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हेल्थ

बच्चों का बचपन मोबाइल की गिरफ्त में, एक्सपर्ट से जानें काउंसलिंग क्यों जरूरी?

स्ट्रेस सिडेंट्री लाइफस्टाइल का हिस्सा होता है। सिडेंट्री यानी कि अनहेल्दी जीवनशैली जो लोगों की मेंटल हेल्थ को प्रभावित करती है। आजकल स्ट्रेस छोटे बच्चों में भी काफी बढ़ गया है, जो कि सही नहीं है। माता-पिता के अलावा स्कूलों की भी जिम्मेदारी होती है कि बच्चे कैसे तनावमुक्त रहें। जानिए इस पर हेल्थ एक्सपर्ट की राय।

Author Edited By : Namrata Mohanty Updated: Apr 17, 2025 14:57

स्ट्रेस और टेंशन लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है। युवाओं के बाद अब स्कूल जाने वाले बच्चों में भी स्ट्रेस रहने लगा है। बदलती लाइफस्टाइल, डिजिटल डिवाइसेज की बढ़ती पहुंच और पढ़ाई का बढ़ता दबाव बच्चों की मानसिक सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। आजकल छोटे-छोटे बच्चे भी चिंता, नींद न आना और स्क्रीन एडिक्शन जैसे गंभीर मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ऐसे में स्कूलों में काउंसलिंग की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है। याद रखें कि बचपन सिर्फ खेलने और सीखने का वक्त होता है, चिंता और तनाव का नहीं।

क्या कहती हैं एक्सपर्ट?

एशियन अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर और एचओडी डॉ. मीनाक्षी मनचंदा बताती हैं कि अब 8-10 साल के बच्चे भी एंग्जायटी और डिप्रेशन के लक्षण दिख रहे हैं। लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से उनकी नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता। वे आगे कहती हैं कि बच्चों में सोशल स्किल्स की कमी, चिड़चिड़ापन और ध्यान केंद्रित न कर पाने जैसी समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं। अगर समय रहते स्कूल स्तर पर सही काउंसलिंग नहीं दी गई, तो ये समस्याएं लंबे समय तक बच्चे के व्यवहार और पढ़ाई दोनों को प्रभावित कर सकती हैं।

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स्क्रीन टाइम बना नई चुनौती

खासकर कोविड के बाद बहुत कुछ बदल चुका है, जैसे ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों की स्क्रीन की लत को और बढ़ा दिया है। अब स्मार्टफोन, टैबलेट और टीवी बच्चों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं। इससे न सिर्फ उनकी आंखों पर असर पड़ रहा है, बल्कि दिमाग में भी लगातार उत्तेजना बनी रहती है, जो उन्हें बेचैन और थका हुआ महसूस कराती है।

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स्कूल-काउंसलिंग क्यों जरूरी?

बच्चों को अपनी भावनाएं समझने और व्यक्त करने में मदद मिलती है।
पढ़ाई के तनाव और एग्ज़ाम फोबिया को मैनेज करना आसान होता है।
स्क्रीन एडिक्शन को कम करने की रणनीति मिलती है।

समाधान क्या है?

डॉ. मीनाक्षी मनचंदा सलाह देती हैं कि हर स्कूल में एक ट्रेंड काउंसलर होना चाहिए, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की नियमित जांच कर सके। इसके साथ ही माता-पिता को भी स्क्रीन टाइम, नींद और संवाद के महत्व को समझना होगा।

बच्चों की मेंटल हेल्थ सुधारने के कुछ सरल उपाय

खेल-कूद करें।
साइकिलिंग करवाएं।
पेंटिंग के लिए मोटिवेट करें।
घर के छुट-पुट काम में हेल्प लें।

ग्राफिक्स की मदद से समझें…

 

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Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।

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Edited By

Namrata Mohanty

First published on: Apr 17, 2025 02:31 PM

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