Bharat Ek Soch: आज बात भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी की। मोदी सरकार ने 96 साल के आडवाणी जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। उन्हें ये सम्मान जिंदगी के ऐसे मोड़ पर देने का फैसला हुआ है, जब उनकी सेहत भी इतनी साथ नहीं दे रही है- जिसमें वो देश-दुनिया में होते बदलावों पर सक्रिय रूप से चिंतन, मनन या दूसरों का मार्गदर्शन कर सकें। करीब सात दशक तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे आडवाणी जी भारतीय राजनीति का वो पन्ना हैं, जिन्हें हर कालखंड के हिसाब से पढ़ने की कोशिश होगी।
उनकी शख्सियत, उनके योगदान को भी हर शख्स अपने-अपने तरीके से देखने और समझने की कोशिश करेगा। आडवाणी जी जिंदगी के हर रोल पूरी शिद्दत से निभाते रहे हैं। चाहे वो विपक्षी बेंच पर बैठने वाले नेता का हो, चाहे देश के गृह मंत्री जैसी जिम्मेदारी हो, चाहे अटल जी से दोस्ती निभानी हो या फिर सार्वजनिक सहमति के लिए अटल जी का चेहरा आगे करना हो। चाहे बीजेपी के शिल्पकार की भूमिका हो या फिर रथ पर सवार होकर लोगों को जोड़ने की मुहिम। आडवाणी एक ऐसे राजनेता हैं– जिन्होंने विपक्ष से जिस तरह के आचरण की उम्मीद की, वैसा ही आचरण खुद की जिंदगी में भी उतारा। ऐसे में आज बात करेंगे भारत रत्न आडवाणी के कर्मपथ की।
लालकृष्ण आडवाणी को पद्म विभूषण 2015 में ही मिल चुका है। अब मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है। आज की तारीख में बीजेपी जिस मुकाम पर खड़ी है- उसमें नींव की भूमिका लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने निभाई है। बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को जिस तरह अनुशासित रखती है। उस स्कूल के शुरुआती हेडमास्टर की भूमिका में आडवाणी जी जैसे नेता रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि आडवाणी जी हमारे समय के सबसे सम्मानित स्टेट्समैन है। देश के विकास के लिए उनका योगदान कोई नहीं भूल सकता है। आडवाणी जी ने बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में मुख्य शिल्पकार की भूमिका निभाई है। उन्होंने बीजेपी नेताओं को निजी जिंदगी में अनुशासन और त्याग का ककहरा सिखाया। राम मंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी का चेहरा आडवाणी जी थे, लेकिन बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए खुद ही मंच से ऐलान किया- अबकी बारी अटल बिहारी। आज भारत रत्न आडवाणी को पक्ष-विपक्ष अपने-अपने तरीके से याद कर रहा है।
आडवाणी जी क्या हैं? नरम या गरम। लिबरल या हार्डलाइनर। वो पूरी जिंदगी किस तरह का भारत गढ़ने का सपना लेकर आगे बढ़ते रहे? आज के पाकिस्तान के सिंध प्रांत में साल 1927 में आडवाणी का जन्म हुआ। कराची में पढ़ाई और स्कूल के दिनों में भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ाव। बंटवारे के बाद आडवाणी को अपनी जन्मभूमि छोड़कर दिल्ली आ गए और जुड़ गए देश को एकसूत्र में जोड़ने के मिशन में। पत्रकारिता से भी उनका गहरा रिश्ता रहा। जिसका जिक्र उन्होंने कुछ साल पहले न्यूज 24 के एक खास कार्यक्रम में किया था। राजनीति में उनकी जोड़ी बनी अटल जी के साथ, रिश्तों की एक ऐसी डोर बंधी। एक ऐसी केमेस्ट्री बनी, जिसे सभी अपनी सहूलियत के हिसाब से देखते रहे हैं।
इमरजेंसी के बाद बनी मोरारजी देसाई सरकार में आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। उन्होंने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो की स्वायत्ता के मुद्दे पर सदन के भीतर और बाहर चर्चा शुरू की। साल 1980 में जब भारतीय जनसंघ की गर्भनाल से बीजेपी का जन्म हुआ तो उसमें लालकृष्ण आडवाणी अहम भूमिका में रहे। बीजेपी के पहले अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई अटल बिहारी वाजपेयी को, लेकिन 1984 की सहानुभूति लहर में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत तो नई नवेली बीजेपी को सिर्फ दो सीटें मिलीं।
