबोने का इंतजार कर रहा था। यह देव की अद्भुत लीला थी। समुद्र तब तक रुका रहा, जब तक कि हम सभी द्वारिका के बाहर नहीं निकल जाते हैं।
लुटेरों का आक्रमण, दिव्यास्त्रों का मंत्र भूले अर्जुन
भयानक जंगल, बीहड़, नदी-नाला को पार जब कारवां पंचनद देश पहुंचता है, वे लोग वहां पड़ाव डालते हैं। वहां रहने वाले लुटेरों को जब वहां ठहरे कारवां की खबर मिलती है, तो वे धन के लालच में उन पर धावा बोल देते हैं। वे सिर्फ स्वर्ण आदि ही नहीं लूटते हैं बल्कि सुंदर और जवान महिलाओं को भी लूटते हैं। चारों ओर हाहाकार मच जाता है। लुटेरों से लड़ने के लिए अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने के लिए मंत्र का स्मरण करते हैं, लेकिन उन्हें कोई मंत्र याद नहीं आता है। देखते ही देखते लुटेरे बहुत-सा धन, सोना और स्त्रियों को लेकर भाग जाते हैं। खुद को असहाय पाकर अर्जुन को बहुत दुख होता है। वे समझ नहीं पाते हैं कि क्यों और कैसे उनकी अस्त्र-विद्या लुप्त हो गई?
श्रीकृष्ण की पत्नियों ने चुना ये रास्ता!
अर्जुन भगवान कृष्ण के पत्नियों, अन्य स्त्रियों, बच्चों और वज्रनाभ को जैसे-तैसे लेकर इंद्रप्रस्थ पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण के परपोते वज्रनाभ को वे इंद्रप्रस्थ का राजा नियुक्त कर देते हैं। साथ आए द्वारिकावासियों के रहने की समुचित व्यवस्था करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की 8 रानियां थीं- रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवंती, कालिंदी, मित्रविंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इन सभी ने अपनी-अपनी नियति के बारे में निर्णय ले लिया था। इनमें से रुक्मिणी और जाम्बवंती एक विशाल चिता तैयार कर जीवित ही जलती अग्नि में प्रवेश कर जाती हैं। वहीं श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियां देवी सत्यभामा के साथ तपस्या का निश्चय कर वन में चली जाती हैं। इस तरह भगवान कृष्ण का वंश, द्वारिकावासी और उनकी पत्नियां उनकी मृत्यु के बाद बिखर जाती हैं।
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