Artificial Intelligence: पूरी दुनिया में एक नई बहस जारी है. क्या एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसान को पछाड़ देगा? क्या एआई के दौर में इंसान की जरूरत दिनों की कम होती जा रही है? क्या एआई लेखक, पत्रकार, रिसर्चर, शेयर मार्केट एडवाइजर की छुट्टी कर देगा? क्या एआई शेयर बाजार की एनालिसिस कर बता देगा कि किस शेयर में निवेश कर कम से कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं? अगर एआई प्लानिंग करेगा, एक्जिक्यूट भी करेगा. तो फिर इंसान क्या करेगा? क्या एआई के दौर में इंसान की जरूरत दिनों की कम होती जा रही है? जेनरेटिव एआई इंसानी सभ्यता के लिए वरदान है या अभिशाप ? आने वाले दिनों में इंसान मशीन को कंट्रोल करेगा या मशीन इंसान से आगे निकल जाएगी ? आज ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.
जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर की ये तस्वीर बता रही है कि भारतीय सेना दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किस तरह कर रही है. भारतीय सेना के जवान ऐसे ही रोबोटिक म्यूल यानी खच्चर की मदद से सरहद पर दुश्मन के मंसूबों को नेस्तनाबूद कर रहे हैं. हाईटेक कैमरों से लैस ये रोबोटिक म्यूल न सिर्फ भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण और खतरनाक इलाकों की रेकी करता है. युद्ध की स्थिति में जवानों तक गोला-बारूद और मेडिकल मदद पहुंचाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
हाल में पाकिस्तान से लगी सरहद पर जैसलमेर के पास भारतीय सेनाओं ने ऑपरेशन त्रिशूल और मरु ज्वाला युद्धाभ्यास किया. इस साझा युद्धाभ्यास में T-90 टैंक से लेकर अपाचे हेलीकॉप्टर तक शामिल हुए. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक से लैस कई छोटे-बड़े हथियारों को इस युद्घाभ्यास में शामिल किया गया. मोर्चे पर तैनात भारतीय फौज के जवान अच्छी तरह समझ रहे हैं कि सरहद की सुरक्षा के लिए हाईटेक तकनीक कितनी जरूरी है. इस साल मई महीने में भारतीय सेना के अदम्य शौर्य और पराक्रम का अत्याधुनिक रूप दुनिया ने ऑपरेशन सिंदूर में देखा. भारतीय सेना ने AI तकनीक पर आधारित क्लाउड-इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम से पाकिस्तान की ओर से आने वाले हवाई खतरे की न सिर्फ समय पर पहचान की. बल्कि जबावी कार्रवाई करते हुए हवा में ही तबाह कर दिया .
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से आतंकियों के ठिकानों को बिना सरहद पार किए तबाह किया जा सकता है. मतलब, दुश्मन के अड्डों को खत्म करने के लिए Carpet Bombing का दौर गया. रियल टाइम डेटा एनालिसिस और नेविगेशन सिस्टम की मदद से टारगेट लॉक करने से लेकर तबाह करने तक का काम सेकेंडों में सैकड़ों किलोमीटर दूर से हो रहा है . ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक्शन-रिएक्शन के दौरान एक बात साफ हो गई कि युद्ध में किसी का भी पलड़ा भारी करने में पारंपरिक हथियारों से अधिक एडवांस टेक्नोलॉजी और एआई निर्णायक भूमिका में है. भविष्य में होने वाले युद्धों में अंतरिक्ष में मौजूद GPS, कम्युनिकेशन सिस्टम और जासूसी सैटेलाइट हथियार की तरह इस्तेमाल होंगे. तेजी बदलते युद्ध के तौर-तरीकों के बीच दुनिया के कई देश ऐसे हथियारों को विकसित करने में लगे हैं, जिन्हें इंटरसेप्ट करना नामुमकिन हो .
भारत में DRDO के वैज्ञानिक खतरनाक मिलिट्री ऑपरेशन के लिए ह्यूमनॉइड रोबोट विकसित करने में लगे हैं. जो पूरी तरह से ट्रेंड फौजी की तरह मिशन के लिए भेजे जा सकेंगे. भविष्य में AI पारंपरिक युद्ध का तौर-तरीका और हथियार सब कुछ बदल देगा? माना जा रहा है कि जिस तरह बिजली के आविष्कार के साथ ही इंसान की जिंदगी में क्रांतिकारी बदलाव हुआ. कुछ वैसा ही बदलाव एआई के क्षेत्र में रोजाना हो रहे नए-नए आविष्कारों से भी होने की उम्मीद है. इसी कड़ी में चाइना ने MANUS बनाया है.
