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Opinion

जितने हम उतने तुम… समाज की पितृसत्ता पर सवाल उठाती फिल्म ‘आप जैसा कोई’

Aap Jaisa Koi Opinion: हाल ही में रिलीज हुई आप जैसा कोई फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह ओपिनियन सामने आ रहे हैं। इस फिल्म के जरिए समाज में महिलाओं की स्थिति में किन चीजों का बदलाव होना चाहिए, इस पर खुलकर बात की गई है।

Author Written By: Shabnaz Author Published By : Shabnaz Updated: Jul 20, 2025 11:50
Aap Jaisa Koi Review
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Aap Jaisa Koi Opinion: एक तरफ मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता परोसी जा रही है, तो दूसरी तरफ कुछ कहानियां ऐसी भी सामने आती हैं जो समाज का आईना होती हैं। ऐसे ही समाज को आईना दिखाने वाली एक फिल्म ”आप जैसा कोई” 11 जुलाई को नेटफ्लिक्स पर रिलीज की गई। इस फिल्म की कहानी कुछ लोगों को घिसी-पिटी लग सकती है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में समाज में महिलाओं के मुद्दों को उठाने वाली कई फिल्में बनाई जा चुकी हैं। इस फिल्म को देखने वालों के अपने नजरिए हो सकते हैं।

फिल्म नहीं आईना है ‘आप जैसा कोई’

फिल्म वैसे तो दो किरदारों और उनके दो परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। मगर इन दो परिवारों में महिलाओं की स्थिति एकदम अलग देखने को मिलेगी। कहानी शुरू होती है फिल्म के नायक श्रीरेणु त्रिपाठी (आर. माधवन) के साथ, जिसकी उम्र 30 साल के ऊपर जा चुकी है, लेकिन अब तक वह किसी भी लड़की के साथ रिलेशन में नहीं रहा है।

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एक पुरुष प्रधान परिवार

नायक का परिवार अपने घर के लड़के, जो कि एक संस्कृत टीचर है उसकी शादी के लिए लड़की खोज रहा है। लड़के के परिवार में उसका बड़ा भाई, भाभी और भतीजी मुख्य भूमिका में है। इन किरदारों पर हम बाद में आएंगे। पहले ये जान लें कि इस परिवार में पुरुष प्रधानता है, जहां पर औरतों को पढ़ाना-लिखाना जरूरी समझा जाता है, लेकिन उससे कहीं अधिक ध्यान उनके किचन में परफेक्ट खाना बनाने पर दिया जाता है।

Aap Jaisa Koi

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सुंदर महिला के किरदार पर उठते सवाल

एक अच्छी महिला होने के लिए समाज में कई पैमाने बताए गए हैं। महिला का सुंदर होना चाहिए, वह पढ़ी-लिखी भी हो, वो नौकरी भी करती हो, घर का सारा काम भी करती हो, लेकिन साथ ही उसको अपनी लिमिट्स भी पता होनी चाहिए। लेकिन सवाल ये उठता है कि एक महिला के लिए कौन सी लिमिट्स होनी चाहिए। कोई लड़का सिंगल है जो किसी से प्यार भरी बातें करना चाहता है। उसके लिए वह ”आप जैसा कोई” नाम के ऐप पर अपना अकाउंट बनाता है, जहां पर वह उन्हीं लड़कियों से बात करता है जिनके लिए वह लिमिट तय करता है।

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”कैरेक्टरलेस” के पैमाने पर खरी उतरती नायिका

इस फिल्म में जिन्होंने नायिका का किरदार निभाया है, वह मधु बोस (सना शेख फातिमा) हैं। उन्होंने एक कोलकाता की लड़की का किरदार निभाया है। जैसा की सभी जानते हैं बंगाली लड़की मतलब खूबसूरत और काला जादू करने वाली। सोशल मीडिया पर इस ”मिथ” पर इतने ज्यादा मीम्स बनाए गए कि यह बहुत ही नॉर्मलाइज कर दिया गया है। जिसको आसानी से खत्म भी नहीं किया जा सकता है। मधु बोस एक बेहद ही खूबसूरत और बोल्ड किस्म की लड़की है। जिसका रिश्ता मधु के मामा जो कि श्री के पड़ोसी हैं, वह श्री से तय कराते हैं।

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यहीं से शुरू होती है पुरुष प्रधानता

