Bharat Ek Soch: राजनीति, संसदीय लोकतंत्र और चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले ज्यादातर लोगों के जेहन में एक ही सवाल घूम रहा है कि 2024 में क्या होगा? लोकसभा में बीजेपी को कितनी सीटें मिलेंगी? उत्तर भारत में जिस तरह की सियासी बयार दिख रही है, क्या वैसी ही स्थिति दक्षिण भारत में भी है? नेता वही सफल होता है– जिसे जमीन पर अपनी ताकत और कमजोरियों का सही-सही अंदाजा होता है?
बीजेपी महारथियों को भी अच्छी तरह पता है कि उत्तर भारत के राज्यों में जहां मोदी लहर बनी हुई है। वहीं, दक्षिण भारत के पांच बड़े राज्यों में से कहीं भी बीजेपी की सरकार नहीं है। बीजेपी के बड़े नेताओं को अंदाजा है कि देश के पश्चिमी हिस्से की समुद्री हवा कमल को सूट कर रही है, लेकिन पूर्वी हिस्से के दो बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल और ओडिशा में तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी को खासी कामयाबी नहीं मिल पाई है। बीजेपी ने 2024 के लिए नारा दिया है– तीसरी बार मोदी सरकार…अबकी बार 400 पार? लेकिन, क्या ये संभव है? राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। ऐसे में आज समझने की कोशिश करेंगे कि बीजेपी के 400 पार के सपने में कहां-कहां दिक्कतें आ सकती हैं? उत्तर भारत की तरह दक्षिण में बीजेपी को कामयाबी क्यों नहीं मिल पाई है? कर्नाटक और तेलंगाना के नतीजों के बाद अब हालात कितने बदले हैं? दक्षिण में बीजेपी के विजय रथ को लगेगा ब्रेक या मिलेगी रफ्तार? भारत एक सोच में आज ऐसे ही सवालों पर मंथन की कोशिश करेंगे– 2024 का उत्तर-दक्षिण में।
राजनीति और समय दोनों अपनी रफ्तार से आगे बढ़ते रहते हैं। राजनेता और सामान्य आदमी उसी प्रवाह में अपने लिए बेहतर संभावना तलाशता रहता है। बुद्धिजीवी और पॉलिटिकल पंडित नतीजों के हिसाब से तर्क गढ़ने का काम करते रहते हैं। ऐसे में 2024 का उत्तर-दक्षिण समझने के लिए दो घटनाओं का जिक्र जरूरी है। पहली 3 दिसंबर, 2023 को आए विधानसभा चुनाव के नतीजे…जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कमल खिल गया। वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस पर लोगों ने भरोसा किया। दूसरी घटना है- 22 जनवरी को अयोध्या में राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम। देश में अद्भुत, अविश्वसीनय और अकल्पनीय रामधुन महसूस की गई। इसका मतलब ये निकाला जा रहा है कि उत्तर भारत के राज्यों में बीजेपी के पक्ष में सुनामी चल रही है, लेकिन समाज की नब्ज टटोलने वाले पंडितों को अच्छी तरह पता है कि राम के नाम पर राजनीति का उत्तरकांड चल रहा है।
बीजेपी भी इस चीज को समझ रही है। शायद इसी वजह से 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में नीतीश कुमार के साथ गलबहियां करने में बीजेपी को 2024 की राह आसान दिखी, 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में बीजेपी को कमल के पक्ष में माहौल दिख रहा है। जहां हर सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई की स्क्रिप्ट तैयार है। एक सच ये भी है कि हिंदी पट्टी के राज्यों में बीजेपी अपने चरम बिंदु पर है। ऐसे में उत्तर भारत में 2019 की तुलना में बीजेपी के लिए सीटें बढ़ाना आसान नहीं है। मतलब, बीजेपी 400 पार के टारगेट को हासिल करने के लिए दक्षिण भारत की ओर देखना होगा। सबसे पहले बात करते हैं– कर्नाटक की। जहां बीजेपी कई बार सत्ता में रह चुकी है। फिलहाल, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में बीजेपी ने कर्नाटक पर खासतौर से फोकस किया है। वहां की कमान प्रदेश के दिग्गज नेता बी एस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को सौंप दी है। पार्टी के नाराज नेताओं की घर वापसी कराने का काम भी जारी है। ऐसे में सबसे पहले नक्शे पर दक्षिण भारत के समीकरण को समझते हैं।
2019 में कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से बीजेपी के खाते में 25 सीटें आईं थीं। इस बार हर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। सन्नाटे में चल रही पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर भी एनडीए के जहाज पर सवार हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीएस का प्रभाव और सिमट गया। ऐसे में जेडीएस अब बीजेपी के साथ गठबंधन में अपनी ताकत में इजाफे का हिसाब लगा रही है। इसी तरह तेलंगाना में कांग्रेस के रेवंत रेड्डी बीजेपी का विजय रथ रोकने के लिए डटे हुए हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से तेलंगाना में बीजेपी जिस तरह से मेहनत कर रही है- उसमें बीजेपी की कोशिश बीआरएस को पीछे छोड़ते हुए प्रदेश में दूसरे नंबर की पार्टी बनने की दिख रही है। सूबे की 17 लोकसभा सीटों में से 2019 में चार बीजेपी के खाते में आईं थी।