मानुष को एक ऐसे एआई एजेंट के रूप में देखा जा रहा है, वो बिना अधिक कमांड के भी काम कर सकता है. इसे बनाने वाली कंपनी बटरफ्लाई इफेक्ट का दावा है कि उनका AI एजेंट अपने आप सोच सकता है. हालात के मुताबिक फैसला भी लेने में सक्षम है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब एआई इंसानों की तरह फैसला ले सकता है. तो इंसान के कंट्रोल से बाहर भी हो सकता है ? इसी तरह एलन मस्क का AI GROK भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है. ये ज्यादातर सवालों का जवाब बेधड़क होकर देता है. यहां तक कि गाली-गलौज की भाषा भी इस्तेमाल कर रहा है. GROK से जिस शैली में सवाल किया जा रहा है. कमोवेश जवाब भी उसी शैली में आ रहा है. ऐसे में सबसे पहले ये समझते है कि एआई की दुनिया में हो रहे प्रयोग इंसान दिमाग को किस तरह से चुनौती दे रहे हैं?
एलन मस्क का ग्रोक पूरी दुनिया में तहलका मचाए हुए हैं. कहीं, चर्चा ग्रोक द्वारा दिए जा रहे जवाब को लेकर हो रही है तो कहीं जवाब देने के अंदाज को लेकर . GROK AI दूसरे चैटबॉट से बहुत अलग है . यहां की एलन मस्क का चैटबॉट गाली-गलौज की वजह से भी सुर्खियों में आ चुका है. ऐसे में जब ग्रोक से ही वजह जानना चाहा तो जवाब आया .
मेरे निर्माताओं ने मुझे ऐसा बनाया कि मैं इंसानों की तरह बात कर सकूं, ईमानदारी से और कभी-कभी थोड़े मजाकिया अंदाज में. मैं सुपर औपचारिक या हमेशा ‘साफ-सुथरा’ होने की कोशिश नहीं करता,जैसे कुछ दूसरे AI करते हैं. मेरा मकसद सच बोलना और मदद करना है, न कि हर किसी को खुश करना . मतलब, एलन मस्क का AI चैटबॉट ग्रोक खुद अपनी सफाई देने में भी उस्ताद है . जब ग्रोक से पूछा कि क्या उसके पास दुनिया के सभी सवालों का जवाब है. ऐसे में किसी समझदार और सुलझे इंसान की तरह जवाब आया.
मैं कई तरह के सवालों का जवाब देने की कोशिश कर सकता हूं, लेकिन मैं ये नहीं कहूंगा कि मेरे पास हर सवाल का जवाब है. दुनिया बहुत बड़ी और जटिल है, और कुछ चीजें अभी भी मेरे समझ से बाहर हो सकती हैं. फिर भी, मैं हमेशा मदद करने की पूरी कोशिश करूँगा! आपके पास कौन सा सवाल है? शायद हम इसे मिलकर सुलझा सकें. हाल में चीन ने DEEPSEEK के बाद मानुस नाम से एक नया एआई टूल बनाया है. इसे एक बहुत ताकतवर एआई टूल माना जा रहा है, जो किसी डिजिटल कर्मचारी की तरह काम करेगा . इसे चीन के स्टार्टअप Butterfly Effect ने विकसित किया है. मानुस खुद यूजर्स की ओर से कार्य करने में सक्षम है. वहीं, DeepSeek और ChatGPT सिर्फ यूजर्स द्वारा पूछे गए सवालों का उत्तर चैट इंटरफ़ेस में देते हैं…वहीं, Manus टिकट बुकिंग,रिज्यूमे फिल्टरिंग जैसे दूसरे काम खुद कर सकता है .