चूंकि मधु खूबसूरत है, पढ़ी-लिखी है और नौकरी करती है, लेकिन 32 साल तक उसकी शादी नहीं हो पाती है। जिस तरह की मानसिकता का हमारा समाज है उसमें ये सवाल आना तो बनता है कि ”सबकुछ सही है फिर भी शादी नहीं हुई, कोई तो कमी होगी।” लड़का जो खुद एक ऐप पर लड़की से बातें कर रहा है वह मान नहीं पाता कि मधु का ”कैरेक्टर” सही होगा। उसके लिए वह जासूसी कराता है। लेकिन पुरुषों को ये समझना होगा कि अगर किसी लड़की की 32 की उम्र तक शादी नहीं हुई है, तो ये जरूरी नहीं कि उसमें कोई कमी हो। हो सकता है कि वह अपना अच्छा बुरा समझती हो। हो सकता है उसको अभी तक शादी करने का मन न हुआ हो।

लड़का जो करें वो सब सही

हमारे समाज में घर का बेटा चाहे जो करे वो उसको माफ है, क्योंकि वो बेटा है। वहीं, लड़की के मामले में ऐसा नहीं है। लड़की फोन पर किसी से बात करती है तो उसका कैरेक्टर एसेसिनेशन किया जाता है। इस बेहद चर्चा किए जाने वाले मुद्दे को फिल्म में बहुत ही खूबसूरती से उठाया गया है। जब पता चलता है कि श्री आप जैसा कोई ऐप पर जिस लड़की से बात करता है वह मधु ही है, तो उसको कैरेक्टरलैस कहते हुए रिश्ता तोड़ दिया जाता है। हमारे यहां ऐसी कहानी ज्यादातर मधु की होती है।

लॉयलटी भी किसी काम नहीं आती

जब एक लड़की की लॉयलटी किसी काम नहीं आती। असल में भी ऐसा ही होता, कोई नहीं देखता कि इस लड़की ने एक ऐप पर लड़के से बात की, उसको खोजा और फिर उससे शादी करने जा रही थी। यहां एक पुरुष प्रधान समाज से एक सवाल किया जाता है कि ”इस ऐप पर तो दोनों थे फिर मधु पर ही गुस्सा क्यों?” यही भेदभाव होता है, यही पुरुष प्रधानता होती है, जो बेटियों के लिए लिमिट तय करती है।

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महिलाओं को हर काम की इजाजत देते पुरुष

भारतीय समाज, जहां पर आज भी कोई लड़का-लड़की पसंद से शादी कर ले, तो ऑनर किलिंग हो जाती है। लड़कियों के परिवार को डर रहता है कि कहीं बाहर जाकर लड़कियां ”बिगड़” न जाएं। बिगड़ने से ज्यादातर का मतलब होता है कि कहीं किसी के प्यार में न पड़ जाएं। अब ऐसी सोच के साथ वह अपनी बच्चियों को पढ़ाई के लिए बाहर निकलने देते हैं, यही गनीमत है। अपनी बेटियों को वह पढ़ाई की इजाजत देते हैं, नौकरी की इजाजत देते हैं। सवाल यह उठता है कि वह बेटों की तरह ही बेटियों का भी इन सारी चीजों पर हक क्यों नहीं समझते उनको हर चीज की इजाजत क्यों दी जाती है?

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पिता को बेटी की पढ़ाई से ज्यादा चिंता खाने की

एक बेटी जो पढ़ाई में अच्छी है। किसी बड़े कॉलेज में उसे पढ़ने का मौका मिलता है। जहां पर रहने और खाने का खर्च सब कॉलेज वाले ही देने वाले हैं। लेकिन इस बात की खुशी से कहीं ज्यादा चिंता एक पिता को इस बात की है कि पढ़ाई लिखाई तो ठीक है मगर वह खाना बनाना कब सीखेगी?

कॉनोमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1947 से 2024 तक साक्षरता दर में 12 फसदी तक बढ़ोतरी हुई है। इसमें शहरी क्षेत्रों में पुरुष साक्षरता 87.2 फीसदी बताई गई और महिला साक्षरता दर 74.6 फीसदी है।

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हर पीढ़ी की महिला सफर करती है

एक 30 साल की लड़की, एक 18 साल की युवती और एक 40 साल की महिला है, जिसकी अपनी इच्छाएं और अपनी अलग सोच है। 30 साल की लड़की को पता है कि वह आजाद है, खुद का रास्ता चुन सकती है। उसका बॉयफ्रेंड उसके साथ फिजिकल होते हुए यह नहीं पूछ सकता है कि क्या तुम वर्जिन हो? अगर फिर भी कोई इस तरह का सवाल पूछता है, तो वह इतना दम रखती है कि वह उसको सवाल का जवाब दिए बिना बॉयफ्रेंड को एक पल में छोड़कर जा सकती है। फिल्म में मधु बोस का किरदार यही बताता है। सच्चाई ये है कि फिल्म की तरह ही असल जिंदगी में भी मधु बोस जैसी लड़कियां समाज को चुभती हैं।

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40 साल के बाद भी महिला की इच्छाएं हो सकती हैं

रिपोर्ट्स कहती हैं कि जो महिलाएं 40 साल की उम्र पार करती है, उनके शरीर में कुछ हार्मोनल बदलाव देखे जाते हैं। ऐसे ही बदलाव श्री की भाभी के अंदर भी दिखाए गए हैं। इन बदलावों को उनके पति यानी श्री के बड़े भाई ये कहकर नजर अंदाज कर देते हैं कि इस उम्र में उल्टे-सीधे ख्याल आ रहे हैं, खुद को घर के कामों में बिजी रखा करो। वह घर के वो पुरुष हैं जो पानी का गिलास इधर से उधर नहीं रखता है, लेकिन चाय का स्वाद उसको हर बार एक जैसा ही चाहिए होता है। भले ही महिला को चाय दोबारा क्यों न बनानी पड़े।

एक्सट्रामैरिटल अफेयर की शुरुआत

ये तो शहरी कहानी है, जहां पर औरतें घरों से बाहर निकलती हैं। वहीं, गांव की औरतों का क्या होता होगा, जिनकी दुनिया सिर्फ अपने गांव तक ही सिमटी रहती है। क्या उनको किसी ने अपनी इच्छाओं के बारे में बात करते सुना है? उनमें से कितनी महिलाएं होती हैं, जो जिनके पास कुछ हुनर होता है और वो अपना काम कर पाती है? आधे से ज्यादा पुरुष महिलाओं की इच्छाओं की जानने की इच्छा ही नहीं रखते हैं।

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महिलाओं में बढ़ती जाती है भावनात्मक दूरी

चूंकि हम फिल्म के माध्यम से महिलाओं की स्थिति समझ रहे हैं, तो उसी पर वापस आते हैं। जहां पर श्री की भाभी दिन रात अपने पति के ताने सुनती है। जबकि वह हर एक बात का ध्यान रखती है कि चटनी सिल बट्टे पर पीसनी है और खाने में किस मात्रा में क्या डालना है। ये किसी एक महिला की कहानी है नहीं है बल्कि ज्यादातर महिलाओं की है। 2023 में एक रिपोर्ट सामने आई जिसमें 40-55 उम्र की करीब 31 फीसदी महिलाओं ने अपनी शादी शुदा जिंदगी में भावनात्मक दूरी के बारे में कहा था।

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मेल ईगो से रिश्ते नहीं सुधरेंगे

अब पुरुष को ये बात बिल्कुल पता नहीं है कि जो वह दिन जिस तरह से उस महिला के साथ पेश आ रहा है, उससे वह कितनी अंदर ही अंदर कितनी घुट रही है। जब उस महिला को दूसरे पुरुष से प्यार होता है, तब भी पति अपनी पत्नी को दोषी ठहराता और उससे ”माफी” देने की बात कहता है, क्यों? आखिर पुरुषों को कब समझ आएगा कि उनकी प्रेमिका, पत्नी, मां और बहन क्या चाहती हैं? क्यों वो कुछ उन चुनिंदा मर्दों की तरह नहीं हो सकते जो महिलाओं और उनके अधिकारों को समझते हैं।

पढ़ी-लिखी लड़कियां घर ससुराल दोनो तोड़ती हैं

हम अपने आप-पास देखते हैं कि जो लड़कियां पढ़-लिखकर पुरुषों से आगे निकल जाती हैं, उनको कई नाम दिए जाते हैं। गांव में आज भी लोगों के मन में यही बैठा है कि पढ़ी-लिखी, नौकरी करने वाली बहुएं घर तोड़ती हैं। इसे फिल्म के केवल एक डायलॉग ”पढ़ी-लिखी लड़कियां ससुराल और घर दोनो तोड़ती हैं” के जरिए काफी बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। ऐसी सोच वाले जाने कितने उदाहरण हमारे आसपास ही मिल जाएंगे।