बीजेपी अभी नरेंद्र मोदी की गारंटी के घोड़े पर सवार है। बीजेपी के पास सबसे बड़ी गारंटी मोदी हैं। सबसे बड़े ब्रांड मोदी हैं। सबसे बड़ा चेहरा मोदी हैं। मोदी एक तरह से पूरी पार्टी बन चुके हैं। बीजेपी के नेता अक्सर विपक्षी दलों से सवाल पूछते रहते हैं मोदी नहीं तो कौन? ये सवाल बीजेपी के भीतर भी है कि मोदी नहीं तो कौन? फिलहाल, तो बीजेपी रणनीतिकार दक्षिण भारत के राज्यों में एक-एक वोट का हिसाब लगा रहे हैं।
उत्तर-दक्षिण की सामाजिक व्यवस्था, खान-पान, परंपरा, बोली और राजनीति में जमीन-आसमान का अंतर है। बीजेपी दक्षिण भारत के राज्यों में कमल खिलाने के प्लान पर लगातार काम कर रही है, लेकिन उत्तर भारत जैसी मौजूदगी के लिए अभी बहुत पसीना बहाना पड़ेगा। आंध्र में बीजेपी की मौजूदगी अभी बहुत कम है। पिछले कुछ वर्षों में सूबे की सियासत में जगनमोहन रेड्डी का कद बहुत बढ़ा है। जिसकी वजह से आंध्र प्रदेश में सियासी जमीन बचाने के लिए टीडीपी और कांग्रेस को बहुत पसीना बहाना पड़ रहा है। मतलब, बीजेपी के लिए आंध्र की राह में अभी बहुत कांटे दिख रहे हैं। इसी तरह तमिलनाडु के सियासी घमासान के बीच से बीजेपी अपने लिए संभावनाओं के खिड़की दरवाजे खुलते देख रही है। तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ एंगल सबसे ऊपर रहता है। वहां की राजनीति पर सीएन अन्नादुरई, एमजी रामचंद्रन, एम. करुणानिधि और जे. जयललिता का प्रभाव रहा है। जयललिता के निधन के बाद उनकी पार्टी AIADMK कई गुटों में बंट चुकी है…ऐसे में बीजेपी AIADMK में नाराज चल रहे नेताओं को अपने साथ जोड़ते हुए एक गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है। वहीं, बीजेपी को रोकने के लिए स्टालिन पूरी मजबूती के साथ डटे हुए हैं।
केरल की जमीन पर आरएसएस के स्वयंसेवक लंबे समय से काम कर रहे हैं। माना जा रहा है कि केरल के प्रभावशाली नायर समाज का झुकाव भी बीजेपी की ओर है। समय-समय पर वहां की सीपीएम सरकार को लेकर भी लोगों की नाराजगी सामने आती रही है। ऐसे में दो या तीन लोकसभा सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार कड़ी टक्कर देते दिख सकते हैं। केरल में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ने की भविष्यवाणी तो की जा रही है, लेकिन सीटों में तब्दील होने के चांस कम हैं। ऐसे में बीजेपी अपना दक्षिण से कनेक्शन जोड़ने के लिए पूरी शिद्दत से जुटी हुई है। अभी दक्षिण भारत के 6 राज्यों की लोकसभा सीटों को जोड़ दिया जाए तो 130 का आंकड़ा बैठता है। वहीं, सिर्फ उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की लोकसभा सीटों को ही जोड़ दिया जाए तो 136 हो जाती हैं। 2024 के बाद जब 2029 में लोकसभा चुनाव होगा…तो उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें कम होने का अनुमान है।
राजनीति Perception और Narrative के ईंधन से चलती है। बीजेपी रणनीतिकारों को अच्छी तरह पता है कि लोगों के दिल में जगह बनाने के लिए संवाद और मिलने-जुलने का सिलसिला लगातार बनाए रखना पड़ता है। काशी-तमिल संगमम के जरिए पीएम मोदी उत्तर और दक्षिण के बीच कनेक्शन जोड़ने की कोशिश करते दिखते हैं। वहीं, विपक्ष को लगता है कि दक्षिण भारत में मोदी के विजय रथ को रोका जा सकता है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में कई मौके ऐसे भी आए हैं– जब लोगों ने अपने वोट की चोट से सत्ताधारी पार्टियों को चौंकाया है। चाहे इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करना हो..चाहे 1984 के प्रचंड बहुमत के बाद 1989 में कांग्रेस की हार हो। चाहे शाइनिंग इंडिया और फील गुड फैक्टर के बाद भी वाजपेयी सरकार की सत्ता में वापसी न हो। ऐसे में 2024 को लेकर लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है? सरकार और विपक्ष की भूमिका को लोग किस तरह से देख रहे हैं। किस तरह की सरकार में अपना भविष्य चमकदार देख रहे हैं … उत्तर-दक्षिण के मिजाज से इतर लोगों का Idea of India क्या है? ऐसे ही कई सवालों के बीच से गुजरते हुए 2024 में उत्तर-दक्षिण का फैसला निर्भर करेगा?
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