बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) आमतौर पर सुरक्षित निवेश माना जाता है। खासतौर पर ऐसे निवेशक FD करना पसंद करते हैं, जिन्हें अधिक रिटर्न की चाह में ज्यादा जोखिम मोल लेने में कोई दिलचस्पी नहीं। बैंक लोगों को फिक्स्ड डिपॉजिट के प्रति आकर्षित करने के लिए समय-समय पर ब्याज दरों में इजाफा करते रहते हैं। हालांकि, 9 अप्रैल के बाद से FD पर ब्याज दरें लगातार कम हो रही हैं। अब तक कई बैंक FD पर ब्याज दरों में कटौती कर चुके हैं। ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
कई बैंकों ने घटाई दरें
देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक SBI से लेकर देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक HDFC तक, कई बैंकों ने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरों को पहले के मुकाबले कम किया है। ऐसे में निवेशकों की FD पर होने वाली कमाई पहले के मुकाबले अब कम हो गई है। एचडीएफसी बैंक ने चुनिंदा अवधियों के फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरों को 50 आधार अंकों (BPS) तक कम कर दिया है। वहीं, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरों में 0.10% से 0.25% तक की कटौती की है। इसी तरह, पंजाब नेशनल बैंक (PNB), यस बैंक, केनरा बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, इक्विटास, बैंक ऑफ इंडिया और शिवालिक स्मॉल फाइनेंस बैंक आदि ने भी FD पर ब्याज दरें घटाई हैं।
RBI का फैसला है वजह
बैंकों द्वारा FD पर मिलने वाले इंटरेस्ट रेट पर चल रही कैंची की वजह है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो रेट में कटौती पर हुआ फैसला। 9 अप्रैल को आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बैठक में लिए फैसलों की जानकारी देते हुए बताया था कि रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती के बाद यह 6% हो गई है। RBI के इस कदम से जहां लोन सस्ते होने का रास्ता खुला। वहीं, FD के मोर्चे पर झटका भी लगा। बैंकों ने लोन सस्ते करके FD पर ब्याज दरें कम कर दीं।
रेपो रेट और FD का रिश्ता क्या?
रेपो रेट और FD की ब्याज दरों के बीच एक खास रिश्ता है। रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। ऐसे में जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है और वो ग्राहकों के कर्ज को भी महंगा कर देते हैं। इसके उलट जब रेपो रेट में कटौती होती है, तो बैंकों को केंद्रीय बैंक से सस्ते में लोन मिलता। इसका फायदा बैंकों द्वारा ग्राहकों को देने की संभावना बढ़ जाती है। इससे लोन सस्ते होने का रास्ता खुल जाता है और आपकी EMI का बोझ कुछ कम होने की उम्मीद बढ़ती है। लेकिन फिक्स्ड डिपाजिट पर मिलने वाला ब्याज अपेक्षाकृत कम हो जाता है।
कमी की क्या है वजह?
बैंक आमतौर पर फिक्स्ड डिपॉजिट पर अधिक ब्याज देकर उसे इसलिए आकर्षक बनाते हैं, ताकि लोग बैंकों में ज्यादा से ज्यादा पैसा रखें और उससे बैंक अपनी आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चला सकें। जब आरबीआई रेपो रेट में कटौती करता है, तो बैंक उससे कम लागत पर धन उधार ले सकते हैं। ऐसे में बैंकों को धन आकर्षित करने के लिए हाई रिटर्न की पेशकश की खास आवश्यकता नहीं रहती। इस वजह से वह FD पर ब्याज दरें कम कर देते हैं। इसलिए जब रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में एक और कटौती की, तो बैंकों ने भी FD पर ब्याज दरें घटाना शुरू कर दिया।
पहले भी हुआ है ऐसा
फरवरी में जब RBI ने पांच साल के अंतराल के बाद रेपो रेट में 0.25% की कटौती करके उसे 6.25% कर दिया था, तो इसके बाद बैंकों द्वारा FD पर मिलने वाले ब्याज में भी संशोधन किया गया था। प्राइवेट सेक्टर के DCB बैंक ने तुरंत 3 करोड़ रुपये से कम की FD पर ब्याज दरों में 65 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की थी और नई दरें 14 फरवरी से लागू हो गई थीं। इसके अलावा, एचडीएफसी बैंक, यस बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक सहित कुछ दूसरे बैंकों ने भी FD ब्याज दरों को अपडेट किया था। अप्रैल में दूसरी कटौती के बाद से भी अब तक कई बैंक बाकायदा ऐसा कर चुके हैं।