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Anusuya Jayanti 2025: कब है सती अनुसूया जयंती? जानें त्रिदेव से जुड़ी कहानी

Anusuya Jayanti 2025: वैशाख मास में सती अनुसूया जयंती होती है। सती अनुसूया और ब्रह्मा, विष्णु और महेश से जुड़ी कौन सी कहानी है? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

Author Edited By : Simran Singh Updated: Apr 15, 2025 13:59
Anusuya Jayanti 2025 Date
अनुसूया जयंती 2025

Anusuya Jayanti 2025 Date: श्री हरि विष्णु के प्रिय मास वैशाख मास की शुरुआत हो चुकी है। इस मास को स्वयं ब्रह्मा जी ने सभी महीनों में सबसे उत्तम बताया है। इस तरह से पवित्र वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सती अनुसूया की जयंती है। सती अनुसूया की कहानी त्रिदेव- भगवान ब्रह्म, विष्णु और महेश से संबंधित है। धर्म की अच्छी खासी जानकारी रखने वाली नम्रता पुरोहित कांडपाल ने सती अनुसूया जयंती से जुड़ी खास जानकारी दी है, आइए विस्तार से जानते हैं।

कब है सती अनुसूया जयंती?

इस साल 17 अप्रैल गुरुवार को सती अनुसूया जयंती है। प्रजापति कर्दम और देवहूति की नौ कन्याओं में से एक कन्या अनुसूया हैं जो ऋषि अत्रि की पत्नी हैं। उनकी जयंती मनाई जाएगी। मां अनुसूया के पतिव्रत धर्म के आगे सभी देवता गण भी नतमस्तक होते है। उनके सतीत्व का तेज इतना अधिक था कि जब आकाश मार्ग से देवतागण भी निकलते थे तो उन्हें भी उनके तेज का अनुभव होता था।

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माता अनुसूया को गिनती द्रोपदी, सुलोचना, सावित्री, मंदोदरी समेत पांच सतियों में होती है। घोर तपस्या कर मंदाकिनी नदी को पृथ्वी पर उतारने का श्रेय भी सती अनुसूया को ही जाता है।

अनुसूया जयंती के दिन अखंड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाएं व्रत और पूजन करती है। इस दिन लकड़ी के पाटे पर पीला वस्त्र बिछाकर बालू या मिट्टी से ऋषि अतिृ और माता अनुसूया की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है। उन्हें दूर्वा, चंदन अक्षत और पीले पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

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अनुसूया और त्रिदेव से जुड़ी कहानी

कहा जाता है कि एक बार नारद ऋषि पृथ्वी पर भ्रमण करने निकले तब उन्होंने सती अनुसूया की पति व्रत धर्म की चर्चा सुनी उनके तेज और उनकी तपस्या को देखा तब उन्होंने तीनों देवियों मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां पार्वती के पास जाकर ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया की प्रशंसा की तब माता ने त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश से अनुरोध किया कि आप अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेकर आएं।

त्रिदेव इसके लिए तैयार हुए और पृथ्वी लोक आ पहुंचे ऋषि अत्रि के आश्रम के बाहर जाकर उन्होंने माता अनुसूया से भिक्षा मांगी और कहां की हम भिक्षा आपकी तभी स्वीकार करेंगे जब आप निर्वस्त्र होकर हमें भोजन कराएगी तब मां अनुसूया ने कहां जैसी आपकी इच्छा। ऐसा कहने के बाद माता अनुसूया ने अपने हाथ में जल लिया अपने पति को याद किया और मन ही मन कहा की मेरा पतिव्रत धर्म अखंड है तो यह तीनों अतिथि इसी क्षण बाल रूप में आ जाए और उन्होंने यह जल लेकर तीनों अतिथियों पर छिड़क दिया। जल छिड़काव से उसी क्षण त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश शिशु रूप में आ गए और फिर मां अनुसूया ने उन्हें भोजन करवाया और तीनों शिशुओं को पालने में सुला दिया।

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इधर समय बीत जाने पर जब तीनों देव वापस नहीं लौटे तो तीनों देवियां नारद ऋषि के साथ पृथ्वी लोक पर आई अनुसूया के आश्रम पहुंचकर उन्होंने देखा कि पालने में तीन शिशु सो रहे हैं तब उन्होंने अपनी भूल का पश्चाताप किया और माता अनुसूया से प्रार्थना की कि उनके तीनों ही शिशु मूल स्वरूप में आ जाए। माता अनुसूया ने तीनों पर जल का छिड़काव किया तो त्रिदेव पहले जैसे ही हो गए और त्रिदेव ने उन्हें माता अनुसूया को यह वरदान दिया कि वो तीनों ही उनके गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे और तीनों ही दत्तात्रेय भगवान के रूप में माता अनुसूया और ऋषि अत्रि के वहां जन्में।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Simran Singh

First published on: Apr 15, 2025 01:59 PM

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