Delhi air pollution November became worst in last 10 years Know Reason: दिल्ली-NCR की हवा जहरीली हो गई है। राष्ट्रीय राजधानी और इसके आसपास के इलाकों में निकलने के बाद लोगों के आंखों में जलन की शिकायत आ रही है। रिपोर्ट्स की मानें तो करीब एक दशक पहले ऐसा नहीं होता था। दिल्ली की आबो हवा खराब होने के पीछे पंजाब को भी एक कारण बताया जा रहा है लेकिन एक दशक पहले पंजाब भी था और वहां खेती भी होती थी, लेकिन अचानक ऐसा क्या बदल गया जिससे नवंबर के आसपास दिल्ली-NCR की हवा इतनी जहरीली होने लगी?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 23 साल से दिल्ली-NCR में रहने वाले कमेंटेटर संजय बनर्जी ने कहा कि हमने पहले सर्दियों में हवा की गुणवत्ता बेहतर देखी है, लेकिन पिछले दशक से वायु प्रदूषण बड़ी समस्या बन गई है। 61 साल के संजय कहते हैं कि अब मैं मॉर्निंग वॉक के लिए बाहर नहीं जाता हूं। घर पर रहकर समय गुजार लेता हूं। दिल्ली की हवा इतनी खराब हो गई है कि घर पर भी मैं एयर प्यूरीफायर का यूज करता हूं और बाहर निकलता हूं तो मास्क जरूर लगाता हूं।
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1991 से दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे पल्मोनोलॉजिस्ट डॉक्टर जीसी खिलनानी ने बताया कि मेरे पास दिवाली से ठीक पहले और दिवाली के बाद सांस की समस्याओं से जूझ रहे मरीज आते थे, लेकिन अब अक्टूबर की शुरुआत से ही हमारे पास ऐसे मरीज आने लगे हैं। नवंबर में तो ऐसे मरीज ज्यादा सामने आने लगे हैं। PSRI इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष और सदस्य डॉक्टर खिलनानी ने कहा कि ऐसे रोगियों में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
वायु प्रदूषण के मुख्य कारण आखिर क्या हैं?
दिल्ली की हवा को प्रदूषण करने के पीछे तीन मुख्य कारण हैं, जिनमें गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, निर्माणकार्य स्थलों से निकलने वाला धूल और खेतों में जलने वाली पराली से निकलने वाला धुआं शामिल है। गाड़ियों, इंडस्ट्री और बायोमास जलने से निकलने वाला धुआं PM2.5 को बढ़ावा देता है, जबकि निर्माणस्थल से PM10 निकलते हैं, जो प्रदूषण को बढ़ाने में कारगर होते हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली की हवा लगभग पूरे साल खराब रहती है, लेकिन केवल नवंबर में ये ज्यादा खतरनाक हो जाती है। वाहनों से धुआं और निर्माणस्थल से धूल तो सालभर निकलता रहता है, लेकिन जो चीज नवंबर को खतरनाक बनाती है, वो है खेतों में जलने वाली पराली और उससे निकलने वाला धुआं।
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जलवायु और ऊर्जा के लिए ग्रीनपीस इंडिया के अभियान प्रबंधक अविनाश चंचल के मुताबिक, पंजाब में, भारी मशीनरी और रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग ने पहले ही खेती को घाटे का व्यवसाय बना दिया है। पराली जलाने का विकल्प किसानों के लिए बहुत महंगा है। ऐसी स्थिति में, यदि किसान खेत में पराली नहीं जलाते हैं, तो उन्हें प्रति एकड़ कम से कम अच्छी खासी अतिरिक्त धनराशि खर्च करनी पड़ेगी, जिसे किसान वहन नहीं कर सकते।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नवंबर में जब हवा की गति कम होती है और नमी अधिक होती है, तब किसान पराली में आग लगाते हैं, जिससे प्रदूषक तत्व हवा में फंस जाते हैं। हवा की गति में कमी के कारण खेतों में जलने वाली पराली से निकलने वाला धुआं, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और निर्माणस्थलों से निकलने वाली धूल आसमान में जमा हो जाते हैं और नवंबर में दिल्ली की हवा को जहरीला बना देते हैं।
दिल्ली में वायु प्रदूषण में किसकी कितनी भागीदारी?
केंद्र सरकार की एजेंसी SAFAR के अनुमान के अनुसार, पिछले वर्षों में खेतों से निकलने वाले धुएं ने दिल्ली के पीएम2.5 प्रदूषण में 40 प्रतिशत तक योगदान दिया था। ऐसा आम तौर पर नवंबर के मध्य में होता है। लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी कि खेतों में जलने वाले पराली के लिए पंजाब को दोषी क्यों ठहराया जाता है, हरियाणा को क्यों नहीं? विशेषज्ञों का कहना है कि हरियाणा बासमती चावल उगाता है जबकि पंजाब के किसान गैर-बासमती पूसा किस्म के धान की खेती अधिक करते हैं।
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बासमती की फसल को नाजुक देखभाल की आवश्यकता होती है और इसलिए कटाई ज्यादातर मैन्युअल रूप से की जाती है। पंजाब में गैर-बासमती धान की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा की जाती है। इसके अलावा, पंजाब में खेतों का आकार हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भूखंडों की तुलना में बहुत बड़ा है, और कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग अधिक किया जाता है।
पराली तो बाहरी कारण, दिल्ली में गाड़ियों से निकलने वाला धुआं कितना जिम्मेदार?
खेत की आग या पराली जलाने से निकलने वाला धुआं एक बाहरी कारक है। लेकिन दिल्ली के वायु प्रदूषण में गाड़ियों से निकलने वाला धुआं स्थानीय कारण है, जो 12 महीने प्रभावी रहता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली में 75 लाख गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें से एक तिहाई कारें हैं। दिल्ली के बाहर रजिस्टर्ड करीब 20 लाख गाड़ियां भी राजधानी की सड़कों पर दौड़ती हैं। CSE ने 2 नवंबर को कहा कि वाहनों द्वारा उत्सर्जित नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) का औसत स्तर पिछले साल अक्टूबर के पहले सप्ताह की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक है।