Maratha Protest Know about Kunbi community Who get angry with Shinde government: महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जारांगे का आमरण अनशन जारी है, तो दूसरी तरफ राज्य में आंदोलनकारियों का प्रदर्शन उग्र और हिंसक हो रहा है। प्रदर्शनकारियों के निशाने पर राजनेताओं के घर और दफ्तर आ चुके हैं। इस बीच महाराष्ट्र की शिंदे सरकार कुनबी समाज के आरक्षण से हिस्सा निकालकर मराठाओं को देने की बात कर रही है। महाराष्ट्र सरकार की इस सोच ने कुनबी समाज को भी नाराज करना शुरू कर दिया है।
मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे जालना के अंतरौली में पिछले 8 दिन से भूख हड़ताल पर हैं। आंदोलनकारी नेताओं का कहना है कि मराठा और कुनबी एक ही हैं, इसलिए मराठों को भी आरक्षण मिलना चाहिए। राज्य सरकार आंदोलनकारी नेताओं से मराठा जाति को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र देने का वादा करके डैमेज कन्ट्रोल करना चाहती है, लेकिन बीजेपी के लिए इसे आत्मघाती कदम बताया जा रहा है।
दरअसल, महाराष्ट्र में बीजेपी के बढ़ने का कारण प्रदेश का ओबीसी समुदाय ही रहा है। पहले की तरह इस बार भी अगर ओबीसी समुदाय मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिए जाने का विरोध करती है तो बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ सकती है।
राज्य की कुल आबादी का 30 फीसदी है मराठा समुदाय
कुल मिलाकर मराठा आंदोलन में अब कुनबी समाज की एंट्री हो गई है। बता दें कि मराठा समुदाय राज्य की कुल आबादी का करीब 30 फीसदी है। सामाजिक और आर्थिक रूप से मराठा समुदाय काफी पीछे है। उच्च शिक्षा संस्थानों, नौकरियों और इंडस्ट्रीज में मराठा समुदाय का उतना अधिक प्रतिनिधित्व नहीं है। अब इसी मराठा समुदाय को कुनबी समाज के ओबीसी कोटे में फिट करने की कोशिश शिंदे सरकार कर रही है। मराठा आरक्षण मुद्दे में कुनबी समाज की एंट्री होने से कुनबी समुदाय की नाराजगी भी सरकार से बढ़ रही है।
महाराष्ट्र में ओबीसी का दर्जा प्राप्त कुनबी समुदाय कौन है?
आजादी के समय जो मराठा, महाराष्ट्र के थे उनमें से ज्यादातर लोगों को कुनबी मराठा का आरक्षण हासिल है। खासतौर से कोकण में इलाके में मौजूद मराठा समुदाय को कुनबी मराठा आरक्षण मिला हुआ है, लेकिन आजादी के वक्त मराठवाड़ा के 8 जिले हैदराबाद के अधीन थे। 17 सितंबर 1948 को मराठवाड़ा निजाम शासन से मुक्त हुआ था। उसके बाद मराठवाड़ा को महाराष्ट्र में शामिल किया गया, इसलिए मराठवाड़ा के मराठों को कुनबी मराठा का दर्जा नहीं दिया गया।
कहा जा रहा है कि पूर्व में मराठा आरक्षण को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हुई मराठा प्रतिनिधिमंडल की मीटिंग से भी कोई हल नहीं निकल पाया। मीटिंग के बाद सरकार की तरफ से पूर्व मंत्री अर्जुन खोत बंद लिफाफे में खत लेकर मनोज जरांगे के पास जालना गए थे, लेकिन मनोज जरांगे ने सरकार को साफ कर दिया है कि जब मराठवाड़ा हैदराबाद के निजाम शासन के अधीन था, तब कुनबी मराठों को पिछड़ी जाति में गिना जाता था। इसलिए जब तक सभी मराठाओं को कुनबी में शामिल किया जाता, तब तक आंदोलन वापस नहीं होगा।
सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी फिलहाल पूरे महाराष्ट्र में आंदोलन जारी है। शिंदे सरकार ने सबसे पहले जो शासनादेश जारी किया था, उसमें निजाम के वक्त से वंशावली को शामिल करना था। इसके बाद ही कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने की बात थी, लेकिन मनोज जरांगे की तरफ से वंशावली के नियम को खारिज करने के बाद हालात जस के तस बन गए।
मराठा और कुनबी में क्या है अंतर?
आपको बता दें कि मराठा महाराष्ट्र में जातियों का एक समूह है, जिसमें किसान, जमींदार और दूसरे वर्गों के लोग शामिल हैं। महाराष्ट्र की कुल आबादी में 30 फीसदी से ज्यादा मराठा हैं। मराठाओं की पहचान योद्धा के रूप में होती है। महाराष्ट्र की राजनीति पर भी मराठाओं का बड़ा प्रभाव रहा है। महाराष्ट्र के ज्यादातर मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं।
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में कुनबी जाति में खेती करने वाले बड़े काश्तकारों को रखा गया है। महाराष्ट्र में कुनबी समाज को जातियों का एक समूह भी कहा जाता है। ओबीसी को जब महाराष्ट्र में आरक्षण मिला तो उसमें 72 जातियां थी। महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या का 20 फ़ीसदी के करीब कुनबी है और अगर इसमें करीब 30 फीसदी मराठाओं को शामिल किया जाता है, तो कुनबी की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। यही वजह है कि कुनबी समाज में मराठाओं की एंट्री ओबीसी समाज को मंजूर नहीं है।
मराठा आरक्षण आंदोलन की आग को कब मिली हवा?
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आग को हवा उस वक्त मिली, जब 2021 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया। दरअसल, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए रिजर्वेशन की मांग लंबे समय से हो रही थी। 30 नवंबर 2018 को महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा में मराठा रिजर्वेशन बिल पास किया था। इस दौरान राज्य की सरकारी जॉब्स और शैक्षणिक संस्थाओं में मराठाओं को 16 प्रतिशत रिजर्वेशन देने का प्रावधान किया गया था।
आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में कुल आबादी लगभग 12 से 13 करोड़ के बीच में है। इस आबादी में अनुसूचित जाति के 15 फीसदी लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है। अनुसूचित जनजाति के 7.5 फीसदी लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है। अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 फीसदी लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है और अन्य 2.5 फीसदी लोगों को महाराष्ट्र में रिजर्वेशन का लाभ मिलता है।
महाराष्ट्र सरकार ने लंबे समय से चली आ रही आरक्षण की मांग को मानते हुए मराठाओं को 2018 में 16 फीसदी आरक्षण दिया। इसके बाद जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरक्षण को घटाकर 12-13 फीसदी कर दिया। इसके बाद मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया और इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका को सर्वोच्च न्यायलय ने खारिज कर दिया था।
उद्धव सरकार और वर्तमान एकनाथ शिंदे सरकार दोनों मराठा आरक्षण का समर्थन करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनके हाथ बंधे हैं। महाराष्ट्र में पहले से ही 52 फीसदी आरक्षण चला आ रहा है और ऐसे में चुनावी मौसम में एक बार फिर उठी मराठा आरक्षण की आग ने सियासत में नया उबाल ला दिया है।