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जेल में गर्भवती महिला कैदियों को मिलती हैं ये खास सुविधाएं, जानिए क्या कहता है जेल मैनुअल

मेरठ के सौरभ मर्डर केस की मुख्य आरोपी मुस्कान इस समय जेल में सजा काट रही है। लेकिन हाल ही में उसकी प्रेग्नेंसी रिपोर्ट सामने आई है जिसके मुताबिक वह मां बनने वाली है। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि आखिर जेल मैनुअल में गर्भवती महिला कैदियों के लिए क्या नियम है और उन्हें कौन-कौन सी सुविधाएं मिलती हैं।

Author Edited By : News24 हिंदी Updated: Apr 8, 2025 15:33
rules for pregnant women prisoners in jail

मेरठ में हुए चर्चित सौरभ मर्डर केस ने पूरे देश को चौंका दिया है। इस मामले में सौरभ की पत्नी मुस्कान और उसके प्रेमी साहिल को साजिश रचकर हत्या करने का दोषी पाया गया है। पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। अब इस केस में एक नया मोड़ आया है। दरअसल, मुस्कान गर्भवती है, और इसका खुलासा हाल ही में किए गए प्रेग्नेंसी टेस्ट से हुआ है। इसकी पुष्टि खुद सीएमओ ने की है।

ऐसे में सवाल उठता है कि जेल में बंद गर्भवती महिला को कौन-कौन सी सुविधाएं मिलती हैं और क्या मुस्कान को गर्भावस्था के कारण किसी प्रकार की राहत मिल सकती है? आइए जानते हैं भारतीय कानून में गर्भवती महिला कैदियों के लिए क्या नियम बनाए गए हैं।

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जेल में गर्भवती महिला के लिए क्या हैं नियम?

भारतीय संविधान और जेल मैनुअल के अनुसार, गर्भवती महिला कैदियों को कुछ विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान की जाती हैं:

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– अलग बैरक की व्यवस्था: गर्भवती महिला को अन्य सामान्य कैदियों से अलग रखा जाता है। उन्हें ऐसी महिला कैदियों के साथ रखा जाता है जो या तो गर्भवती हों या नवजात शिशु के साथ हों।

– रेगुलर मेडिकल जांच: जेल में महिला डॉक्टर और नर्सों द्वारा प्रेग्नेंट महिला की रेगुलर जांच होती है।

– विशेष खानपान: गर्भवती महिला के लिए पोषणयुक्त भोजन का प्रबंध किया जाता है, ताकि मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके।

– मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान: प्रेग्नेंसी के दौरान मानसिक तनाव को कम करने के लिए काउंसलिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है।

– कोई कठिन श्रम कार्य नहीं: गर्भवती महिलाओं से किसी प्रकार का शारीरिक श्रम नहीं कराया जाता।

क्या गर्भवती मुस्कान को राहत मिल सकती है?
हालांकि मुस्कान गर्भवती है, लेकिन उस पर गंभीर अपराध हत्या का आरोप है और पुलिस के अनुसार उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। ऐसे में सिर्फ गर्भवती होने के आधार पर सजा में राहत मिलना मुश्किल है।

हालांकि, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) और भारतीय दंड संहिता (IPC) में कुछ विशेष प्रावधान मौजूद हैं जो गर्भवती महिला कैदियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। अगर कोर्ट मानवीय आधार पर निर्णय लेता है, तो उसे कुछ हद तक राहत मिल सकती है, लेकिन यह पूरी तरह कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है।

फांसी की सजा और गर्भवती महिला: क्या कहता है कानून?
अगर किसी महिला को मृत्युदंड (फांसी) की सजा सुनाई गई है और वह गर्भवती पाई जाती है, तो CRPC की धारा 416 के अनुसार, उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है।

इसका कारण यह है कि अजन्मे बच्चे की कोई गलती नहीं होती, और मानवाधिकारों के तहत उसके जीवन और देखभाल का अधिकार सुरक्षित रखना आवश्यक है। जब तक बच्चा जन्म न ले और प्रारंभिक देखभाल पूरी न हो जाए, तब तक फांसी को टाल दिया जाता है।

नवजात की देखभाल भी है जिम्मेदारी
गर्भवती महिला के जेल में बच्चे के जन्म के बाद, जेल प्रशासन की यह जिम्मेदारी होती है कि शिशु की उचित देखभाल, टीकाकरण और पोषण की व्यवस्था की जाए। अधिकांश जेलों में क्रेच (Creche) और मदर चाइल्ड यूनिट्स बनाई गई हैं, ताकि मां और बच्चे दोनों का ख्याल रखा जा सके।

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News24 हिंदी

First published on: Apr 08, 2025 03:33 PM

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