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किन-किन पड़ावों से गुजरते हुए फहराने लगा हर घर तिरंगा?

नई दिल्ली: कुछ घंटे बाद दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी आजादी के 76 वर्ष पूरे कर लेगा। हर तरह की मुश्किलों और झंझावातों से जूझता भारत लगातार आगे बढ़ रहा है। भारतीय लोकतंत्र की कामयाबी और हमारे गणतंत्र की बुलंदी पूरी दुनिया के लिए एक रोल मॉडल की तरह है। अक्सर मेरे जहन में […]

Edited By : Bhola Sharma | Updated: Aug 16, 2023 11:34
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Anurradha Prasad Special Show, National flag, Independence day
Anurradha Prasad Show

नई दिल्ली: कुछ घंटे बाद दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी आजादी के 76 वर्ष पूरे कर लेगा। हर तरह की मुश्किलों और झंझावातों से जूझता भारत लगातार आगे बढ़ रहा है। भारतीय लोकतंत्र की कामयाबी और हमारे गणतंत्र की बुलंदी पूरी दुनिया के लिए एक रोल मॉडल की तरह है। अक्सर मेरे जहन में सवाल आता रहता है कि ब्रिटिश इंडिया में भारतीयों को किस चीज ने आपस में जोड़ा? किस शक्ति पुंज ने भारतीयों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़ा किया होगा? वो कौन सी ऐसी शक्ति है, जिसके लिए एक सिपाही हंसते-हंसते वतन पर अपना प्राण न्यौछावर कर देता है। एक खिलाड़ी वतन की आन-बान-शान के लिए आखिरी सांस तक जोर लगाता है। एक वैज्ञानिक दिन-रात प्रयोगशाला में वर्षों खपा देता है।

इस एंगल से जब मैंने दिमाग दौड़ाना शुरू किया तो बहुत मंथन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची कि तिरंगा और भारत माता, ऐसे दो प्रतीक हैं जो उत्तर में हिमालय की चोटियों से दक्षिण में हिंद महासागर तक और पश्चिम में कच्छ के रेगिस्तान से पूर्व में कांग्तो चोटी तक को जोड़ते हैं। पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने हर घर तिरंगा अभियान शुरू किया था। इस साल हर घर तिरंगा के साथ मेरी माटी, मेरा देश अभियान को भी जोड़ दिया गया है। हर आम-ओ-खास के भीतर राष्ट्रवाद के जज्बे को रिचार्ज करने की बड़ी पहल शहर से गांव तक…पहाड़ से मैदान तक चल रही है। ऐसे में आज मैं आपको बताऊंगी कि भारतीयों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करने वाला झंडा किन-किन पड़ावों से गुजरते हुए मौजूदा रूप में आया? तिरंगे से निकल रहे संदेशों के हमारे हुक्मरानों और लोगों ने किस हद तक अपनाया? ऐसे सभी सवालों को जज्बात, इतिहास और वर्तमान के आईने में समझने की कोशिश करेंगे, अपने खास कार्यक्रम मेरी शान तिरंगा है में।

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कानपुर के श्यामलाल की कलम से निकला था ध्वज गीत

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा, सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला। ये गीत आपने बचपन में जरूर गुनगुनाया होगा। कभी ये गीत अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को जोड़ने वाला ध्वज गीत बना, जो नौजवान लड़के-लड़कियों को देश पर मर-मिटने की प्रेरणा देता था। ये ध्वज गीत निकला था कानपुर के श्यामलाल गुप्त की कलम से। आज जो तिरंगा हमारे सामने है, इससे मिलता-जुलता झंडा आजादी के दीवानों के हाथों में हुआ करता था। तिरंगा और भारत माता को लेकर इतिहास के पन्नों को पलटने से पहले ये समझना जरूरी है कि इस बार हर घर तिरंगा अभियान किस तरह से आगे बढ़ रहा है?

 

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क्या पीएम मोदी लोगों में भर रहे राष्ट्रवाद?

पिछले कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री मोदी जिस स्टाइल में देश को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें एक खास बात है। वो अपने हर मिशन के साथ आम-ओ-खास, जवान और बुर्जुग सबको बड़ी खूबसूरती से जोड़ लेते हैं। चाहे स्वच्छ भारत अभियान हो या फिर हर घर तिरंगा अभियान। उनके इस खास हुनर का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मोदी ने परीक्षा पर चर्चा के दौरान अभिभावों से सुझाव मांगा। इसमें सुझाव भेजने वाले कुछ माता-पिता के पास पीएम मोदी की जवाबी चिट्ठी भी पहुंची। जरा सोचिए जब भारत का प्रधानमंत्री खुद मीडिया, सोशल मीडिया और पत्रचार के जरिए लोगों से संवाद की कोशिश करेंगे तो ऐसे में लोगों का भी अभियान के साथ जुड़ना आसान हो जाता है। मोदी तिरंगा के जरिए लोगों में राष्ट्रवाद इस तरह से कूट-कूट कर भरने में जुटे हैं। जिससे भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाया जा सके। कभी महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल जैसे नेताओं ने हाथों में तिरंगा लेकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर सियासत में उतरने वाले अरविंद केजरीवाल भी हाथों में तिरंगा और जुबान पर भारत माता के साथ ही लोगों को जोड़ने के मिशन पर निकले थे। केजरीवाल और उनकी टीम ने ऐसी लहर पैदा की, जिसमें आम आदमी पार्टी खड़ी हो गयी। अब दिल्ली और पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार है। भले ही तिरंगा और भारतमाता से लगातार देश जोड़ने की कोशिश होती रही हो लेकिन, नेताओं ने तिरंगे के हाथों में लेकर अपनी सियासी जमीन भी मजबूत करने की कोशिश की है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी परंपरा और तेजी से बढ़ी है, जिसमें तेरा राष्ट्रवाद और मेरा राष्ट्रवाद जैसे सुर निकलने लगे हैं। ऐसे में इतिहास के पन्नों को पलटते हुए सबसे पहले ये समझते हैं कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज किन-किन पड़ावों और बदलावों से गुजरते हुए मौजूदा स्वरूप की यात्रा तक पहुंचा।

