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अग्निपथ स्कीम को लेकर असंतोष, सेना में भर्ती पर क्यों मचा बवाल?

Bharat Ek Soch: अग्निपथ योजना को लेकर बवाल मचा हुआ है। आखिर इसका फायदा क्या है? सेना से युवाओं को जोड़ने की ये योजना कितनी सफल हो सकती है? आइए जानते हैं।

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Jul 20, 2024 22:18
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Bharat Ek Soch
भारत एक सोच

 Bharat Ek Soch: किसी भी इंसान को घुटनों की अहमियत तब पता चलती है, जब उसे दूर तक पैदल जाना हो और घुटने जवाब दे चुके हों। किसी को पेट की अहमियत तब समझ में आती है- जब पाचन तंत्र जवाब देने लगता है और इंसानी शरीर के दूसरे अंगों को सुचारू रूप से काम करने के लिए ऊर्जा सप्लाई नहीं मिलती है। इसी तरह सेना की अहमियत सामान्य लोगों को तब समझ में आती है- जब कोई बाहरी ताकत आक्रमण करती है। आजादी के बाद भारत में अगर दिनों-दिन लोकतंत्र मजबूत और गणतंत्र बुलंद हुआ है, तो इसमें हमारी अति अनुशासित आर्मी का बड़ा रोल रहा है। लेकिन, दो साल पहले भारतीय सेना के तीनों अंग यानी आर्मी, एयरफोर्स और नेवी की भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव करने का फैसला हुआ।

अग्निपथ योजना शुरू की गई। सेना में भर्ती की इस योजना का विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया। माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की सीटें कम होने की एक बड़ी वजह सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना भी है। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने अग्निवीर को यूज एंड थ्रो मजदूर बताया। उनका कहना है कि इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो अग्निवीर योजना को खत्म कर दिया जाएगा। राहुल गांधी जैसी ही बात समाजवादी पार्टी के कर्ताधर्ता अखिलेश यादव भी कर रहे हैं।

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क्यों मचा बवाल? 

आखिर सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना को लेकर इतना बवाल क्यों मचा है? सेना में भर्ती का सिस्टम बदलने से किसे फायदा और किसे नुकसान होगा? सेना की भर्ती में बदलाव के मायने क्या हैं? हमारे देश में युवा किस सोच के साथ सेना से जुड़ते हैं? क्या अमेरिका, चाइना, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों की सेना में भी अग्निवीर हैं? महाशक्तियों को अग्निवीर जैसी भर्ती स्कीम से फायदा हुआ नुकसान? क्या अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना के जरिए भारतीय सेना में वैश्विक कार्यप्रणाली यानी Global Practice लागू करने की कोशिश हो रही है? कुछ ऐसे ही सवालों का जवाब जानने की कोशिश करेंगे।

अग्निवीर पर सबका अपना-अपना अग्निपथ है। सरकार का अलग, विपक्ष का अलग, सेना का अलग, सेना में नौकरी की ख्वाहिश रखने वाले युवाओं का अलग। लेकिन, एक बड़ा सच ये भी है कि बदलावों को कोई भी मौजूदा व्यवस्था आसानी से कुबूल नहीं करती है। जरा याद कीजिए 1980 के दशक में कंप्यूटर का कितना प्रचंड विरोध हुआ। 1990 के दशक में LPG मतलब Liberalization, Privatization और Globalization का कितना तीखा विरोध हुआ। लेकिन, ये भी किसी से छिपा नहीं है कि इन बदलावों की वजह से देश के सामान्य आदमी की जिंदगी में क्रांतिकारी बदलाव हुए। ऐसे में सेना में भर्ती की अग्निपथ स्कीम को भी अलग-अलग चश्मे से देखने की जरूरत है। दुनिया के जिन देशों में सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ जैसी स्कीम चल रही है- वहां नतीजा कैसा रहा? इसे भी जानना और समझना जरूरी है। ये भी देखना होगा कि वहां के हालात और हमारे देश के हालात में कितना अंतर है? ऐसे में सबसे पहले बात अग्निवीर पर सरकार के अग्निपथ की।

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बदल रही हैं सरहद की चुनौतियां 

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप चुनावी राजनीति का हिस्सा है और ये संसदीय लोकतंत्र की गाड़ी को आगे बढ़ाने में ईंधन की भूमिका निभाते हैं। अग्निपथ भर्ती स्कीम पर विपक्ष को सरकार की नीति में कई बड़ी खामियां दिख रही हैं। वहीं, सत्ता पक्ष की दलील है कि सरहद की चुनौतियां बदली है। युद्ध का तौर- तरीका बदला है। दिनों-दिन तकनीक में आ रहे बदलावों ने मिलिट्री ऑपरेशन्स को और मुश्किल बना दिया है। अब मिलिट्री ऑपरेशन में कई तरह के पेशेवर हुनर की जरूरत पड़ती है। ऐसे में अग्निपथ योजना के जरिए सेना में ऐसे युवाओं को जोड़ने की योजना दिख रही है- जो लंबे समय तक सेना में काम नहीं करना चाहते, लेकिन कुछ साल तक सेना की वर्दी पहन कर देश सेवा की ख्वाहिश रखते हैं।

क्या युवाओं में है नाराजगी? 

