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मेघालय सरकार ने देसी डॉक्टरों के दम पर छेड़ी TB के खिलाफ लड़ाई, जानें क्या है ‘खासी’ चिकित्सा?

टीबी को क्षय रोग भी कहा जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। दुनिया में भारत एक ऐसा देश है, जहां सबसे अधिक टीबी के मरीज हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत के कई राज्य टीबी मुक्त देश का सपना लेकर तेजी से काम रहे हैं।

Author Reported By : Pallavi Jha Edited By : Satyadev Kumar Updated: Mar 20, 2025 18:54
TB
सांकेतिक तस्वीर।

ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) दुनिया भर में एक बड़ी समस्या के तौर पर बना हुआ है। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत के कई राज्य टीबी मुक्त देश को लेकर तेजी से काम का रहे हैं। इसी कड़ी में देश का एक ऐसा राज्य है, जो अलग प्रयासों के जरिए ना सिर्फ चौंका रहा है बल्कि रोल मॉडल के तौर पर भी उभर रहा है। हम बात कर रहे हैं मेघालय की, जहां गली-मोहल्ले में बैठने वाले देसी डॉक्टर के सहारे सरकार ने टीबी के खिलाफ अभियान तेज किया है।

मेघालय सरकार की पहल का दिख रहा असर

दिलचस्प बात ये है कि इन ट्राइबल डॉक्टरों को सरकार की तरफ से ट्रेनिंग भी दी जा रही है और स्क्रीनिंग पर 500 रुपये भी दिए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में अन्धविश्वास का बड़ा जाल है, इस वजह से सरकार ने इस एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट में अनोखी पहल की है। इसके आलावा स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने के लिए मेघालय ने गांव की सक्रिय महिलाओं को प्रशिक्षित कार्यकर्ता बनाया है। इसी तरह गांवों में आवागमन करने वाले ऑटो और टैक्सी चालकों को इस मुहिम से जोड़ा गया है। इन प्रयासों के चलते मेघालय के 12 जिलों के 7153 गांव अब धीरे-धीरे टीबी मुक्त होने लगे हैं।

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खासी चिकित्सा क्या है और क्यों है अलग?

मेघालय में आयुर्वेद, होम्योपैथी या फिर यूनानी की तरह ‘खासी’ नामक पारंपरिक चिकित्सा काफी प्रसिद्ध है। लगभग सभी गांवों में इसी चिकित्सा के जरिए मरीजों का इलाज किया जाता है। हालांकि, इस पद्धति को अभी तक चिकित्सा की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा गया है। प्रशासन ने बड़ी संख्या में प्रशिक्षण देकर पारंपरिक हीलर (बीमारी ठीक करने वाला व्यक्ति) बनाया है, जो संदिग्ध मरीजों की पहचान करने के बाद उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करते हैं।

मेघालय में टीबी को लेकर क्यों है चुनौती ?

रीभोई के जिलाधिकारी अभिलाष बरनवाल ने न्यूज 24 से बातचीत के दौरान बताया कि भारत के दूसरे हिस्सों की तुलना में पूर्वोत्तर राज्यों मे अन्धविश्वास का बड़ा जाल है, जिसकी वजह से जमीनी स्तर पर समर्थन हासिल कर पाना बेहद मुश्किल है। पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते यहां छोटी-छोटी आबादी वाले गांव हैं, जहां का आवागमन काफी मुश्किल है। पूर्वोत्तर राज्यों में टीबी का उपचार चुनौतीपूर्ण इस लिहाज से भी है क्योंकि इसे बहुत कलंकित माना जाता है। ऐसे में मेघालय सरकार ने पहली बार टीबी मरीजों के साथ-साथ उनके तीमारदारों को भी अस्पतालों तक लाने के लिए निःशुल्क परिवहन सुविधा शुरू की है।

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रीभोई जिला में कितना जोखिम और पूर्वोत्तर में हाल

पिछड़ेपन के चलते आकांक्षी जिला होने के बाद भी रीभोई ने 16 हजार से ज्यादा उच्च जोखिम वाली आबादी की जांच कराई है। जिले के 60 गांवों में बीते एक साल से कोई भी टीबी का नया मामला सामने नहीं आया है। दरअसल, 2011 तक भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की जनसंख्या 45,772,188 थी। यह क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम राज्यों से बना है। आबादी के लिहाज से मेघालय करीब तीसरे स्थान पर है, जहां 39,39,344 लोगों की आबादी है। इनमें 85.9 फीसदी जनजातीय समुदाय से हैं। करीब 22 वर्ग किलोमीटर पहाड़ी वाले इस राज्य में 5 जिला पूर्वी खासी, रीभोई, पूर्वी गारो, पश्चिमी गारो और दक्षिण गारो में टीबी का प्रकोप सबसे ज्यादा है।

 

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Edited By

Satyadev Kumar

Reported By

Pallavi Jha

First published on: Mar 20, 2025 06:49 PM

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