Success Story: कभी आनंद कृष्ण मिश्रा ने लखनऊ की सड़कों पर मलिन बस्ती के बच्चों को पढ़ाकर उन्हें एक सुनहरा भविष्य देने का सपना देखा था। अब आनंद कृष्ण मिश्रा अमेरिका में अपनी क्लासेस लगाएंगे, क्योंकि उन्हें अमेरिका के एक बड़े विश्वविद्यालय में दो साल के लिए टीचिंग असिस्टेंट के तौर पर चुना गया है। आइए जानते है, आनंद कृष्ण मिश्रा के बारें में
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में टीचिंग आसिस्टेंट का मिला पद
आनंद कृष्ण मिश्रा को अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में टीचिंग असिस्टेंट के तौर पर नियुक्त किया गया है। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी से आनंद अपनी बैचलर डिग्री ‘बैचलर्स साइंस इन कंप्यूटर’कर रहे हैं। आनंद की बैचलर डिग्री का यह तीसरा व अन्तिम साल है। इसी दौरान यह उपलब्धि उन्हें उनके एकेडमिक प्रदर्शन को देखते हुए यूनिवर्सिटी की ओर से दी गई है।
11 साल की उम्र में लगाया ‘बाल चौपाल’
आनंद कृष्ण मिश्रा के पिता अनूप मिश्रा और मां रीना पांडेय मिश्रा उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में हैं। सीनियर सब इंस्पेक्टर के पद पर दोनों ही उन्नाव में तैनात हैं। इससे पहले आनंद कृष्ण लखनऊ में रहते थे। पिता अनूप मिश्रा ने बताया कि आनंद ने 11 साल की उम्र में ही लखनऊ में ‘बाल चौपाल’ लगाना शुरू कर दिया था। उन्होंने लखनऊ की कई मलिन बस्तियों के बच्चों को पढ़ना, लिखना सिखाया है, जिसने बच्चों के भविष्य को संवारने का संकल्प लिया,अब वह विदेश में जो छात्र-छात्राएं इस बार प्रथम साल में कदम रखेंगे, उनको पढ़ाएंगे।
एकेडमिक प्रदर्शन के द्वारा नियुक्त
आनंद कृष्ण ने एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान अपने चारों सेमेस्टर में अच्छे नंबर हासिल किए हैं। इसी प्रदर्शन को देखते उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। जिस यूनिवर्सिटी में वह पढ़ रहे हैं, वहीं उन्हें पढ़ाने का मौका मिल गया है। आनंद कृष्ण मिश्रा को ‘डीन मेडल’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। आनंद कृष्ण ने विदेश में पूरे भारत का नाम रोशन किया है।
गरीबों बच्चों को निशुल्क पढ़ाया
आनंद कृष्ण जब लखनऊ में थे, तब वह काउंसिलिंग के साथ-साथ गरीब बच्चों को कंप्यूटर, गाणित, विज्ञान, आदि का बेसिक ज्ञान बांटते थे। बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने में आनंद को एक अलग ही सुख मिलता था। आनंद ने 2012 में अपने इस अभियान को “बाल चौपाल” नाम दिया।
गरीब बच्चे की लगन देखकर हुए प्रेरित
आनंद कृष्ण जब चौथी कक्षा में थे। तब अपने मम्मी-पापा के साथ अजंता-एलोरा घूमने गए। वहां एक मंदिर में दर्शन करते वक्त आरती हो रही थी, तभी एक गरीब बच्चा, दौड़ कर आया और आरती में शामिल हो गया। वह बेहतरीन सुर में आरती गा रहा था। आरती संपन्न होते ही, बच्चा मंदिर के बाहर जाकर बैठ गया और किताब खोलकर पढ़ने लगा। आनंद को यह देख बहुत अच्छा लगा। आनंद के पिता ने उस गरीब बच्चें को पैसे दिये, लेकिन बच्चे ने यह कहकर लेने से इंकार कर दिया कि अंकल अगर देना ही है तो मेरे लिए कॉपी-किताबें खरीद दीजिये। उसी दिन से आनंद के मन में गरीब बच्चों को पढ़ाने व पढ़ाई में मदद करने की इच्छा जागृत हो गई थी।