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Religion

6 जुलाई से महादेव थामेंगे सृष्टि की बागडोर, अब 4 महीनों तक बंद करने होंगे ये 8 काम

आगामी 6 जुलाई के बाद से सृष्टि के पालनहार बदलने वाले हैं। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरिविष्णु 4 महीने के योग निद्रा में चले जाएंगे और इस दौरान सृष्टि का कार्यभार देवों के देव महादेव पर आ जाएगा। इन चार महीने की अवधि को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने के बाद कुछ कार्यों को करने वर्जित माना जाने लगेगा।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Jul 5, 2025 01:22
Shiv ji-Vishnu ji
सांकेतिक फोटो, Credit- News24 Graphics

6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी मनाई जाएगी, जो हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र दिन है। इस दिन से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा (दिव्य निद्रा) में चले जाएंगे। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है। वहीं, इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 2 नवंबर 2025 को पड़ेगी। इस दौरान सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। आइए जानते हैं कि इस अवधि में कौन-कौन से कार्य वर्जित हैं और सृष्टि के स्वामी के बदलने का कारण क्या है?

योग निद्रा में क्यों चले जाते हैं भगवान विष्णु?

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में अपनी शेषनाग की शय्या पर योग निद्रा में चले जाते हैं। यह अवधि चातुर्मास कहलाती है, जिसमें भक्त आत्म-चिंतन, भक्ति, तप और साधना में लीन होकर आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। इस समय को भक्ति और तप के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दौरान मानसून का मौसम होता है। इस समय पर्यावरण में नमी बढ़ने से सूक्ष्म जीवों का प्रकोप बढ़ता है, और साधु-संत एक स्थान पर रहकर ध्यान और भक्ति में समय बिताते हैं।

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चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है और यह अवधि भगवान विष्णु के प्रबोधिनी एकादशी को जागने के साथ समाप्त होती है। इस दौरान भगवान शिव सृष्टि के संचालन का दायित्व संभालते हैं और इसलिए इस अवधि में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।

क्यों बदलते हैं सृष्टि के स्वामी?

हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता हैं, जबकि भगवान शिव संहारक और परिवर्तन के देवता हैं। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसे उनकी सृष्टि के संचालन से विश्राम की अवधि माना जाता है। इस दौरान सृष्टि की निरंतरता और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए भगवान शिव कार्यभार संभालते हैं।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु इस अवधि में पाताल के राजा बलि के यहां पर निवास करते हैं। यह कथा वामन अवतार से जुड़ी है, जहां भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी और उन्हें पाताल लोक का स्वामी बनाया था। इस दौरान भगवान विष्णु उनके यहां पर रहते हैं, और सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह चार महीने वर्षा ऋतु में पड़ते हैं, जब सूर्य और चंद्रमा की ऊर्जा कमजोर पड़ती है और पर्यावरण में नमी के कारण रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

चातुर्मास में नहीं करने चाहिए ये काम

चातुर्मास के दौरान कुछ कार्यों पर विराम लग जाता है। इस दौरान कई मांगलिक और शुभ कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान विष्णु की योग निद्रा के दौरान शुभ ऊर्जाओं का प्रभाव कमजोर हो जाता है और कार्यों के परिणाम अनुकूल नहीं होते हैं।

  • इस अवधि में विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, क्योंकि यह समय शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है।
  • नए घर में प्रवेश या गृह प्रवेश की रस्में इस अवधि में स्थगित कर दी जाती हैं।
  • बच्चों के मुंडन संस्कार को भी इस समय पर टाला जाता है।
  • जमीन की पूजा या नए निर्माण की शुरुआत इस दौरान नहीं की जाती है।
  • सगाई जैसे नए रिश्तों की शुरुआत भी करना इस समय शुभ नहीं माना जाता है।
  • कुछ विशेष यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान इस अवधि में नहीं किए जाते है।
  • नए व्यापार या परियोजनाओं की शुरुआत को भी इस समय अनुचित माना जाता है।
  • इसके अलावा, चातुर्मास में कुछ खाद्य पदार्थों जैसे प्याज, लहसुन, और तामसिक भोजन (मांस, मछली आदि) से परहेज किया जाता है। इस दौरान सात्विक भोजन अपनाने और झूठ, क्रोध, और आलस्य से बचना चाहिए।

चातुर्मास में करें ये काम

  • चातुर्मास भक्ति और आत्म-शुद्धि का समय है। इस दौरान कुछ कार्यों को करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
  • एकादशी और सावन माह के व्रत, बहुत पुण्यकारी माने जाते हैं।
  • भगवान विष्णु और शिव की पूजा, विष्णु सहस्रनाम, भगवद् गीता, और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ नमः शिवाय’ जैसे मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायी है।
  • गरीबों को भोजन और धन का दान करना इस दौरान विशेष महत्व रखता है।
  • सावन के महीने में रुद्राभिषेक भी किया जा सकता है।
  • इस समय ध्यान, शास्त्रों का अध्ययन, और भक्ति में समय बिताना चाहिए।

राजा मंधाता के राज्य में लौटी थी खुशहाली

पद्म पुराण के अनुसार, राजा मंधाता के राज्य में तीन वर्षों तक भयंकर सूखा पड़ा था। उनके प्रजा की पीड़ा को देखकर राजा ने ऋषि वशिष्ठ से समाधान पूछा। ऋषि ने उन्हें देवशयनी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। राजा और उनकी प्रजा ने इस व्रत का पालन किया, जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु की कृपा से वर्षा हुई और राज्य में समृद्धि लौट आई।

देवशयनी एकादशी और चातुर्मास का समय आध्यात्मिक विकास और आत्म-शुद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 6 जुलाई 2025 से शुरू होने वाला यह समय भक्तों को भगवान विष्णु और शिव की भक्ति में लीन होने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं, जो हिंदू धर्म में संतुलन और सामंजस्य का प्रतीक है। मांगलिक कार्यों से परहेज और आध्यात्मिक साधना पर ध्यान केंद्रित करके भक्त अपने जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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First published on: Jul 04, 2025 05:05 PM

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