भारतीय राजनीति के इतिहास में 19 मार्च 1998 का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है, जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में दूसरी बार केंद्र में सरकार बनाई थी। वाजपेयी ने दूसरी बार पीएम पद की शपथ ली थी। उनकी ताजपोशी भारतीय राजनीति में स्थिरता लाने के प्रयासों की दिशा में एक बड़ा कदम थी। हालांकि सरकार केवल 13 महीने ही चल पाई। वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सहयोग से सरकार बनाई थी। यह गठबंधन अपेक्षाकृत नाजुक था और बहुमत के लिए कई छोटे दलों पर निर्भर था। सरकार बनने के बाद वाजपेयी ने देश की आर्थिक और सुरक्षा नीतियों को मजबूत करने पर ध्यान दिया।
पोखरण परमाणु परीक्षण
पोखरण-2 परमाणु परीक्षण वाजपेयी सरकार के कार्यकाल की सबसे बेहतरीन उपलब्धि थी, जो मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में किया गया। इस परीक्षण ने भारत को एक मजबूत परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया और वैश्विक स्तर पर उसकी साख को बढ़ाया। हालांकि इस फैसले के चलते भारत को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा।
सरकार का पतन और फिर वापसी
वाजपेयी सरकार ने कई अहम फैसले लिए, लेकिन गठबंधन की कमजोर कड़ी ने इसे लंबे समय तक टिकने नहीं दिया। अप्रैल 1999 में अन्नाद्रमुक (AIADMK) पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार बहुमत से चूक गई और मात्र 13 महीने में गिर गई। इसके बाद अक्टूबर 1999 में फिर से चुनाव हुए, जिनमें भाजपा के नेतृत्व में NDA को स्पष्ट बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने।
वाजपेयी का दृष्टिकोण और विरासत
अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारतीय राजनीति में लोकप्रिय नेताओं में शुमार है। वे विवेकशील, उदार और सुलझे हुए नेता के रूप में जाने जाते थे। उनका 1998 का कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो, लेकिन पोखरण परीक्षण जैसे ऐतिहासिक फैसलों ने भारत को एक नई दिशा दी। वाजपेयी के इस कार्यकाल ने भविष्य की राजनीति और शासन व्यवस्था को प्रभावित किया और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। वाजपेयी की सरकार 13 महीने बाद 17 अप्रैल 1999 को गिर गई थी, क्योंकि लोकसभा में सिर्फ 1 वोट से विश्वास मत हार गई थी। इसका मुख्य कारण था जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक (AIADMK) का समर्थन वापस लेना।
May 1998 :: PM Atal Bihari Vajpayee With Scientist Abdul Kalam at Pokhran Nuclear Site pic.twitter.com/SU8wILrKwT
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) April 6, 2020
प्रमुख कारण
AIADMK की समर्थन वापसी– जयललिता ने अपनी पार्टी AIADMK के सांसदों के साथ मिलकर सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वे चाहती थीं कि वाजपेयी सरकार उनकी मांगों को पूरा करे, विशेष रूप से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के पसंदीदा अधिकारियों की बहाली और भ्रष्टाचार के मामलों में राहत दी जाए, जब उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो उन्होंने सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
विश्वास मत में हार– 17 अप्रैल 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने की कोशिश की, लेकिन वे सिर्फ 1 वोट से हार गए। कुल 270 वोट सरकार के पक्ष में और 271 वोट विपक्ष में पड़े, जिससे उनकी सरकार गिर गई।
सोनिया गांधी और विपक्ष की एकजुटता– कांग्रेस, वामपंथी दलों और अन्य विपक्षी पार्टियों ने सरकार को गिराने के लिए एकजुट होकर वोट किया।
LONG THREAD on 1999 Motion of Confidence:
Exactly 23 years ago, the NDA govt led by PM Atal Bihari Vajpayee faced a confidence motion in the Lok Sabha.
A thread diving deep into the EXTRAORDINARY events of 17 April 1999 that forever changed Indian politics. /1 pic.twitter.com/deIL6QqzOy
— Jijñāsu जिज्ञासु ஆர்வமாக (@vyomologist) April 17, 2022
समर्थन जुटाने में विफलता– वाजपेयी सरकार ने बहुमत के लिए अन्य दलों का समर्थन पाने की कोशिश की, लेकिन वे पर्याप्त संख्या में सांसदों को नहीं मना सके।
परिणाम- सरकार गिरने के बाद राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अन्य दलों को सरकार बनाने का मौका दिया, लेकिन जब कोई नया गठबंधन नहीं बन पाया तो लोकसभा भंग कर दी गई और 1999 में दोबारा आम चुनाव हुए। इस चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए (NDA) को पूर्ण बहुमत मिला और वे फिर से प्रधानमंत्री बने।
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