भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के बीच महिला सेना अधिकारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया है। शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र से कहा कि वह शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला सैन्य अधिकारियों को सेवा से मुक्त न करें। केंद्र सरकार ने शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करने के फैसले को चुनौती दी है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा स्थिति में उनका मनोबल न गिराया जाए। मामले में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 69 सैन्य अधिकारियों की तरफ से दायर याचिकाओं को अगस्त में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि अगली सुनवाई तक उन्हें सेवा मुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ 69 सैन्य अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान पीठ ने कहा कि अगली सुनवाई तक उन्हें रिलीज न किया जाए। जस्टिस कांत ने कहा, ‘मौजूदा स्थिति में हमें उनका मनोबल नहीं गिराना चाहिए। वे शानदार अधिकारी हैं। आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं। यह समय नहीं है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इधर-उधर भटकने के लिए कहा जाए। उनके पास रहने और देश की सेवा करने के लिए बेहतर जगह है।
केंद्र की ओर क्या दी गई दलील?
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यह सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने की नीति पर आधारित एक प्रशासनिक निर्णय था। उन्होंने शीर्ष अदालत से उनकी रिलीज पर कोई रोक नहीं लगाने का आग्रह किया और कहा कि भारतीय सेना को युवा अधिकारियों की जरूरत है और हर साल केवल 250 कर्मियों को स्थायी कमीशन दिया जाता है।
कर्नल सोफिया कुरैशी का किया उल्लेख
कर्नल गीता शर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का उल्लेख किया, जो उन दो महिला अधिकारियों में से एक थीं जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर पर मीडिया को जानकारी दीं। हालांकि, अदालत ने कहा कि यह पूरी तरह से कानूनी मामला है, इसका अधिकारियों की उपलब्धियों से कोई लेना-देना नहीं है। अधिवक्ता गुरुस्वामी ने कहा कि कर्नल कुरैशी को स्थायी कमीशन से संबंधित इसी तरह की राहत के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और अब उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है।
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
इससे पहले 17 फरवरी, 2020 को शीर्ष अदालत ने कहा था कि सेना में स्टाफ असाइनमेंट को छोड़कर सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह से बाहर रखा जाना अक्षम्य है और बिना किसी औचित्य के कमांड नियुक्तियों के लिए उन पर पूरी तरह से विचार न करना कानून में बरकरार नहीं रखा जा सकता। शीर्ष अदालत ने सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (पीसी) की अनुमति देते हुए कहा कि महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों पर स्टाफ नियुक्तियों के अलावा कुछ भी प्राप्त करने पर पूर्ण प्रतिबंध स्पष्ट रूप से सेना में करियर में उन्नति के साधन के रूप में पीसी प्रदान करने के उद्देश्य को पूरा नहीं करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने महिला अधिकारियों द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों का भी उल्लेख किया और कर्नल कुरैशी की उपलब्धियों का उदाहरण भी दिया।