Manipur Violence: सुप्रीम कोर्ट ने कुकी आदिवासियों की सुरक्षा सेना को सौंपने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा कि हिंसा प्रभावित मणिपुर में सुरक्षा बल अपना काम कर रहे हैं और यह मुद्दा विशुद्ध रूप से कानून व्यवस्था का मुद्दा है।
सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने एनजीओ मणिपुर ट्राइबल फोरम की ओर से मामले का उल्लेख किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां ग्राउंड जीरो पर हैं। ये कहते हुए तुषार मेहता ने तत्काल सुनवाई के लिए याचिका का विरोध किया। जस्टिस सूर्यकांत और एमएम सुंदरेश की अवकाश पीठ ने कहा कि यह विशुद्ध रूप से कानून व्यवस्था का मामला है।
ट्राइबल फोरम के वकील बोले- तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत
सुनवाई के दौरान सीनियर वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि इसके लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है और आश्वासन दिए जाने के बावजूद कई लोग मर रहे हैं। हम आदिवासियों के लिए सुरक्षा मांग रहे हैं। 70 आदिवासी मारे गए हैं।
सीनियर वकील को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि यह एक कानून और व्यवस्था का मुद्दा है और इसे प्रशासनिक पक्ष के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। फिर अदालत ने मामले को तत्काल आधार पर सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट अब मामले को 3 जुलाई को सुनेगी।
बता दें कि मेइती समुदाय की ओर से अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद 3 मई को पहली बार मणिपुर में झड़पें हुईं। मेइती मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासी नागा और कुकी मणिपुर की आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं, जो पहाड़ी जिलों में रहते हैं।