अब सोच बदलने की जरूरत है

जिस तरह से देश में महंगाई बढ़ रही है, उससे परिवार में एक पुरुष की कमाई से अच्छा जीवन जीना बहुत मुश्किल है। बशर्ते वह तगड़ी सैलरी न पाता हो। इसके अलावा महिलाओं को नौकरी के लिए आगे उनको मजबूत करने के लिए भी बहुत जरूरी है। घर से बाहर निकलकर आत्मनिरभर हो सकेंगी, मुश्किल के समय में खुद को संभाल पाएंगी।

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खूबसूरती, नौकरी और बच्चों सब संभाल रही लड़कियां

हमने ऐसी 5 लड़कियों से बात की जो शहर में अपने पति के साथ रहती हैं। इन सभी में एक बात ये कॉमन थी कि वह नौकरी के साथ घर संभाल रही हैं, लेकिन अकेले नहीं अपनी ”सास” के साथ। आजकल की सास भी समझती हैं कि क्या सही है और बहुओं को भी कहीं न कहीं ये समझ आया है कि उनको भी परिवार की जरूरत है। अब ये कहना तो गलत होगा कि पढ़ी-लिखी सभी महिलाएं घर तोड़ती हैं। इन महिलाओं का कहना है कि इससे हमें आत्मविश्वास मिलता है। हम अपने परिवार को सपोर्ट कर पा रहे हैं। साथ ही बच्चों की परवरिश भी बेहतर तरीके से हो रही है।

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लड़के वालों को कभी घाटा नहीं होता

हमने देखा है कि दहेज की प्रथा सैंकड़ों सालों से चलती आ रही है। इसको लेकर जो भी अभियान चल रहे हैं या समय-समय पर जो भी पंचायतें होती हैं, वह काफी हद तक विफल साबित हुई हैं। आज भी लड़कों की नौकरी के हिसाब से उनकी बोली लगाई जाती है। हालांकि, कई ऐसी रिपोर्ट्स भी सामने आती हैं, जिसमें लड़का और उसका परिवार दहेज के एकदम खिलाफ होता है। लेकिन जैसा कि फिल्म का एक डायलॉग है कि ”हम लड़के वाले हैं और लड़के वालों को कभी घाटा नहीं होता।”

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दहेज का सिस्टम खत्म होगा

जो ये सोचकर अपनी बेटियों की शादी में दहेज देते हैं कि वह ससुराल में खुश रहेगी, तो उससे बेहतर है कि वह उस पैसे को उनकी पढ़ाई में लगा दें। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखें तो 2017-2022 के बीच भारत में हर साल दहेज हत्या के औसतन मामले 7,000 के करीब दर्ज किए गए हैं। इसमें न जाने ऐसे कितने ही मामले होंगे जो दर्ज नहीं किए गए हैं। बच्चियों की पढ़ाई पर इसलिए ही जोर दिया जाता है ताकि वह अपने फैसले लेने के काबिल बन पाएं, वह अपना हक छीन सकें। गलत को गलत और सही को सही बोल सकें।

जितने हम उतने तुम…

ये महज एक चार शब्दों की लाइन है, लेकिन इसको अगर सब समझ जाएं तो मर्द और औरत के बीच भेदभाव वाली रेखा ही खत्म हो जाएगी। इसके बाद महिलाएं अपनी पसंद का पहन सकेंगी, घूम सकेंगी, पढ़ सकेंगी, खुलकर अपनी राय सबके सामने रखेंगी, समाज के हिसाब से उनकी शादी की उम्र तय नहीं की जाएगी। उनकी खूबसूरती और अच्छे किरदार का पैमाना तय नहीं किया जा सकेगा। वो समाज के डर से खुद को दबाकर नहीं रखेंगी, परिवार के साथ अपनी फीलिंग्स शेयर करेंगी। इसके लिए बस पुरुषों को ‘जितने हम उतने तुम’ वाला कॉन्सेप्ट समझना है।

First published on: Jul 20, 2025 08:44 AM

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