ऐसे में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का झंडा उठाया बीजेपी के ‘लाल’ ने। लालकृष्ण आडवाणी ने नए सिरे से पार्टी की राजनीतिक जमीन तैयार करना शुरू किया और एक Deadly Combo बना आडवाणी-वाजपेयी का। हिंदुत्व का चेहरा आडवाणी और हर दिल अजीज उदारवादी वाजपेयी। ये भारत में मंडल कमीशन यानी आरक्षण का दौर था। इस राजनीतिक तूफान में सभी राजनीतिक पार्टियां अपने लिए नया आसमान तलाश रही थीं। मंडल की लहर के जवाब में आडवाणी रामरथ पर सवार हो गए। यहीं से बीजेपी की चर्चा भारत के हर घर में होने लगी। तब नारा लगता है- वो जात-पात से तोड़ेंगे, हम धर्म संस्कृति से जोड़ेंगे। उत्तर भारत में बीजेपी को आडवाणी की रथ यात्रा ने बड़ी राजनीतिक जमीन दिला दी। बीजेपी एक अलग राह पर चल रही थी- जिसमें चाल, चरित्र और चेहरा तीनों अलग थे। आडवाणी समझ रहे थे कि बिना गठबंधन के बीजेपी को सत्ता में लाना मुश्किल है। ऐसे में गठबंधन में साथियों को जोड़ने के मकसद से बीजेपी का सबसे सहज और स्वाभाविक चेहरा होने के बाद भी आडवाणी जी ने अटल जी को आगे कर दिया।
अटल जी की सरकार में आडवाणी गृह मंत्री जैसे अहम पद पर रहे, वो उप-प्रधानमंत्री भी बने। उनके काम करने का स्टाइल कुछ ऐसा कि उन्हें सहज ही बीजेपी का लौह-पुरुष कहा जाने लगा। आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी कभी आडवाणी जी के करीबी सहयोगियों में हुआ करते थे। साल 2009 में बीजेपी आडवाणी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ी, लेकिन सत्ता में नहीं आ सकी। ऐसे में 2013 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे कर दिया, तो आडवाणी जी की नाराजगी भी खुलकर सामने आई, लेकिन जब प्रचंड बहुमत से बीजेपी सत्ता में आईं तो आडवाणी ने नरेंद्र मोदी का आभार जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
लालकृष्ण आडवाणी पहले बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में पहुंचाए गए, लेकिन उन्होंने जिस राजनीतिक धारा को आगे बढ़ाने के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष किया, उसका मुखर और बुलंद नतीजा पूरी दुनिया के सामने है। आज की तारीख में बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। आज की तारीख में अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर बनकर तैयार है। आज की तारीख में सेक्युलर-कम्युनल राजनीति हाशिए पर लग चुकी है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की मजबूत धारा देश में बह रही है।
आडवाणी जी जिस तरह के सपनों के भारत को गढ़ने का सपना लिए सात-आठ दशकों से आगे बढ़ रहे थे, शायद वो बहुत हद तक पूरा हो गया है। अटल जी अब इस दुनिया में नहीं हैं। साल 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अब आडवाणी जी को भी भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान हो चुका है, लेकिन लोगों के भीतर से एक सोच ये भी निकल रही है कि बीजेपी ने इन दोनों ही दिग्गज नेताओं को भारत रत्न देने में देरी हुई। अटल जी को तो तभी भारत रत्न मिलना चाहिए था- जब उन्होंने राजनीति से संन्यास का ऐलान किया। तब वो पूरे होश-ओ-हवास में थे। वहीं, 2014 में बीजेपी की प्रचंड बहुमत से वापसी और आडवाणी जी को बीजेपी मार्गदर्शक मंडल में भेजे जाने के साथ ही उन्हें भी भारत रत्न मिल जाना चाहिए था।