What is Hydrographic Survey Maldives India Dispute: मालदीव सरकार ने भारत के साथ अपने जलक्षेत्र में हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण कराने के समझौते पर यूटर्न लिया है। इस समझौते पर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के बीच साइन हुए थे। अब नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की सरकार ने हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण कराने से इनकार कर दिया है। मुइज्जू ने इससे पहले मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को वापस भेजने का फरमान सुना दिया था। रिपोर्ट्स के अनुसार, मुइज्जू ऐसा चीन के इशारे पर कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समझौता क्या था और मुइज्जू सरकार भारत के खिलाफ काम क्यों कर रही है?
हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समझौता क्या है?
हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण को जल सर्वेक्षण से भी पहचाना जाता है। यह शिप के माध्यम से किया जाता है। इससे जल क्षेत्र की जुड़ी चीजों का अध्ययन करने में सफलता मिलती है। वाटर बॉडीज की विशेषताओं को समझने के लिए इसमें सोनार जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है।
इस सर्वेक्षण के जरिए पानी की गहराई, समुद्र तल और तट का आकार, संभावित अवरोध और जल निकायों की भौतिक विशेषताओं का पता लगाने में मदद मिल सकती है। भारत-मालदीव के बीच समुद्र परिवहन के क्षेत्र में यह एक बड़ी डील साबित हो रही थी। इसके तहत अब तक तीन सालों में तीन सर्वेक्षण किए गए हैं। भारतीय नौसेना के जहाज आईएनएस दर्शक ने पहला संयुक्त हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण किया था।
Maldives decides not to renew Hydrographic Survey agreement with India
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— ANI Digital (@ani_digital) December 15, 2023
अब तक 944 वर्ग किमी के क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जा चुका था। खास बात यह है कि इनमें से कुछ क्षेत्रों का अंतिम सर्वेक्षण वर्ष 1853 में किया गया था। इस सर्वेक्षण से पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि आदि क्षेत्रों को मदद मिलने की उम्मीद बन रही थी, लेकिन मालदीव ने इस पर ब्रेक लगाने का फैसला लिया है। इससे पहले भारतीय जहाजों ने मालदीव, केन्या, मॉरीशस, मोजाम्बिक, ओमान, तंजानिया और श्रीलंका में सर्वेक्षण किया है।
मालदीव क्यों खत्म करना चाहता है समझौता?
दरअसल, नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को चीन का हितैषी बताया जाता है। उन्होंने अक्टूबर में चुनाव जीतने के बाद 5.21 लाख की आबादी वाले देश की सत्ता संभाली है। मुइज्जू ने इससे पहले अपने चुनाव में ‘इंडिया आउट’ कैंपेन चलाया था। इससे पहले मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के राष्ट्रपति सोलिह भारत के बड़े समर्थक रहे थे। इस दौरान भारत-मालदीव के रिश्ते काफी अच्छे थे। वैसे मालदीव परंपरागत रूप से भारत के प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा रहा है।
दूसरी ओर, चीन हिंद महासागर में आक्रामक रूप से शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि ये फैसला लेने से पहले मालदीव की नई सरकार भारतीय सेना के एहसानों को भूल गई। सेना ने इससे पहले मालदीव में काफी मदद की है। वह समुद्र में फंसे लोगों के लिए खोज और बचाव कार्यों में सहायता करने के लिए जानी जाती है। मालदीव के अनुसार इस तरह के सर्वेक्षण करने से संवेदनशील जानकारी को खतरा हो सकता है।
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