ध्वज से चरखा हटा तो नाराज हो गए थे गांधी

आजादी से पहले पिंगली वेंकैया ने जो ध्वज डिजाइन किया था, जिसमें बीच की सफेद पट्टी पर चरखा था। इसे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस का ध्वज कहना बेहतर होगा। जब देश आजादी की ओर बढ़ रहा था, तब इसे राष्ट्रीय ध्वज में बदलने को लेकर मंथन शुरू हो गया। इसके लिए एक एड-हॉक कमेटी भी बना दी गयी। संविधान सभा ने भारत की आजादी से ठीक 24 दिन पहले यानी 22 जुलाई 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। कहा जाता है कि तिरंगे से चरखा हटाए जाने से महात्मा गांधी बहुत नाराज हुए। उन्हें किसी तरह पंडित नेहरू ने ये कहते हुए मनाया कि चक्र और चरखे में कोई खास फर्क नहीं है। आजादी के बाद देश के पहले उप-राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने चक्र की अहमियत समझाते हुए कहा था कि तिरंगे के बीच लगा अशोक चक्र धर्म का प्रतीक है। इस ध्वज के नीचे रहने वाले लोग सत्य और धर्म के सिद्धांतों पर चलेंगे। पिछले 76 वर्षों में अगर हमारा लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है तो इसके पीछे एक बड़ी ताकत तिरंगे की रही है। अगर हमारा गणतंत्र लगातार बुलंद हुआ है तो इसकी एक बड़ी वजह तिरंगा रहा है। ऐसे में तिरंगे और इसमें बने चक्र के मायने समझना भी बहुत जरूरी है।

हर किसी को ध्वज फहराने की इजाजत नहीं थी

माउंट एवरेस्ट से लेकर अंतरिक्ष तक में भारत का तिरंगा लहरा चुका है। पहले हर भारतीय को राष्ट्रीय ध्वज फहराने की इजाजत नहीं थी। सिर्फ गिनी-चुनी जगहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की इजाजत थी। लेकिन,साल 2002 में भारतीय झंडा संहिता में संशोधन किया गया और आम नागरिकों को भी तिरंगा फहराने की इजाजत दे दी गयी। भारतीय झंडा संहिता में फिर बदलाव किया गया है। नए बदलावों के मुताबिक, अब लोगों को दिन और रात दोनों समय तिरंगा फहराने की इजाजत होगी साथ ही पॉलिएस्टर और मशीन से बने राष्ट्रीय ध्वज का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आजादी के अमृत काल में तिरंगे के साथ भारत माता का जिक्र करना भी बहुत जरूरी है। अंग्रेजों के खिलाफ जब राष्ट्रवादी सोच आकार ले रही थी, उस सोच की सबसे उपजाऊ जमीन थी बंगाल। 1866 में बांग्ला लेखक और साहित्यकार भूदेव मुखोपाध्याय ने अपने व्यंग्य उनाबिम्सा पुराण में भारत माता के लिए ‘आदि भारती’ शब्द का इस्तेमाल किया तो किरण चन्द्र बन्दोपाध्याय के नाटक ‘भारत माता’ ने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंदमठ में साधुओं की क्रांति के साथ वंदे मातरम का सुर गूंजा और ये अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का गीत बन गया। लेकिन इसी दौर में एक तबके ने वंदे मातरम और भारत माता को हिंदू प्रतीकों से जोड़ना शुरू कर दिया। मुस्लिम लीग के वजूद में आने के बाद इन शब्दों पर एतराज करने वालों की संख्या बढ़ गयी। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलता रहा। लेकिन, देशभक्ति के नारों में अलग-अलग विचार झलकने लगे।

 

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लाल किले पर पंडित नेहरू ने 17 बार फहराया तिरंगा

पंडित नेहरू के लिए भारत माता का मतलब इस मुल्क की जमीन पर रहने वाले सभी लोगों से था, तो तिरंगे को भारत के लोगों की स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर देखते थे। आजाद भारत के संविधान की शुरुआत भी हम भारत के लोगों से ही होती है और तिरंगा लोगों की आन-बान और शान का प्रतीक। इतिहास गवाह रहा है कि लाल किला की प्राचीर ने भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू 17 बार तिरंगा फहरा चुके हैं तो उनकी बेटी इंदिरा गांधी 16 बार। गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक तो पहुंचे लेकिन, लाल किला पर झंडा फहराने का मौका नहीं मिला। हर घर तिरंगा और मेरी माटी मेरा देश अभियान के जरिए लोगों को राष्ट्रवाद से जोड़ने की नई कोशिश हो रही है। ऐसे में घरों के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ-साथ इसके तीनों रंग और चक्र के बीच से निकलने वाले संदेशों को भी जीवन में उतारने की जरूरत है। यही तिरंगे को असली सलामी होगी।

देखिए VIDEO…

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Edited By

Bhola Sharma

Edited By

rahul solanki

First published on: Aug 15, 2023 10:40 AM

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