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आर्टिफिशियल रेन की जरूरत कब पड़ी? किसने किया अविष्कार और कहां-कहां अब तक हुआ अप्लाई

आर्टिफिशियल रेन के बारे में आप कितना समझते हैं और इसकी खोज किसने की थी। आर्टिफिशियल रेन वैसे एक टेक्निक है जिसके जरिए बादलों में केमिकल्स का छिड़काव होता है ताकि बारिश हो पाए। यह टेक्निक मौसम को कंट्रोल करने की दिशा में एक प्रयास है, लेकिन इसका असर पर्यावरणीय के परिणामों पर कितना है, इस पर अभी भी रिसर्च जारी है।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Deepti Sharma Updated: Jul 3, 2025 11:05

आर्टिफिशियल रेन की जरूरत कब पड़ती है? दरअसल, बारिश की जरूरत तब होती है, जब रेन का लेवल कम हो जाता है और धीरे-धीरे सूखा पड़ने लगा। इससे किसानों को बहुत नुकसान होता है। उनकी फसल खराब हो जाती है। इसलिए आर्टिफिशियल रेन यानी की कृत्रिम वर्षा कराई जाती है, वो भी साइंस टेक्निक का इस्तेमाल करके होती है। आर्टिफिशियल रेन का खोज 1946 में अमेरिकी साइंटिस्ट विन्सेंट शेरफ ने की थी। उन्होंने बादलों में कुछ खास केमिकल सब्सटेंस स्प्रे करके बारिश लाने की तरकीब खोजी। इस सारे प्रोसेस को क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहते हैं।

किन-किन देशों में हुआ इस्तेमाल?

अब तक आर्टिफिशियल रेन टेक्निक कई देशों में इस्तेमाल हो चुकी है, जैसे भारत, चीन, अमेरिका, रूस, और ऑस्ट्रेलिया कराई गई। भारत में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, और कर्नाटक में सूखे को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। आसान शब्दों में कहे तो आर्टिफिशियल रेन से बादलों में बदलाव करके बारिश कराते हैं ताकि खेती और पानी की समस्या को हल हो पाए।

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क्यों कराई जाती है आर्टिफिशियल रेन?

जब नेचुरल बारिश कम होती है और एरिया सूखी कंडीशन में होता है, तब आर्टिफिशियल बारिश के जरिए पानी की उपलब्धता बढ़ाई जाती है। इससे फसलों को जरूरी पानी मिल जाता है। इससे एग्रीकल्चर प्रोडक्शन बढ़ सके और किसानों को लाभ हो। वहीं, जलाशयों, नदियों और अन्य वॉटर सोर्स में पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। कभी-कभी ज्यादा गर्मी या धूल भरी आंधी को कम करने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा जंगलों में आग लगने पर उसे कम करने या रोकने के लिए भी इसकी टेक्निक इस्तेमाल होती है। तो इस प्रकार, आर्टिफिशियल रेन का मकसद प्राकृतिक बारिश की कमी को पूरा कर पर्यावरण का बचाव भी करना होता है।

कैसे कराते हैं बारिश?

इस प्रोसेस में बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या अन्य सब्सटेंस डाले जाते हैं, जो पानी के बूंदों को बदलने और बारिश के रूप में गिरने में हेल्प करते हैं। इसे Cloud Seeding भी बोलते हैं।

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क्लाउड सीडिंग क्या होती है?

क्लाउड सीडिंग का मतलब है बादलों को नकली बारिश के लिए रेडी करने का काम करना है। बादलों में साइंटिफिक फॉर्म से तैयार करके फार्मूला जिसमें सिल्वर आयोडाइड नैनो पार्टिकल्स, आयोडीन युक्त नमक और सेंधा नमक शामिल होता है बीज के रूप में हवाई जहाज, रॉकेट या जमीन पर मशीनों के जरिए डाला जाता है। इसके कारण बारिश होती है। इसका मकसद हवा को साफ करना होता है।

आर्टिफिशियल रेन का किसने किया अविष्कार

आर्टिफिशियल रेन जिसे कृत्रिम वर्षा भी बोलते हैं और इसकी खोज किसी एक ने नहीं किया है बल्कि यह एक साइंटिफिक प्रोसेस है। इस टेक्निक को धीरे-धीरे एडवांस किया गया है। आर्टिफिशियल बारिश टेक्निक 1940 और 1950 के दशकों में डेवलप हुई। इसे Dr. Vincent Schaefer थे, जिन्होंने 1946 में cloud seeding की प्रोसेस को सफलतापूर्वक दिखाया था। इसके बाद, Dr. Bernard Vonnegut ने सिल्वर आयोडाइड का यूज क्लाउड सीडिंग में किया, जो आज भी कृत्रिम वर्षा के लिए मेन सब्सटेंस में से एक है। इसी तरह आर्टिफिशियल रेन टेक्निक का विकास अलग-अलग साइंटिस्टों के योगदान से हुआ है और यह एक टीम के प्रयास का रिजल्ट है।

आप ने कृत्रिम वर्षा पर उठाए सवाल 

आप पार्टी कृत्रिम वर्षा को लेकर दिल्ली सरकार पर निशाना साध रही है। उनके मुताबिक, जब केजरीवाल ने इस पर काम करना शुरू किया था, तो बीजेपी इस प्रोजेक्ट का मजाक बनाती थी। अब वहीं बीजेपी इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। केंद्र ने आप की सरकार रहते हुए एक बार भी परमिशन नहीं दी, लेकिन जब से दिल्ली में बीजेपी की सरकार आई है। तब से सारी परमिशन मिल गई है।

First published on: Jul 02, 2025 04:10 PM

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