इन्फोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति को आप अच्छी तरह पहचानते होंगे. हाल ही में उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के विकास के लिए युवाओं को हफ्ते में 72 घंटे काम करने की आदत डालनी चाहिए. चीन के मशहूर ‘996 वर्क कल्चर’ का उदाहरण देते हुए नारायण मूर्ति ने कहा कि युवाओं को सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, हफ्ते में 6 दिन यानी 72 घंटे काम करने की आवश्यकता है.
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नारायण मूर्ति के इस आइडिया को सुनकर हर तरफ बहस छिड़ गई है. सोशल मीडिया पर यह चर्चा का विषय है कि जिस 996 वर्क कल्चर को चीन ने गैर-कानूनी बताया है, क्या उसे भारत में लागू करना चाहिए? इस बहस में जाने से पहले आइये आपको ये बताते हैं कि 996 वर्क कल्चर आखिर है क्या ? इसकी कैसे शुरुआत हुई और चीन में इसे गैर-कानूनी वर्क कल्चर क्यों बताया गया है?
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आखिर क्या है 996 वर्क कल्चर?
‘996’ शब्द का मतलब है एक ऐसा वर्किंग शेड्यूल जिसमें कर्मचारी हफ्ते में छह दिन सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक काम करते हैं.यानी कुल मिलाकर हफ्ते में 72 घंटे, जो ज्यादातर देशों में स्टैंडर्ड वर्किंग घंटों से कहीं ज्यादा है.
चीन के टेक बूम के दौरान यह तरीका काफी पॉपुलर हुआ था. खासकर ई-कॉमर्स, इंटरनेट और स्टार्टअप्स जैसी तेजी से बढ़ रही कंपनियों में इस वर्क कल्चर ने खूब साथ निभाया.
यहां तक कि कुछ लीडर्स के लिए तो ये मेहनत, एम्बिशन और बिना रुके ग्रोथ का एक सिंबल बन गया.
कैसे हुई शुरुआत?
2010 के दशक में चीन के टेक सेक्टर के तेजी से बढ़ने से 996 की शुरुआत हुई. अलीबाबा, टेनसेंट, JD.com जैसी बड़ी टेक कंपनियां, तब बेजोड़ रफ्तार से बढ़ रही थीं. खैर ये सिर्फ चीन में ही नहीं हो रहा था. दुनियाभर की कंपनियां इस दौड़ में लगी हुई थीं. कंपनियां नए मार्केट में दबदबा बनाने की होड़ में थीं. लेकिन इनमें आगे वही निकलता जिसकी स्पीड ज्यादा होती.
इस माहौल में, 996 अपने आप ही एक आम बात बन गई. चीन के युवा प्रोफेशनल्स ने यह बात अपने अंदर बिठा ली कि अगर आपको जबरदस्त ग्रोथ चाहिए तो इसके लिए जबरदस्त कमिटमेंट की जरूरत भी होगी. कई चीनी कर्मचारी ये भी मानते हैं कि सफल होने की बेताबी है तो इन काम के घंटों को जारी रखना होगा.
जैक मा जैसे फाउंडर्स ने लंबे समय तक काम करने को ‘बहुत बड़ा आशीर्वाद’ बताकर उसे महत्वाकांक्षा का प्रतीक बना दिया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश की असाधारण तरक्की चाहिए तो उसके लिए असाधारण निजी त्याग भी करना होगा.
दूसरी ओर, कर्मचारियों को भी ये लगने लगा कि जल्दी प्रमोशन, बड़े बोनस और सबसे पसंदीदा रोल खुद को देखना है तो ये करना होगा.
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हालांकि चीन के लेबर कानूनों ने पहले से ही रोजाना और हफ्ते के वर्किंग आवर्स पर साफ लिमिट लगा दी थी, लेकिन उन शुरुआती तेजी के सालों में उन्हें लागू करना एक जैसा नहीं था.
बढ़ते टेक मार्केट, कमजोर निगरानी और ज्यादा काम को कल्चरल तौर पर स्वीकार करने के खेल ने 996 को बिना किसी चुनौती के, अनऑफिशियल इंडस्ट्री स्टैंडर्ड के तौर पर उभरने दिया.
ग्रोथ में मददगार, फिर चीन ने इसे गैरकानूनी क्यों बताया?
शुरुआती ढिलाई के बाद साल 2021 तक, चीनी सरकार ने इस प्रैक्टिस के खिलाफ जोरदार विरोध करना शुरू कर दिया. ये सिर्फ बयानबाजी में ही नहीं, बल्कि कानूनी तौर पर भी हो रहा था.
996 की वजह से शुरुआत में तेजी तो आई, लेकिन धीरे-धीरे ये समझ आने लगा कि ये टिकाऊ नहीं है. इसकी वजह से कर्मचारियों के ऊपर बहुत ज्यादा दबाव बढ़ गया था.
लंबे समय तक बर्नआउट की रिपोर्टें आम हो गईं. कर्मचारी नींद की कमी, बिगड़ती मेंटल हेल्थ और वर्क लाइफ बैलेंस के खराब होने के बारे में खुलकर बात करने लगे.
रॉयटर्स के मुताबिक, साल 2021 में, ई-कॉमर्स कंपनी पिंगडुओडुओ की एक 22 साल की महिला कर्मचारी की आधी रात के बाद काम से घर लौटते समय गिरने से मौत हो गई.इस घटना के बाद पूरे देश में खलबली मच गई. टेक और लॉजिस्टिक्स सेक्टर में ज्यादा काम करने वाले कर्मचारियों की हुई अचानक मौत ने इस बात पर सोचने को मजबूर कर दिया कि ग्रोथ के लिए क्या कीमत चुका रहे.
इसी बीच साल 2019 में, चीनी टेक वर्कर्स के एक ग्रुप ने ‘996.ICU’ नाम से एक GitHub रिपॉजिटरी बनाई. इसका मतलब ये था कि 996 पर काम करने से आप ICU में जा सकते हैं. देखते ही देखते ये रिपॉजिटरी वायरल हो गई और धीरे-धीरे एक मूवमेंट में बदल गया.
इसका नतीजा ये निकला कि अगस्त 2021 में चीन के सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट ने ह्यूमन रिसोर्स और सोशल सिक्योरिटी मिनिस्ट्री के साथ मिलकर एक पब्लिक स्टेटमेंट जारी किया, जिसमें साफ तौर पर 996 को लेबर लॉ का गंभीर उल्लंघन बताया गया.
हालांकि सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चीन में अब भी 996 वर्किंग कल्चर अनऑफिशियली छुप-छुपाकर जारी है. कुछ कंपनियां लॉन्ग वीक, शॉर्ट वीक का हवाला देते हुए कर्मचारियों से 9 घंटे से ज्यादा भी काम करा रही हैं.










