अमर देव पासवान, आसनसोल।
पश्चिम बंगाल मे मंगलवार को बहुत ही धूमधाम से बांगला नववर्ष मनाया गया। सोशल मिडिया से लेकर वाट्सअप तक हर किसी ने सगे संबंधियों को बांगला नववर्ष की बधाइयां दीं। इन बधाइयों के बीच शराब के ठेकों से लेकर बार तक लोगों को सिर्फ एक खास ब्रांड की विस्की पीते और खरीदते हुए देखा गया। ऐसे में लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया। चर्चा एक खास ब्रांड के शराब की बोतल पर लगे रेपर की हो रही थी, जिस पर विश्वविख्यात कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर के द्वारा लिखी गई प्रचलित कविता दुइ पाखी की कुछ पंक्तियां लिखी गई थीं।
बांगला पक्खो ने शराब कंपनी को दी चेतावनी
इन पंक्तियों को लेकर शराब खरीदने वालों से लेकर शराब बेचने और पीने वालों तक चर्चा का माहौल रहा। हर कोई शराब की बोतल पर लिखी कवि की इन पंक्तियों के शब्दों की जाल में उलझा दिखा और उसके अलग-अलग अर्थ निकालकर अपने जीवन से जोड़ता दिखा। वहीं, बांगला पखो (Bangla Pokkho) के पश्चिम बर्धमान जिला सभापति अखय बनर्जी ने बांगला पक्खो की ओर से कड़ी निंदा करते हुए शराब कंपनी को खुली चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि स्लोगन यह था कि बंगाल में हर दीवार, कल-कारखाने, दुकानों और वाहनों पर बांगला भाषा में लिखा अनिवार्य होना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की शराब की कंपनियां अपनी शराब की बोतलों को बेचने के लिए विश्वविख्यात कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की लिखी बहुचर्चित कविता की पंकितियां लिखकर बेचे।
शराब कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन की चेतावनी
उन्होंने कहा कि कंपनी अगर जल्द से जल्द शराब की बोतलों से बांग्ला लिखा कविता नहीं हटाती है तो वह मजबूरन कंपनी के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन करने उतरेंगे और कंपनी के खिलाफ डिपोटेशन भी देंगे।
क्या है शराब की बोतलों पर लिखी पंक्तियों का मतलब?
वहीं, शराब की बोतलों पर लिखी कवि की इन पंक्तियों के बारे में अगर आप जानने का प्रयास करें तो कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की दुइ पाखी कविता का अर्थ है, दो पंक्षी- एक पिंजरे का पंक्षी, जो सोने के पिंजरे में था,तो दूसरा वन का पंक्षी जो जंगल में रहता था, एक दिन दोनों के बीच मुलाकात हुई। वन का पंक्षी बोला कि प्रिय पिंजरे वाली पंक्षी, आओ हम दोनों साथ-साथ जंगल में चलें। पिंजरे की पंक्षी ने उत्तर दिया, ‘प्रिय वन में रहने वाली पंक्षी, आओ हम दोनों इस पिंजरे में चुपचाप रहें।’ यह सुनकर वन पंक्षी कांप उठी और कहा नहीं, मैं कभी जंजीरों में नहीं बंधूंगी। इसके बाद पिंजरे की पंक्षी बोली, ‘हाय! मैं जंगल में कैसे जाऊं?’ कविता में इन दो पंक्षियों के बीच की बातचीत में एक दार्शनिक अर्थ के अलावा एक मार्मिक कहानी भी है। जो पूरी कविता पढ़ने के बाद ही समझ मे आएगी।
लोगों ने दी मिली-जुली प्रतिक्रया
कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की बहुचर्चित कविता दुइ पाखी की लिखी हुई कविता वाली शराब खरीद रहे कुछ लोगों का कहना है कि बांगला नववर्ष के मौके पर बंगाली समाज के लिए यह एक उपहार है, जो शराब बनाने वाली कंपनी ने उनको दिया है। वहींं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इतने बड़े विश्वविख्यात कवि के द्वारा लिखी गई इतनी परचालित कविता को शराब की बोतल के ऊपर लगे रैपर में इस्तेमाल किया गया है, वो भी बांगला नववर्ष के मौके पर, जिसे बंगाली समाज काफी धूम-धाम से मनाते हैं, यह कहीं ना कहीं गलत हुआ है और कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है।