सरहद की नई चुनौतियों से निपटने के लिए आर्मी को टेक्नो-फ्रेडली युवाओं की जरूरत है। ऐसे में STEM यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स बैकग्राउंड वाले काबिल नौजवानों को आर्मी, नेवी, एयरफोर्स से जुड़कर देश सेवा का मौका मिलेगा। लेकिन, अग्निपथ स्कीम को सेना के जवानों में भेद करने वाली योजना भी बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि ये योजना एक साथ मोर्चे पर सरहद की चुनौतियों से निपटन रहे फौजियों में भेदभाव करती है। ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना से जवानों के बीच कहां-कहां अंतर महसूस किया जा रहा है? क्या अग्निपथ स्कीम की वजह से देश के युवाओं का सेना की नौकरी से मन खट्टा हुआ है?

कभी दुनिया के ज्यादातर देशों में मिलिट्री सर्विस अनिवार्य हुआ करता थी, वहीं भारत में कभी इसकी जरूरत ही महसूस नहीं की गई। हमारे देश के लोग सेना से जुड़ने में अपनी शान समझते थे। शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा पर बराबर का जोर रहता था। ये परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही थी। ऐसे में भारत में सेना में भर्ती के लिए कभी हुक्मरानों को संघर्ष नहीं करना पड़ा।

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दूसरी ओर, 1960 के दशक में जॉब मार्केट में आते बदलावों के साथ ही पश्चिमी देशों के युवाओं की सरकारी नौकरी से निर्भरता कम होने लगी। सेना में लंबी सर्विस के लिए जाने से नौजवान हिचकने लगे। ऐसे में यूरोपीय देशों में सेना के लिए योग्य उम्मीदवारों को जोड़ना और जोड़े रखना बहुत मुश्किल हो गया।

नौकरी के विकल्प

अमेरिका में भी ऐसा ही हो रहा था। फौज की नौकरी छोड़ने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी। वियतनाम युद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका में अनिवार्य मिलिट्री सर्विस की जगह Voluntary Recruitment को बढ़ावा देने का रास्ता निकाला जाने लगा। Short Period की सेना में नौकरी के विकल्प खोजे जाने लगे अमेरिकी संसद ने साल 2003 में नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट के तहत नेशनल कॉल टू सर्विस कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत भर्ती युवाओं को आठ साल सर्विस का विकल्प दिया गया। दो साल एक्टिव ड्यूटी…चार साल रिजर्व ड्यूटी और आखिर के दो साल रेडी रिजर्व ड्यूटी। अमेरिकी सेना ने जरूरत के हिसाब से ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किया। इसी तरह फ्रांस की सेना में शॉर्ट टर्म पीरियड के लिए होने वाली भर्तियों में दो विकल्प हैं- एक Voluntary, दूसरा NCO यानी नॉन कमीशंड ऑफिसर। वहीं, ब्रिटेन में 16 साल से ऊपर से युवा कम से कम चार साल के लिए सेना में भर्ती हो सकते हैं। ऐसे में आर्मी में शॉट टर्म भर्ती के ग्लोबल मैकेनिज्म को समझना जरूरी है।

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सेना में शॉर्ट टर्म सर्विस को लेकर अमेरिका की अपनी सोच रही है। रूस और चीन का अपना रास्ता रहा है। यूरोपीय देशों ने अपनी जरूरतों के हिसाब से अग्निपथ जैसी योजनाएं शुरू कीं, तो दुनिया के नक्शे पर इजराइल जैसे देश भी हैं- जहां पुरुष और महिला दोनों के लिए मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है। सेना में शॉर्ट टर्म सर्विस को लेकर सबका अपना-अपना खट्टा-मीठा अनुभव है। लेकिन, भारत की चुनौतियां अलग तरह की हैं। पश्चिम में पाकिस्तान है और उत्तर पूर्व में चाइना जैसा खुराफाती पड़ोसी।

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50 हजार से अधिक अग्निवीर

ऐसे में टू फ्रंट वॉर की आशंका हमेशा बनी रहती है। तकनीक ने पारंपरिक युद्ध के तौर-तरीकों को बहुत हद तक बदल दिया है। आज के फौजियों को बंदूक चलाने के साथ-साथ सायबर वॉरफेयर में भी महारत हासिल करना होगा और अधिक टेक्नोफ्रेंडली युवा भारतीय सेना की नई ताकत बन सकते हैं। संभवत:, एक नई सोच के साथ आजादी के 75वें साल में सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना की शुरुआत हुई। अग्निवीर के वर्तमान और भविष्य को लेकर कई तरह की बातें हुईं। इसके बावजूद कड़ी ट्रेनिंग लेकर 50 हजार से अधिक अग्निवीर थल, जल और नभ में भारतीय सरहद की निगहबानी कर रहे हैं। मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण उसी तरह न्यौछावर कर रहे हैं, जैसे रेगुलर आर्मी के शूरवीर करते रहे हैं। कोई भी योजना कभी मुकम्मल नहीं होती है। हमेशा के लिए नहीं होती है। समय के साथ उसकी खामियां और खूबियां सामने आती हैं। ऐसे में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के भीतर भी अग्निवीरों के मन में उठ रहे सवालों पर गंभीरता से मंथन हो रहा होगा। फील्ड कमांडरों से अग्निवीर के प्रदर्शन को लेकर फीडबैक लेने के साथ सुधार की गुंजाइश पर काम चल रहा होगा।

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Written By

Pushpendra Sharma

First published on: Jul 20, 2024 10:16 PM

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