ग्रुप कैप्टन और भारतीय वायु सेना (IAF) अधिकारी शुभांशु शुक्ला को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के गगनयान मिशन के लिए ‘प्राइम’ एस्ट्रोनॉट चुना गया था, अब वह अगले महीने मई में नासा के Axiom Mission 4 क्रू के साथ अंतरिक्ष में उड़ान भरेंगे। एक्सिओम मिशन 4 की कमान नासा की पूर्व अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन संभालेंगी, जो Axiom स्पेस की मानव अंतरिक्ष उड़ान की डायरेक्टर हैं। इसी बीच चर्चा है कि अजीब से दिखने वाले वॉटर बियर्स को भी अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इसरो एक्सिओम-4 मिशन के साथ अंतरिक्ष स्टेशन पर वॉटर बियर भेज रहा है।
क्या हैं वॉटर बियर?
टार्डिग्रेड्स, जिन्हें वॉटर बियर या मॉस पिगलेट के नाम से भी जाना जाता है। इनके आठ पैर होते हैं, जिनमें से प्रत्येक के अंतिम छोर पर छोटे-छोटे पंजे होते हैं। टार्डिग्रेडा का अर्थ है ‘धीमा कदम रखने वाला’, जो उनकी सुस्त भालू जैसी चाल को दर्शाता है और ये पानी के अंदर रहते हैं, इसलिए इन्हें वॉटर बियर भी कहा जाता है। टार्डिग्रेड्स छोटे और जल में रहने वाले सूक्ष्म जीव हैं, जो अविश्वसनीय रूप से जीवित रहने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्हें सबसे पहले 1773 में जर्मन जूलॉजिस्ट (प्राणी विज्ञानी) जोहान ऑगस्ट एफ्रैम गोएज (Johann August Ephraim Goeze) ने खोजा था। ये जीव आमतौर पर 0.3 मिमी से 0.5 मिमी लंबे होते हैं, इसलिए इन्हें देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत होती है। टार्डिग्रेड्स धरती पर लगभग हर जगह पाए जा सकते हैं, जिनमें काई, लाइकेन, मिट्टी, पत्ती के अवशेष, मीठे पानी, समुद्री वातावरण, ऊंचे पहाड़, गहरे समुद्र, गर्म झरने और यहां तक कि ध्रुवीय बर्फ भी शामिल हैं। वॉटर बियर का शरीर खंडित होता है और अक्सर एक सख्त क्यूटिकल से ढका होता है। उनकी धीमी और भारी हरकतों के कारण उन्हें ‘वॉटर बियर’ उपनाम दिया गया है।
वॉटर बियर को क्यों अंतरिक्ष में भेजा जा रहा?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इसरो एक प्रयोग के तहत टार्डिग्रेड्स यानी वॉटर बियर को अतंरिक्ष में भेज रहा है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने और काम करने के लिए 14 दिनों के मिशन पर एक्सिओम स्पेस के साथ अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रवाना होंगे। अपने प्रवास के दौरान वे कई प्रयोग करेंगे और उनमें से सबसे महत्वपूर्ण वॉयेजर टार्डिग्रेड्स एक्सपेरिमेंट है।
वॉयेजर टार्डिग्रेड्स एक्सपेरिमेंट क्या है?
वॉयेजर टार्डिग्रेड्स एक्सपेरिमेंट भारत द्वारा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर भेजे जा रहे 7 अन्य अध्ययनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भेजे गए टार्डिग्रेड्स के पुनर्जीवन, अस्तित्व और प्रजनन की जांच करेगा। एक्सिओम स्पेस की ओर से जारी एक संक्षिप्त विवरण के अनुसार, प्रयोग में निष्क्रिय टार्डिग्रेड्स के पुनर्जीवन की जांच की जाएगी। मिशन के दौरान दिए गए अंडे और फूटे अंडों की संख्या की गणना की जाएगी और अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले बनाम ग्राउंड कंट्रोल पॉपुलेशन के जीन एक्सप्रेशन पैटर्न की तुलना की जाएगी। इस रिसर्च का उद्देश्य लचीलेपन के मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म की पहचान करना है, जिससे एक्सट्रीम वातावरण में जीवन की सीमाओं को समझने में मदद मिलेगी।। यह ज्ञान भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण में सहायक हो सकता है और धरती पर जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों को विकसित करने में मदद कर सकता है।
अंतरिक्ष में अध्ययन करने की आवश्यकता क्यों?
अंतरिक्ष में टार्डिग्रेड्स का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये छोटे जीव एक्सट्रीम कंडीशन में जीवित रह सकते हैं, जो अधिकांश जीवों के लिए घातक होती हैं। क्योंकि अंतरिक्ष के वातावरण में वैक्यूम, तीव्र रेडिएशन और अत्यधिक तापमान शामिल होते हैं। ऐसे वातावरण में टार्डिग्रेड्स किस प्रकार अपने डीएनए की सुरक्षा और मरम्मत करते हैं यह समझना जरूरी है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस एक्सपेरिमेंट की मदद से वे लंबे अंतरिक्ष मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के तरीके खोज पाएंगे, जहां रेडिएशन का स्तर धरती की तुलना में बहुत अधिक होता है। टार्डिग्रेड्स सस्पेंडेड एनीमेशन की अवस्था में भी प्रवेश कर सकते हैं, जो दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्रा के लिए जैविक पदार्थों या यहां तक कि मनुष्यों को संरक्षित करने के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है। इस प्रयोग के निष्कर्ष भारत के गगनयान मिशन की योजनाओं और प्रगति को नया रूप दे सकते हैं।