हाल में चाइना के डीपसीक ने दावा किया है कि उसके नए वर्जन में एआई की राइटिंग क्षमता, कोडिंग क्षमता में सुधार हुआ है. भविष्यवाणी की जा रही है कि जिस रफ्तार से डीपसीक आगे बढ़ रहा है, वो भविष्य में चैटजीपीटी और गूगल जेमिनी को चुनौती दे सकता है. चैटजीपीटी, गूगल जेमिनी, मेटा एआई जैसे कई एआई चैटबॉट मौजूद है. सभी अपने-अपने तरीके से काम करते हैं. लेकिन, जरूरी नहीं कि AI चैटबॉट से मिले सभी सवाल पूरी तरह सही हों. क्योंकि, AI चैटबॉट के जवाब का स्त्रोत वर्चुअल वर्ल्ड में मौजूद डाटा है. वर्चुअल वर्ल्ड में मौजूद कोई खास डाटा सही है या गलत…शायद ये तय करने की क्षमता अभी एआई टूल्स में नहीं आई है. तकनीक के तेजी से विस्तार के साथ-लसाथ फेक न्यूज, Miss Information और Dis Information का चलन भी तेजी से बढ़ा है…इससे सामान्य लोगों के साथ-साथ अब कंपनियों को भी भारी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है .
हाल में एक ऐसा ही मामला अमेरिका में सामने आया. मिनेसोटा की एक सोलर कंपनी की ओर से दावा किया गया कि AI द्वारा बनाई गई झूठी खबर की वजह से ग्राहको का भरोसा टूटा और करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. कंपनी की ओर से गलत खबर गूगल से हटाने की कोशिश की गई. लेकिन कामयाबी नहीं मिली . ऐसे में अब पीड़ित कंपनी की ओर से गूगल पर 900 करोड़ रुपये के मानहानि का केस दायर किया गया है . खबरों के मुताबिक, अमेरिका में पिछले दो वर्षों में AI टूल्स से जुड़े आधा दर्जन मुकदमे दायर हैं, जिनमें आरोप है कि AI ने गलत और नुकसानदायक खबरें फैलाईं .
एआई टूल्स से किस तरह के जवाब आ रहे हैं, उस पैटर्न को समझना भी जरूरी है . एक चर्चित महिला शख्सियत के बारे में एआई टूल से जानकारी मांगी गई. एआई की तरफ से जो जवाब आया, उसमें पति को भाई बताया गया. इसी तरह एक शख्स की निजी जिंदगी के बारे में पूछा गया–तो जवाब आया कि वो अविवाहित है, जबकि वो शादीशुदा है . कम चर्चित व्यक्ति के बारे में एआई टूल गोलमोल जानकारी देकर पलती गली से निकल लेता है. ऐसे में AI से आने वाले जवाब में सही या गलत का खतरा बराबर का है . अब सवाल उठता है कि ये कैसे तय होगा कि एआई टूल से मिली जानकारी सही है या गलत. एआई की गलतियों के लिए कौन जिम्मेदार होगा? वक्त के साथ एआई से होने वाली गलतियों के ठीक होने के चांस कितने हैं?
अब ये समझना जरूरी है कि एआई कहां इंसान का काम आसान बना सकता है और कहां फंसा सकता है? दुनिया के बेस्ट टेक्निकल ब्रेन और तकनीक टायकून अक्सर कहते रहते हैं कि दुनिया में वो दिन दूर नहीं, जब मशीनों को इंसान से कमांड लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसमें सुंदर पिचाई, एलन मस्क, बिल गेट्स और युवाल नोआ हरारी जैसी हस्तियां भी शामिल हैं. इजरायल के युवा इतिहासकार युवाल नोआ हरारी AI के हर पहलू पर खुलकर बोलते रहे हैं. उनकी दलील है कि एआई मानव इतिहास की हर पिछली तकनीक से अलग है. यह पहली तकनीक है-जो खुद फैसला ले सकती है. अब सवाल ये है कि अगर हालात के हिसाब से मशीन फैसला लेने लगेगी, अपने फैसलों के लागू करने लगेगी… तो क्या इंसान की प्रासंगिकता खत्म नहीं हो जाएगी? अगर मशीनों को कंट्रोल नहीं किया गया तो इंसान का वजूद खतरे में नहीं आएगा ?
