सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के कार्यकाल का आज आखिरी दिन था। हालांकि, वो 9 जून को रिटायर हो रही हैं, लेकिन इस बीच वो छुट्टी पर रहेंगी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में रिटायरमेंट की औपचारिकता आज ही निभा दी गई। उनके आखिरी कार्यदिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से कोई औपचारिक फेयरवेल आयोजित नहीं किया गया। इसे लेकर चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने आपत्ति जताई। आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन की ओर से जजों के रिटायरमेंट पर फेयरवेल आयोजित किए जाते हैं, लेकिन जस्टिस बेला त्रिवेदी के आखिरी कार्यदिवस के मौके पर ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं हुआ।
क्या है सुप्रीम कोर्ट की परंपरा?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की परंपरा रही है कि किसी जज के रिटायरमेंट के आखिरी दिन कुछ समय के लिए कोर्ट नंबर एक यानि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कोर्ट में सेरेमोनियल बेंच बैठती है और मुख्य न्यायाधीश रिटायर हो रहे जज को अपने साथ बैठाते हैं। उस समय सुप्रीम कोर्ट के कुछ सीनियर एडवोकेट उस जज के बारे में अच्छी-अच्छी बातें करते हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। उसमें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी शामिल होते हैं। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश साथी जज के बारे में अच्छी बातें बोलते हैं, इसके बाद वह सेरेमोनियल बेंच उठ जाते हैं। उसके थोड़ी देर बाद CJI की कोर्ट में नियमित कार्यवाही शुरू हो जाती है।
एक और परंपरा निभाई जाती है सुप्रीम कोर्ट में
सेरेमोनियल बेंच के अलावा रिटायर होने वाले जज के सम्मान में सुप्रीम कोर्ट में एक और परंपरा निभाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के संगठन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन फेयरवेल कार्यक्रम रखता है। इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के सभी जज और बार के तमाम पदाधिकारी रिटायर होने वाले जज के बारे में अपने उद्गार व्यक्त करते हैं। रिटायर हो रहे जज भी अपना अनुभव इत्यादि बताकर विदा लेते हैं। इस फेयरवेल कार्यक्रम में रिटायर हो रहे जज के परिवार वाले भी शामिल होते हैं। इस कार्यक्रम में खाने-पीने की व्यवस्था भी की जाती है।
सेरेमोनियल बेंच की परंपरा निभाई गई
जस्टिस बेला त्रिवेदी के लिए सेरेमोनियल बेंच की परंपरा निभाई गई। सेरेमोनियल बेंच में जस्टिस बेला त्रिवेदी के साथ सीजेआई जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह बैठे थे।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई ने जस्टिस बेला त्रिवेदी को शानदार जज बताया। अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल सहित तमाम लोगों ने अच्छी बातें कीं, लेकिन मुख्य न्यायाधीश इस बात से दुःखी थे कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस बेला त्रिवेदी के लिए फेयरवेल कार्यक्रम नहीं करने का फैसला किया था।
सीजेआई गवई ने जताई आपत्ति
सीजेआई गवई ने कहा कि अलग-अलग तरह के जज होते हैं। जस्टिस त्रिवेदी ने अपने पूरे जज के करियर में स्पष्टता के साथ बात रखी। बिना किसी भय के फैसले दिए और खूब मेहनत की। वह सुप्रीम कोर्ट की एकता और अखंडता में यकीन रखने वाली जज रही हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जो स्टैंड लिया है, वह सही नहीं है। मैं खुलकर बात करने वाला व्यक्ति हूं, इसलिए स्पष्ट कह रहा हूं कि यह गलत है। उन्होंने कहा कि बेंच के सामने फुल हाउस की मौजूदगी बताती है कि फैसला सही है। जस्टिस बेला त्रिवेदी एक शानदार जज रही हैं।’ जस्टिस मसीह ने अपनी स्पीच में कहा कि जस्टिस त्रिवेदी को बार एसोसिएशन द्वारा विदाई दी जानी चाहिए थी। उन्होंने जस्टिस त्रिवेदी द्वारा जज के रूप में दिखाए गए स्नेह की भी सराहना की।
सेरेमोनियल बेंच के सामने जब सीजेआई ये सब बोल रहे थे तब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और वाइस प्रेसिडेंट रचना श्रीवास्तव मौजूद थीं। जस्टिस गवई ने उनकी मौजूदगी की तारीफ की, लेकिन वे बार एसोसिएशन के रवैए से असंतुष्ट दिखे।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने क्यों नहीं दिया फेयरवेल?
