प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (CCPA) की बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। सरकार ने तय किया है कि अब आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे। यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद से अब तक की गई जनगणनाओं में जातियों से जुड़ी जानकारी शामिल नहीं की गई थी। सरकार का मानना है कि यह कदम समाज के सभी वर्गों को पहचान और प्रतिनिधित्व देने में मदद करेगा।
जाति गणना अब जनगणना का हिस्सा
संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार, जनगणना एक केंद्रीय विषय है और यह संघ लिस्ट में शामिल है। अभी तक कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं, लेकिन उनकी पारदर्शिता और उद्देश्य को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कई बार इन सर्वेक्षणों पर राजनीति से प्रेरित होने का आरोप भी लगा। इन सभी बातों को देखते हुए अब केंद्र सरकार ने तय किया है कि जातियों की गणना किसी अलग प्रक्रिया से नहीं बल्कि जनगणना का ही हिस्सा बनाकर की जाएगी। इससे डाटा की विश्वसनीयता और उपयोगिता दोनों बढ़ेगी।
सामाजिक न्याय को मिलेगा बढ़ावा
सरकार ने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को उचित पहचान और अवसर देना है। इससे देश में सामाजिक न्याय को मजबूती मिलेगी और विकास की प्रक्रिया ज्यादा समावेशी होगी। यह भी उल्लेख किया गया कि जब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, तब किसी भी वर्ग ने इसका विरोध नहीं किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि जब फैसले निष्पक्ष और संतुलित होते हैं तो समाज उन्हें सहजता से स्वीकार करता है।
पूर्व सरकारों के प्रयास और नया रास्ता
2010 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी जाति जनगणना का समर्थन किया था और इसके लिए एक मंत्री समूह का गठन किया गया था। लेकिन तब केवल सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) के रूप में एक सीमित सर्वेक्षण किया गया। अब मोदी सरकार ने जाति गणना को मुख्य जनगणना का हिस्सा बनाने का जो निर्णय लिया है, उससे उम्मीद की जा रही है कि इससे समाज के सभी तबकों की वास्तविक स्थिति सामने आएगी और योजनाएं अधिक सटीक तरीके से बन सकेंगी। यह कदम सामाजिक समानता और सबके लिए विकास की दिशा में एक बड़ा और निर्णायक प्रयास माना जा रहा है।