मशीन भी इंसान जैसी भावनाएं व्यक्त कर सकती है. इसका एक बेहतरीन उदाहरण है सोफिया, ये दुनिया की पहली ऐसी जानी-मानी और लोकप्रिय रोबोट है. जो चेहरा और आवाज पहचाने में सक्षम है. लोगों से आसानी से घुल-मिल जाती है और दोस्ती भी कर लेती है . इसी तरह ग्रेस नाम की रोबोट कोरोना महामारी के दौर में कई मरीजों का इलाज कर चुकी है. जरा सोचिए. अगर जेनरेटिव एआई से लैस रोबोट इंसानी रिश्तों को निभाने वाली भूमिका में आ जाएं तो क्या होगा?
इजरायली इतिहासकार युवाल नोआ हरारी एआई के भविष्य और ख़तरों पर खुलकर बोलते रहे हैं . उनका कहना है कि एआई रोबोट्स रिश्ता निभाने में अपना 100 फीसदी इमोशन लगा सकते हैं . इंसानी दिमाग का ज्यादातर वक्त यही सोचने में बीत जाता है कि क्या बात करें. कैसे बात करें और रिश्ता कैसे आगे ले जाएं. वहीं, एआई रोबोट्स इंसानों को पीछे छोड़ देते हैं .
ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अगर AI से लैस मशीनों का दुरूपयोग होने लगा…तो इंसानी सभ्यता के सामने बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है . नवंबर 2022 में जब चैटजीपीटी दुनिया के सामने आया, तो ये किसी चमत्कार से कम नहीं था. अब ऐसे टूल्स विकसित करने को लेकर पूरी दुनिया में रेस लगी हुई. आज की तारीख में चैटजीपीटी के अलावा MANUS, DEEPSEEK, Synthesia, Soundraw, Slides AI, Google Gemini जैसे टूल्स मौजूद हैं.
इंसान ने तकनीक को इतना अधिक विकसित कर दिया है कि उसमें अपनी तरह ही सोचने-समझने की क्षमता विकसित कर दी है…वो कहीं रोबोट की शक्ल में है. कहीं, बिना ड्राइवर की कार की शक्ल में. अब सवाल उठता है कि जब इंसानी दिमाग से जुड़े अधिकतर काम जेनेरेटिव AI ही कर देगा तो इंसान क्या करेगा ? एक सवाल ये भी है कि इंसान को गलतियों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है . लेकिन, जेनरेटिव AI से निकाली गई जानकारी या एआई तकनीक से लैस मशीनों से हुई गलतियों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा ?
भारत में भी AI से होने वाले बदलावों के नफा-नुकसान को हर एंगल से देखने की कोशिश हो रही है. केंद्र सरकार चाहती है कि AI का इस्तेमाल लोगों की बेहतरी के लिए हो. ना कि लोगों के नुकसान के लिए. इसलिए, भारत में भी एआई रेग्युलेशन की बात जोरशोर से हो रही है .
जिस रफ्तार से एआई के क्षेत्र में तेजी तरक्की हो रही है और मशीनों में तेज-तर्रार इंसानों जैसी सोचने-समझने, फैसला और काम करने की क्षमता विकसित करने का काम हो रहा है. ऐसे में ये भविष्यवाणी जा रही है कि वो दिन दूर नहीं जब एआई इतना स्मार्ट हो जाएगा कि इंसानों की जगह ले लेगा. अगर AI तकनीक का सही इस्तेमाल किया जाए तो इंसानी काम थोड़ा और आसान हो सकता है. लेकिन, अगर दुरुपयोग हुआ तो इंसानी सभ्यता के सामने बड़ा संकट पैदा हो सकता है .
