अश्विनीकुमार: सत्ता का नशा दुनिया के सारे नशों से बढ़कर है। सड़क से संसद तक हम दिन बदलते समीकरण दोस्त को दुश्मन और दुश्मनों को दोस्त बनते सवाल पूछना कि राजनीति का खेल कितना अजीब है। अंडरवर्ल्ड, ड्रग्स, मनी लॉडरिंग से भरे कंटेंट की भीड़ में हमें थोड़ा बहुत पॉलिटिकल साइड तो ओटीटी स्पेस पर देखने को मिल जाता है।
लेकिन नेटफ्क्लिस की सीरीज ‘हाउस ऑफ कार्ड्स’ जैसा कोई पूरा पॉलिटिकल ड्रामा हम अभी भी भारत में बनने के बारे में सोच भी नहीं सकते। ऐसे में डिज़्नी हॉटस्टार की सीरीज ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’, पॉलिटिकल बैकग्रांउड स्पेस में सबसे मजबूत पहल है। समीर नायर की एप्लॉज एंटरटेनमेंट के इस पॉलिटिकल थ्रिलर का तीसरा सीजन आ चुका है और इस बार भी इसने निराश नहीं किया है।
महाराष्ट्र की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है सीरीज की कहानी
नागेश कुकुनूर के डायरेक्शन में बनी सिटी ऑफ ड्रीम्स के तीसरे सीजन की कहानी भी महाराष्ट्र की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है। हांलाकि इसमें महाराष्ट्र की असल राजनीति की झलक तो देखेंगे लेकिन ऐसा नहीं है कि ये किसी ओरिजिनल स्टोरी पर बेस्ड हो। कहानी, महाराष्ट्र की मुख्यमंत्री पूर्णिमा गायकवाड़ की गुमशुदगी से शुरु होती है, जो बम धमाके में अपने बेटे की मौत होने के बाद ना सिर्फ़ जनता… बल्कि खुद अपने ही लोगों से बहुत दूर चली गई हैं।
अचानक गायब हो जाती है पूर्णिमा
गोवा से पूर्णिमा गायकवाड़ अचानक गायब हो जाती है। पूर्णिमा के पिता और महाराष्ट्र के कार्यकारी मुख्यमंत्री अमेय गायकवाड़, जो पिछले दो सीजन में अपनी ही बेटी के साथ राज्य के सीएम की कुर्सी के लिए खेल खेलने में बिजी थे, अब बेटी की तलाश में जुटे हैं। पहले बेटे की मौत और अब नाती की मौत ने उन्हे बदल दिया है।
पूर्णिमा को वापस लाने के लिए लगाया एड़ी-चोटी का जोर
वो पूर्णिमा को खोना नहीं चाहते और किसी भी तरह उसे वापस लाना चाहते हैं। अमेय, इस काम के लिए पूर्णिमा के करीबी एस.आई. वसीम को चुनते है। वसीम भी पूर्णिमा को वापस लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है और बैंकॉक में अपने ही गम में खोई पूर्णिमा गायकवाड़ को मनाकर वापस लाता है।
अतीत किसी का पीछा नहीं छोड़ता
इस सीजन की कहानी में सत्ता के लिए कुछ भी कर जाने वाले अमेय गायकवाड़ को बेटी के प्यार में बदलते दिखाया गया है और फिर बाप-बेटी के बीच की दूरियां कम होती है। लेकिन अतीत किसी का पीछा नहीं छोड़ता। अमेय गायकवाड़ के पाप वापस आते रहते हैं।
सत्ता के लालच में दिया बार-बार धोखा
इस सीजन में अमेय का करीबी जगदीश गुरव, जलन और सत्ता के लालच में बार-बार उन्हें धोखा देता है। अमेय से बार-बार धोखा खा चुकी, विभा भी इस साजिश में गुरव का साथ देती है।और फिर मीडिया के जरिए खबरों के ट्विस्ट का एंगल भी नागेश कुकुनूर और रोहित बनावलीकर ने इसमें जोड़ा है।
मुंबई वापस लौटती है पूर्णिमा गायकवाड़
अमेय गायकवाड़ का कमज़ोर पड़ना इस तीसरे सीज़न की सबसे बड़ी कमजोरी है और पूर्णिमा गायकवाड़ के शोक मनाने वाले सेक्वेंस को बहुत हल्के तरीके से लिखा गया है और उसे लंबा भी खींच दिया गया है। मगर एक बार जब पूर्णिमा गायकवाड़ मुंबई वापस लौटती है, तो सीरीज में रफ्तार वापस आ जाती है।
राजनीतिक चालबाजियां
विभा और अमेय की दुश्मनी जमती नहीं और मीडिया मुगल के कैरेक्टर का ट्रैक भी अटपटा है। इस सीजन का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है जगदीश गुरव की राजनीतिक चालबाजियां और उससे पूर्णिमा का बाहर निकलना। नागेश कुकुनूर ने डायरेक्शन को कसकर रखा है, लेकिन ज़्यादा कसने के चक्कर में कई कैरेक्टर्स फिसल गए हैं।
सबसे बड़ी खूबी है सीरीज के दमदार स्टार्स
इस थर्ड पार्ट में, जो एक तरह से सिटी ऑफ ड्रीम्स का क्लाइमेक्स है, उसकी सबसे बड़ी खूबी है इसके दमदार स्टार्स। पूर्णिमा गायकवाड़ के कैरेक्टर प्रिया बापट ने एक बार फिर जबरदस्त इंप्रेस किया है। अमेय गाकवाड़ बने अतुल कुलकर्णी के तेवर भले ही इस बार कमजोर लिखे गए हों, लेकिन मजाल है कि वो एक सेकेंड के लिए भी अपने कैरेक्टर से अलग हुए हों।
सिटी ऑफ ड्रीम्स के सीजन 3 को 3 स्टार
जगदीश गुरव बने सचिन पिलगांवकर की चालबाजियां और उनके बदलते- एक्सप्रेशन्स इस सीजन की सबसे बड़ी हाईलाइट है। एस.आई. एजाज खान भी बहुत दमदार है, लेकिन डॉन जगन बने सुशांत सिंह, मीडिया मुगल बने रणविजय सिंह और सबसे ज़्यादा फ्लोरा सैनी ने निराश किया है। सिटी ऑफ ड्रीम्स के सीजन 3 को 3 स्टार है।