सदियों से आयुर्वेद, होम्योपैथी, सिद्धा, यूनानी, पारंपरिक चीनी चिकित्सा, कोम्पो यूनानी और पारंपरिक औषधियों जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियां हेल्थ सेक्टर की नींव रही हैं। इन्होंने प्राकृतिक उपचारों और समग्र स्वास्थ्य कल्याण के बारे में ज्ञान का भंडार प्रदान किया है। विश्व की लगभग 80% आबादी आज भी पारंपरिक चिकित्सा का उपयोग अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए करती है। ‘कोरो निल किट’ आपने इस दवा के बारे में तो सुना ही होगा।
कोविड-19 के खौफ के बीच जब पूरी दुनिया वायरस से लड़ने वाली दवा की तलाश कर रही थी, तब पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ने अपनी लैब में एक दवा को तैयार किया जिसका नाम कोरोनिल किट दिया गया था। इस दवा को आयुर्वेद की मदद से बनाया गया था। आइए जानते हैं इस दवा के बारे में।
भारत में पारंपरिक चिकित्सा की भूमिका
आयुर्वेद, योग, सिद्धा, यूनानी और होम्योपैथी जैसे पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियां रोगों के उपचार और स्वास्थ्य सुधार में लंबे समय से काम कर रही हैं। हाल के वर्षों में भारत में पारंपरिक चिकित्सा, विशेष रूप से आयुर्वेद के प्रति लोगों में रुचि बढ़ी है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक आकांक्षाओं का प्रतीक बन चुका है। कोरोनिल किट भी भारतीय चिकित्सा में गंभीर बीमारी से लड़ने में अहम भूमिका निभाती है।
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COVID-19 और कोरोनिल किट का संबंध
कोविड-19 महामारी के दौरान, कई रिसर्चों ने यह दिखाया कि आयुर्वेदिक औषधियां और उनके तरीके रोगियों के प्रबंधन में सहायक हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप आयुर्वेदिक दवाओं जैसे पतंजलि कोरोनिल किट को व्यापक रूप से अपनाया गया, हालांकि इसे कई तरह की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। कोरोनिल किट में 3 दवाएं शामिल हैं। आज हम कोरोनिल टैबलेट के बारे में जानेंगे।
कोरोनिल टैबलेट का विकास
कोरोनिल को पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ने COVID-19 से मुकाबला करने के लिए एक आयुर्वेदिक रिसर्च के रूप में विकसित किया था। इसे वैज्ञानिक परीक्षणों और क्लिनिकल ट्रायल्स के बाद जारी किया गया। हालांकि, शुरू में इसे संदेह की दृष्टि से देखा गया, लेकिन यह पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ने की दिशा में एक साहसिक कदम साबित हुआ।
आलोचना का दौर
दवा की विकास प्रक्रिया और सकारात्मक परिणामों के बावजूद कोरोनिल को लेकर संदेह बना रहा। इसका कारण पारंपरिक चिकित्सा के प्रति गहरी धारणाएं और वैकल्पिक उपचारों को अपनाने में झिझक है। फिर भी, यह जरूरी है कि आयुर्वेद के मूल्य और उसकी वर्तमान स्वास्थ्य समस्याओं को सुलझाने की क्षमता को समझा जाए।
लंबे समय से आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को लेकर तर्क दिया गया है कि इनमें वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी है, जिससे इनके प्रभाव और सुरक्षा पर भी कई सवाल उठे हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में कई आयुर्वेदिक दवाओं और उपचारों को उनके प्रभाव और सुरक्षा के आधार पर प्रमाणित भी किया गया है।
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कोरोनिल का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण
दवा का विश्लेषण पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन, हरीद्वार में किया गया है। कोरोनिल को आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित करके बनाया गया है। इसमें प्राकृतिक औषधीय पौधों के अर्क का उपयोग किया गया है, जिन्हें पहले भी वायरस संक्रमण से लड़ने में प्रभावी माना गया है। इनमें अश्वगंधा है, जो इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। गिलोय, जो शरीर को डिटॉक्स करता है। तुलसी, जो सर्दी-खांसी की समस्याओं को दूर करती है।
आयुष मंत्रालय ने भी माना
सरकार ने आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियां अपनाई हैं और आयुष मंत्रालय जैसी रेगुलेटरी बॉडीज ने मार्गदर्शन प्रदान किया है। इसने आयुर्वेद को मुख्यधारा की स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त किया है। साथ ही इसकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए मानकों का भी पालन किया गया है।
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