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पुलिस या सेना में भर्ती होने के लिए भूलकर भी न करें ये गलती, वरना जिंदगीभर पड़ेगा पछताना

Police Army Recruitment: सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने वालों को अब एक गलती करना महंगा पड़ सकता है। भर्ती के नियमों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है...

Police Army Recruitment
Police Army Recruitment Rules Latest Update: पुलिस या सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे देशभर के युवाओं के लिए बेहद जरूरी खबर है। भर्ती के लिए आवेदन करते समय भूलकर भी एक गलती न कर देना, नहीं तो जिंदगीभर के लिए पछताना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती के एक नियम को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसके अनुसार भर्ती के लिए आवेदन करते समय अतीत और चरित्र से जुड़ी जानकारियां छिपाना महंगा पड़ सकता है। अगर जांच पड़ताल में पता चला कि जानकारियां छिपाई गई हैं तो इसका खामियाजा आवेदक को भुगतना पड़ेगा। यह भी पढ़ें: Government Jobs: दिल्ली पुलिस में नौकरी का मौका, 13 हजार पदों पर भर्ती के लिए करें तैयारी

स्टेट हाईकोर्ट का फैसला रद्द किया गया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अगर कोई पुलिस या सेना में भर्ती के लिए अप्लाई करता है और वह किसी आपराधिक मामले में बरी होता है, लेकिन आवदेन में इसका जिक्र नहीं करता तो यह अयोग्यता का आधार बनेगा। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने तमिलनाड़ू पुलिस की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्टेट हाईकोर्ट का एक फैसला रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने एक आवेदक को नियुक्ति देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस, सेना या सुरक्षाबलों में भर्ती होने वाले नौजवान क्रिमिनल बैकग्राउंड के नहीं होने चाहिएं। इससे जुड़ी जानकारियां आवेदन फॉर्म में पूछी जाती हैं। यह भी पढ़ें: Aadhar की तरह स्टूडेंट्स का होगा Apaar कार्ड; पढ़ें वह सब कुछ जो आपको जानना चाहिए

याचिकाकर्ता ने छिपाई केस की जानकारी

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अगर अगर कोई आवेदक अपने क्रिमिनल रिकॉर्ड से जुड़ी जानकारियां नहीं देगा तो माना जाएगा कि जानकारियां जानबूझकर छिपाई गई हैं। इस आधार पर आवेदक को नौकरी के लिए अयोग्य माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि जे रघुनीस नामक शख्स पर मारपीट का केस दर्ज हुआ था, लेकिन पुलिस में भर्ती के लिए आवेदन करते समय उसने यह जानकारी छिपाई। किसी मामले में जब यह बात उजागर हुई तो पुलिस विभाग ने उसे पद से हटा दिया। पीड़ित ने न्याय के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और फैसला पुलिस विभाग के हक में सुनाया गया।


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