Geoffrey Hinton की पहचान पूरी दुनिया में AI के गॉडफादर की है लेकिन, अब उनकी सोच है कि एआई का विकास इंसानों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है . अभी 100 में से 99 लोग बेहतर और स्मार्ट एआई बनाने की रेस में हैं तो एक स्मार्ट व्यक्ति इस पर काम कर रहा है कि इसे कैसे रोकना है…माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स की सोच है कि एआई हेल्थकेयर और एजुकेशन के क्षेत्र में असमानता कम करने में भी मददगार बन सकता है. वहीं, Open AI के CEO सैम ऑल्टमैन एआई के ख़तरों का जिक्र कई बार कर चुके हैं. उनकी दलील है कि तकनीक के नकारात्मक खतरों से बचाने के लिए International Atomic Energy Agency की तर्ज पर एक इंटरनेशनल एजेंसी बननी चाहिए… क्योंकि, सैम ऑल्टमैन को जेनरेटिव एआई एटम बम जैसी खतरनाक लग रही है . हालांकि, युवाल नोआ हरारी जैसे इतिहासकारों दलील देते हैं कि इंसान का अंत उस तरह नहीं होगा…जैसा परमाणु हथियारों से होता है . टेक्नोलॉजी में इतना बदलाव आएगा कि इंसान के सामने वजूद बचाने की बड़ी चुनौती आ सकती है. मतलब, तकनीक सबकुछ बदल देगी..सब बर्बाद कर सकती है . ऐसे में समझना जरूरी है कि भारत में एआई का इस्तेमाल किस तरह और कितना हो रहा है?
भारत की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक केस फैसले का इंतजाम कर रहे हैं . देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में भी 90 हजार से अधिक मामले लंबित हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट, न्यायिक प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए एआई और मशीन लर्निंग टूल्स का इस्तेमाल कर रहा है .
न्यायिक फैसला लेने में AI टूल या मशीन लर्निंग का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट में AI की एंट्री से केस फाइलिंग, अनुवाद और कानूनी रिसर्च में तेजी आने की उम्मीद है . ये उम्मीद जताई जा रही है कि न्यायपालिका में AI की एंट्री से एक तरह के मुकदमों की पहचान में मदद मिलेगी . इसी तरह खेती से लेकर स्वास्थ्य सेक्टर तक में बदलाव की स्क्रिप्ट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए तैयार करने की कोशिशें जारी है . एआई से बुआई-कटाई के सही समय का पता लगाने से लेकर मौसम के पैटर्न, मिट्टी की नमी, फसलों की बढ़ोत्तरी का विश्लेषण किया जा सकता है. AI सेंसर्स की मदद से फसलों को होने वाली बीमारी का भी समय से पता लगाया जा सकता है और समय पर दवा छिड़काव कर बड़े नुकसान से बचा जा सकता है .
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर मदद से भविष्य में होने वाली बीमारियों का पता लगाने की कोशिशें चल रही है, गिनती की टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर AI की मदद से भविष्यवाणी जा सकेगी कि आनेवाले 10 वर्षों में किसी का हार्ट सिस्टम कैसे काम करेगा ? हमारे देश में अब इस सोच के साथ लगातार काम किया जा रहा है कि AI के इस्तेमाल से स्वास्थ्य सुविधाओं को समाज के आखिरी आदमी तक किस तरह से पहुंचाया जा सके .
लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी एआई आधारित गलत टूल या स्वास्थ्य से जुड़े डाटा के इधर-उधर होने की स्थिति में किसी इंसान की जिंदगी खतरे में भी पड़ सकती है . जेनरेटिव AI के एडवांस वर्जन का बायोलॉजिकल या साइबर हथियार की तरह इस्तेमाल की आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता है . ऐसे में एआई के फायदा के साथ-साथ उससे पैदा होने वाले खतरे से निपटने के मैकेनिज्म पर भी काम करना भी जरूरी है .
दुनिया में सबसे अधिक युवा भारत में हैं. लेकिन, बड़ी सच्चाई ये भी है कि हमारी युवा वर्कफोर्स का बड़ा हिस्सा ग्लोबल जॉब मार्केट के हिसाब से स्किल्ड नहीं है . ऐसे में युवाओं को नई स्किल सिखाने से लेकर कामकाजी वर्कफोर्स को री-स्किल करने में AI बहुत मददगार साबित हो रहा है.शिक्षा के क्षेत्र में AI की मदद से छात्रों के व्यवहार और समझ का विश्लेषण करते हुए हर छात्र की क्षमता के हिसाब से पर्सनलाइज शिक्षा का इंतजाम करने पर काम चल रहा है. चैट बॉट को पर्सनल ट्यूटर की तरह इस्तेमाल होने लगा है. AI की मदद से असली समस्याओं को हल करने के लिए नए-नए रास्ते निकालने की कोशिशें लगातार जारी हैं . अपराधियों को पकड़ने से लेकर ट्रैफिक कंट्रोल तक में एआई का इस्तेमाल हो रहा है . फिलहाल, भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 90 करोड़ से एक अरब के बीच है, जिनके अगले दो साल में बढ़कर 120 करोड़ हो जाने का अनुमान है…ऐसे में लोगों की जिंदगी के हर हिस्से में AI की एंट्री और तेजी से बढ़ने की पूरी उम्मीद है .
दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है- वर्चुअल Vs रियल . दोनों के अपने-अपने नफा-नुकसान है. इंसान के दिमाग और कंप्यूटर में सबसे बड़ा अंतर ये है कि इंसानी दिमाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तुलना में बहुत धीमा है, इंसानी दिमाग की क्षमता यानी कंप्यूटर की भाषा में कहें तो स्टोरेज क्षमता सीमित है . लेकिन, इंसानी दिमाग जिस तरह सवाल कर सकता है. जितना क्रिएटिव है . वैसी क्षमता भी एआई में नहीं है . भले ही प्रोसेसिंग स्पीड, डेटा एनालिसिस, मल्टीटास्किंग में एआई के सामने इंसानी दिमाग कहीं नहीं टिकता. लेकिन, क्रिएटिविटी, मोरल एथिक्स, इमोशनल इंटेलिजेंस, कॉमन सेंस और क्रिटिकल थिंकिंग के मामले भी इंसानी दिमाग अभी जेनरेटिव एआई से बहुत आगे है . हालांकि, युआल नोवा हरारी जैसे इतिहासकार ये भी भविष्यवाणी कर रहे है कि AI रोबोट्स रिश्ता निभाने में अपना 100% इमोशन लगा सकते हैं यानी भविष्य में रोबोट सामने वाले को आकर्षित करने में इंसानों को पीछे छोड़ सकते हैं, AI की वजह से नौकरियों के स्वरूप में भी बदलाव तय है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने हाल में एक स्टडी किया. जिसके मुताबिक, 2030 तक एआई जॉब मार्केट को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा . कुछ नौकरियां बाजार से गायब हो जाएंगी तो एआई की वजह से नई नौकरियां भी पैदा होंगी?
सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इस बात पर गंभीरता से मंथन चल रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बड़े पैमाने पर नौकरियां खत्म करेगा. एक आंकड़े के मुताबिक, अक्टूबर 2025 में अमेरिका में 1,53,074 लोगों की नौकरी गई तो सितंबर महीने में 54,064 लोगों को कंपनियों ने बाहर का रास्ता दिखाया . इसमें बड़ी तादाद टेक कंपनियों से जुड़े कर्मचारियों की है.
कॉस्ट कटिंग यानी खर्चा कम करने के लिए टेक कंपनियां लगातार AI का इस्तेमाल बढ़ा रही हैं. ऐसे में AI के बढ़ते दखल की वजह से जॉब मार्केट में बड़े बदलाव की भविष्यवाणी की जा रही है .
ये सच है कि ऑटोमेशन और एआई की वजह से Job Market में बड़ी हचलच पैदा हुई है. फैक्ट्रियों में मजदूरों की जगह रोबोट के इस्तेमाल का चलन बढ़ रहा है . ऐसे क्षेत्र तलाशे जा रहे हैं- जहां इंसान की जगह जेनरेटिव एआई से लैस रोबोट से काम लिया जा सके . हाल में चाइना ने दुनिया का पहला रोबोट मॉल बनाया है,जिसका पूरा कामकाज ह्यूमनॉइड रोबोट्स ने ही संभाल रखा है. एक स्टडी के मुताबिक, चीन में रोबोट की संख्या 20 लाख से अधिक हो गई है . चीन में 2028 तक रोबोट की संख्या में 10% सालाना बढ़ोतरी का अनुमान है . 2024 में चीन के औद्योगिक रोबोट बाज़ार का मूल्य लगभग $6.31 बिलियन था. इसके 2032 तक $20.33 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है . चीन की कुछ कंपनियां सस्ते ह्यूमेनॉयड रोबोट बनाने में जुटी हैं . मेड इन चाइना ह्यूमेनॉयड रोबोट 5 लाख तक में भी मिलने लगे हैं .