जस्टिस बेला त्रिवेदी के रिटायरमेंट पर फेयरवेल आयोजित नहीं करने की कई वजहें बताई जा रही हैं। उनमें पहला है कोर्ट में उनका सख्त अनुशासन और नियमों के प्रति कठोर होना। बार के मेंबर यानी वकील उनकी सख्ती से परेशान थे। जस्टिस त्रिवेदी नियमों के मामले में पाबंद थीं। जैसे सामान्य तौर पर किसी केस में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सुनवाई के समय कोर्ट में मौजूद रहे इसकी जरूरत नहीं होती है, लेकिन जस्टिस त्रिवेदी के सामने मामला आता था तो पहले पूछती थीं कि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड कौन है और कहां है? अगर कोर्ट में नहीं है तो क्यों नहीं है?
एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, वो वकील होता है जिसके नाम से केस दाखिल होता है। बहस कोई और वकील करता है। इसके अलावा वकीलों को उनसे एक और दिक्कत थी। किसी भी केस में एक से अधिक वकील अपनी हाजिरी लगाना चाहते हैं और कोर्ट अपने ऑर्डर में उनका नाम लिखाता भी है, लेकिन जस्टिस त्रिवेदी अपने ऑर्डर में केवल उन वकीलों का नाम लिखातीं थीं, जो बहस करते थे या जिनके नाम से वकालतनामा होता था।
इसके अलावा एक और घटना है जिससे बार के मेंबर नाराज थे। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में फर्जी केस दायर हुआ था, जिसके नाम से केस दायर हुआ था उसे पता ही नहीं था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों की मिलीभगत की आशंका थी। मामला जस्टिस त्रिवेदी के सामने आया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के वकील चाहते थे कि इंटरनल जांच करके मामले को रफा-दफा कर दिया जाए, लेकिन जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बार एसोसिएशन के अनुरोध को नकार दिया और सीबीआई जांच का आदेश दे दिया।
सुप्रीम कोर्ट की वर्षों पुरानी परंपरा टूटी
जस्टिस बेला त्रिवेदी को फेयरवेल न देने के पीछे कारण चाहे जो भी हो, सुप्रीम कोर्ट की एक वर्षों पुरानी परंपरा टूटी है। इस परंपरा के टूटने से सुप्रीम कोर्ट के अन्य जज भी आहत होंगे। अगर आने वाले समय में कुछ और जज भी रिटायर होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट के अन्य रिटायर होने वाले जजों ने बार एसोसिएशन से फेयरवेल नहीं लेने का फैसला लिया तब क्या होगा? कुछ परंपरा बचाए जाने योग्य होती हैं। सुप्रीम कोर्ट में जजों रिटायर होने पर विदाई समारोह का आयोजन एक ऐसी ही परंपरा है।
कौन हैं जस्टिस बेला त्रिवेदी?
उत्तरी गुजरात के पाटन में 10 जून, 1960 को जन्मी बेला त्रिवेदी ने लगभग 10 वर्षों तक गुजरात हाई कोर्ट में वकील के रूप में काम किया। 10 जुलाई, 1995 को उन्हें अहमदाबाद में ट्रायल कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्होंने हाई कोर्ट में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) और गुजरात सरकार में विधि सचिव जैसे विभिन्न पदों पर काम किया। उन्हें 17 फरवरी, 2011 को गुजरात हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद जस्टिस त्रिवेदी को राजस्थान हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्होंने जून 2011 से फरवरी 2016 में मूल हाई कोर्ट में वापस भेजे जाने तक काम किया।
जस्टिस बेला त्रिवेदी सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहीं। उन्हें जुलाई 1995 में गुजरात में एक ट्रायल कोर्ट के जज के रूप में शुरुआत करने के बाद शीर्ष अदालत में पदोन्नत होने का गौरव प्राप्त हुआ। जस्टिस त्रिवेदी को 31 अगस्त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट की जज के रूप में पदोन्नत किया गया था। तब 3 महिलाओं सहित रिकॉर्ड 9 नए न्यायाधीशों को पद की शपथ दिलाई गई थी। वह 5 न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का हिस्सा थीं, जिसने 3:2 के बहुमत से नवंबर 2022 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखा, जिसके दायरे से एससी-एसटी-ओबीसी श्रेणियों के गरीबों को बाहर रखा गया था।