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Opinion

Maha kumbh जानें से पहले जरूर पढ़ लें ये खबर, प्रयागराज से लौटकर शेयर की आपबीती

Maha kumbh से लौटकर: मैं ज्योति सिंह भोले बाबा की कृपा से Maha kumbh से मां के साथ दिल्ली सही सलामत लौट आई हूं। प्रयागराज की यात्रा के दौरान क्या-क्या दिक्कतें मैने झेलीं, वो बताना चाहती हूं, ताकि कोई और जाए तो पहले से इसके लिए तैयार रहे।

Author Edited By : Jyoti Singh Updated: Feb 13, 2025 12:39
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Maha kumbh 2025. (File Photo)

Maha kumbh से लौटकर: दिनांक 8 फरवरी 2025, गाजियाबाद कौशांबी बस अड्डे से रात 9 बजे मैं अपनी मां के साथ प्रयागराज के लिए बस से रवाना हुई। बस का सफर कानपुर पहुंचने तक सुहावना था, उसके बाद परेशानियां शुरू। 24 घंटे बस में सफर करने के बाद मैं प्रयागराज से 30 किमी दूर हाईवे बस स्टैंड पर पहुंची। सुनकर झटका लगा कि अब 30 किमी पैदल यात्रा करनी होगी क्योंकि पूरा रोड जाम है।

सड़कों पर दिखा भयंकर जाम

9 फरवरी 2025 की प्रयागराज में वो मेरी पहली रात थी, जब सड़कें श्रद्धालुओं, बस और गाड़ियों से भरी थीं। जाम की वजह से मुझे करीब 25 किमी तक पैदल चलना पड़ा। पुलिस अनाउंस कर रही थी कि लोग जहां हैं, वहीं से वापस लौट जाएं। फाइनली हमें शहर के लोकल बाइकर्स मिले जिन्होंने मुझे गांव के रास्ते से बस स्टैंड तक पहुंचाया। यहां का नजारा अलग ही था क्योंकि एक घंटे बाद एक बस आती थी और एक झटके में भीड़ से भर जाती थी। जैसे-तैसे मैं भी बस में घुसी और एक पैर पर खड़े होकर मैंने 6 किमी का सफर तय किया।

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प्रतिकात्मक फोटो

6 किमी पहुंचने में लगे 3 घंटे

सड़कों पर ऐसी भयंकर जाम थी कि सिर्फ 6 किमी पहुंचने में मुझे करीब 3 घंटे लग गए थे। इसके बाद बस ने हमें एक चौराहे पर उतारा जहां से 5-6 किमी पैदल यात्रा करनी थी। थकान में चूर होने के बावजूद मुझे पैदल चलना पड़ा और रात 3 बजे मैं फाइनली महाकुंभ पहुंची। यहां सरकार की तरफ से श्रद्धालुओं के लिए बेड मुहैया कराए गए थे। यहां एक बेड की कीमत 100 रुपये थी। सिर्फ 24 घंटे के लिए मिले इन बेड के साथ सिर्फ एक हल्का सा कंबल दिया गया था जो ठिठुरन वाली ठंड में परेशान करने के लिए काफी था।

घाट का हाल था बेहाल

अगली सुबह मैं संगम घाट पर पहुंची और वहां का नजारा बिल्कुल हैरान करने वाला था। सारे बाथरूम गंदे पड़े थे। घाट पर कचरे का ढेर लगा हुआ था। महिलाओं के लिए बनाए गए चेंजिंग रूम के दरवाजे टूटे हुए थे और गंगा के किनारे कचरे का ढेर लगा हुआ था। उस दिन पहली बार पवित्र गंगा में डुबकी लगाने का मन नहीं हुआ। मैं इतना परेशान हो चुकी थी कि बस मन में यही था कि कैसे यहां से भाग निकलूं। सुरक्षा के लहजे से जगह-जगह पुलिस और जवान तैनात थे लेकिन उनके पास आपके सवालों के सटीक जवाब नहीं थे।

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वापस आना भी नहीं था आसान

तेज धूप में पैदल चलते-चलते मैं पूरी तरह से थक कर टूट चुकी थी। पूछताछ केंद्र पर पुलिस से जब पूछा कि दिल्ली के लिए बस कहां से मिलेगी तो उनका कहना था कि बाहर से ऑटो मिलेंगे जो बस स्टैंड लेकर जाएंगे। लेकिन दिल्ली के लिए डायरेक्ट बस नहीं मिलेगी इसके लिए लखनऊ जाना हाेगा। ये सुनकर मेरा दिमाग घूम गया और मैंने डिसाइड किया कि मैं रेलवे स्टेशन जाऊंगी। स्टेशन तक जाने के लिए ई-रिक्शा वाले 500 रुपये तक की डिमांड कर रहे थे।

ट्रेन में थी खचाखच भीड़

जैसे-तैसे मैं ऑटो से प्रयागराज के बड़े स्टेशन पहुंची जहां भीड़ देखकर मेरा दिमाग चकरा गया। स्टेशन का सीधा रास्ता बंद था और पैदल चलकर दूसरे मार्ग से स्टेशन जाना था। स्टेशन पर भीड़ इतनी ज्यादा थी कि पूछो ही मत। यहां पता चला कि सरकार ने श्रद्धालुओं के लिए एक पैसेंजर ट्रेन चलाई है। उस ट्रेन में किसी तरह भीड़ के बीच मैंने एक जगह बनाई और बैठ गई। उस पैसेंजर ट्रेन ने 6 घंटे में मुझे कानपुर पहुंचाया।

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बुरे सपने की तरह रही पूरी यात्रा

कानपुर पहुंचते ही अनाउंसमेंट हुआ कि ये ट्रेन आगे नहीं जाएगी और दूसरी ट्रेन दूसरे प्लेटफॉर्म पर खड़ी है। मैंने सोचा कि इतनी भीड़ में बैठने से अच्छा है कि मैं जरनल टिकट लेकर किसी एक्सप्रेस ट्रेन में बैठ जाऊं। मैंने ठीक ऐसा ही किया और सोगरिया-नई दिल्ली ट्रेन में चढ़ गई। यहां मुझे पेनाल्टी के साथ टीटी को 2000 रुपये देने पड़े जिसके बाद मुझे ट्रेन में चढ़ने का मौका मिला। किसी तरह खड़े हुए मैंने रात काटी और अगली सुबह दिल्ली पहुंची। यहां पहुंचते ही मानो मेरी जान में जान आई। ये पूरा सफर मेरे लिए किसी भयानक सपने से कम नहीं था।

First published on: Feb 12, 2025 04:18 PM

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