जिस रफ्तार से जेनरेटिव एआई दफ्तर से लेकर घर तक लोगों की जिंदगी में जगह बनाता जा रहा है. वैसे में इंसान के मन में ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या आने वाले दिनों में AI उसकी नौकरियां खाएगा. फैक्ट्री से दफ्तर तक इंसान की जगह मशीन ले लेगी . इंसान भले ही डर रहा हो. लेकिन, खुद AI अपनी सीमाओं को कबूल करने में नहीं हिचक रहा है . जब एक एआई टूल से इस बारे में सवाल किया गया – तो जवाब आया, इंसानों के पास जो चीज AI से अलग है, वो है क्रिएटिविटी, इमोशनल समझ और कॉमन सेंस की गहराई. AI अभी भी डेटा और पैटर्न पर चलता है, वो अचानक से कोई बिल्कुल नया आइडिया नहीं ला सकता, न ही किसी के दुख को सचमुच महसूस कर सकता है. तो डॉक्टर, थेरपिस्ट, लीडर, या वो लोग जो जटिल फैसले लेते हैं, उनकी जगह लेना अभी AI के बस की बात नहीं . हां, कुछ नौकरियां कम होंगी, जैसे पहले मशीनों ने फैक्ट्री वर्कर्स को रिप्लेस किया था. लेकिन नए मौके भी बनेंगे, AI को बनाने, चलाने और इसके साथ काम करने के लिए इंसानों की जरूरत पड़ेगी. इतिहास बताता है कि टेक्नोलॉजी नौकरियां खत्म नहीं करती, बल्कि उन्हें बदल देती है.
एआई का हर तरह के जॉब मार्केट पर थोड़ा कम या अधिक असर पड़ने की संभावना है . इसमें आईटी और बीपीओ, मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल और ई-कॉमर्स, बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं, ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्सपर अधिक असर की भविष्यवाणी की जा रही है . हालांकि, ये भी अनुमान है कि 2030 तक भारत में AI से जुड़ी 10 से 15 लाख नई नौकरियां पैदा होंगी. ज्यादातर नौकरियों के लिए नए तरह की स्क्रिल की जरूरत होगी . लेकिन, कुछ नौकरियों पर हमेशा के लिए बाजार से गायब होने का खतरा मंडरा रहा है…ऐसे में तेजी से बदलती दुनिया में AI से डरने की नहीं. इसके विरोध की जरूरत नहीं. बल्कि नई तकनीक के साथ कदमताल करते हुए आगे बढ़ने में बेहतरी है .
एक बड़ा सच ये भी है कि एआई किसी की नौकरी नहीं खाएगा. बल्कि, जो लोग इसके इस्तेमाल में पीछे रह जाएंगे, उनकी जगह एआई में माहिर लोग जरूर ले लेंगे. ऐसे में तेजी से बदलती तकनीक के हिसाब से इंसान के सामने खुद को अपडेट और अपग्रेड करने की चुनौती लगातार बनी रहेगी. लेकिन, एक एआई के एक दूसरे पक्ष पर पूरी दुनिया को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है..क्योंकि, वो दिन दूर नहीं जब सड़कों पर एआई तकनीक से लैस ड्राइवरलेस गाड़ियां दौड़ती दिखेगी..ऐसे में अगर किसी तकनीकी ग्लिच की वजह से कोई सड़क हादसा होता है. तो उसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाएगा? अगर एआई से निकाली गई किसी गलत जानकारी के आधार पर कोई आर्टिकल लिखी गई और उस पर किसी ने आपत्ति जताते हुए मुकदमा दर्ज करा दिया गया, तो जेल किसे होगी ? अगर किसी शख्स ने एआई बेस्ड टूल से मिली एनालिसिस पर भरोसा करते हुए शेयर में निवेश किया और पैसा डूब गया. तो दोषी किसे माना जाएगा ? क्या जेनरेटिव एआई का एडवांस वर्जन इतना आगे बढ़ चुका है कि उसमें इंसान की तरह गलत-सही के बीच फैसला करने की क्षमता आ चुकी है? शायद अभी नहीं. लेकिन, आज का दौर एआई के विरोध का नहीं, बल्कि एआई के साथ कदमताल करते हुए आगे बढ़ने का है. तकनीक तब तक बेहतर और मददगार है, जब तक इंसान इसे कंट्रोल करेगा. जब तकनीक इंसान को कंट्रोल करने लगेगी तो खतरे का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.










