मुंबई के जिओ कन्वेंशनल सेंटर में चल रहे ‘वर्ल्ड ऑडियो विज़ुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट’ मे शुक्रवार को आमिर खान ने कहा है कि भारत में फिल्मों की पहुंच बढ़ाने और हिंदी सिनेमा को फिर से सफल बनाने के लिए जरूरी है कि देश में ज्यादा सिनेमाघर बनाए जाएं। बीते दिन Waves 2025 में गुरुवार को शाहरुख खान ने भी ज्यादा और सस्ते थियेटर बनाने की जरूरत बताई थी ।
आमिर खान ने ज्यादा स्क्रीन की जरूरत बताई
समिट के दूसरे दिन आमिर एक सत्र में शामिल हुए जिसका नाम था- “भविष्य के स्टूडियो:भारत को ग्लोबल स्टूडियो मैप पर लाना”। इस दौरान उन्होंने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के लिए थिएटर और तकनीक के ढांचे में ज्यादा इन्वेस्ट करना जरूरी है।
आमिर ने कहा,”मुझे लगता है कि भारत में बहुत सारे नए सिनेमाघरों की जरूरत है, और हर तरह के थिएटर बनने चाहिए। देश के कई इलाकों में तो एक भी थिएटर नहीं है। पिछले कई सालों से जो दिक्कतें हम देख रहे हैं, वो कम स्क्रीन की वजह से हैं। हमें इसी में इन्वेस्ट करना चाहिए। भारत में बहुत ज्यादा संभावना है, लेकिन जब तक ज्यादा स्क्रीन नहीं होगा, लोग फिल्में देख ही नहीं पाएंगे।”
आमिर ने बताया कि भारत, अमेरिका और चीन के मुकाबले बहुत पीछे है। भारत में करीब 10,000 स्क्रीन हैं, जबकि चीन में 90,000 और अमेरिका में 40,000 स्क्रीन हैं, जबकि अमेरिका की आबादी भारत की एक-तिहाई है।
उन्होंने कहा,”भारत में जो 10,000 स्क्रीन हैं, उनमें से आधे तो दक्षिण भारत में हैं और बाकी पूरे देश में। इसलिए हिंदी फिल्मों के लिए सिर्फ 5,000 स्क्रीन मिलते हैं। और यही वजह है कि हमारी सबसे बड़ी हिट फिल्मों को भी सिर्फ 2% आबादी ही थिएटर में जाकर देखती है। फिर 98% लोग फिल्में कहां और कैसे देख रहे हैं?”
आमिर ने यह भी कहा कि देश के कई हिस्सों, जैसे कोंकण इलाका में एक भी थिएटर नहीं है। इस चर्चा में उनके साथ कई जाने-माने फिल्ममेकर और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग भी थे, जैसे रितेश सिधवानी, दिनेश विजान, नमित मल्होत्रा, पीवीआर-इनॉक्स के अजय बिजली और हॉलीवुड के फिल्ममेकर चार्ल्स रोवन।
शाहरुख खान ने भी सस्ते थिएटर की जरूरत बताई
समिट के पहले दिन शाहरुख खान ने कहा कि छोटे शहरों और कस्बों में ज्यादा और सस्ते थिएटर बनना बहुत जरूरी है। उन्होंने करण जौहर के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि इससे फिल्मों को ज्यादा लोगों तक सस्ते दाम पर पहुंचाया जा सकेगा।
शाहरुख ने कहा,”मुझे लगता है कि अब जरूरत है कि छोटे शहरों में सस्ते थिएटर बनें, ताकि हर भाषा की फिल्में ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें। वरना अब ये सब कुछ बस बड़े शहरों तक ही सीमित और बहुत महंगा होता जा रहा है।”
पिछले पांच सालों में हिंदी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बहुत कम चली हैं। इस दौरान कुछ गिनी-चुनी फिल्मों ने ही अच्छा पैसा कमाया है।