शालिग्राम की पूजा में इन नियमों का रखना होता है ध्यान, अन्यथा नुकसान होते देर नहीं लगती
Shaligram Puja Niyam: अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का उद्घाटन अगले वर्ष होना है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम की मूर्ति स्थापित की जाएगी। इसके लिए नेपाल से विशेष रूप से चुन कर शालिग्राम शिलाएं भारत लाई गई हैं। बताया जा रहा है कि ये शिलाएं लगभग 6 करोड़ वर्ष पुरानी हैं। इन शिलाओं में वे सभी गुण हैं जो भगवान की प्रतिमा बनाने के लिए आवश्यक बताए गए हैं।
ज्योतिषी एम. एस. लालपुरिया के अनुसार शालिग्राम को पुराणों में भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है। यही कारण है कि भगवान विष्णु तथा उनके अवतारों की प्रतिमा निर्मित करने के लिए शालिग्राम पत्थर को ही प्रमुखता दी जाती है। बहुत कम लोग जानते हैं कि घरों में भी शालिग्राम पत्थर रखने का अत्यधिक महत्व बताया गया है। जानिए इस बारे में
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क्या होता है शालिग्राम पत्थर
यह वास्तव में नदी में पाए जाने विशेष पत्थर हैं। नदी की धारा के साथ बहते-बहते ये गोल, चिकने और चमकीले बन जाते हैं। यह हर साइज में मिलते हैं। पुराणों के अनुसार शालिग्राम मुख्यतया नेपाल की गंडकी नदी में ही पाए जाते हैं। इनका रंग काला या धूम्र वर्ण होता है। पवित्र होने के काऱण इन्हें घर के पूजा स्थल में रखा जाता है। इनकी भी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
घर में शालिग्राम रखने के नियम (Shaligram Puja Niyam)
शालिग्राम पत्थऱ को आप अपने नजदीकी किसी भी पूजा-पाठ की दुकान पर जाकर ला सकते हैं। इसकी पूजा-अर्चना भी पूर्णतया भगवान विष्णु के विग्रह समान ही की जाती है। अतः इसे घर में लाने के लिए भी कुछ नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालना करना आवश्यक है। जानिए इन नियमों के बारे में
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- यदि आप घर में शालिग्राम ला रहे हैं तो सबसे पहले यह देख लें कि उसमें कोई दोष तो नहीं है। शालिग्राम पत्थऱ टूटा-फूटा या दरारयुक्त न हों, उसमें किसी प्रकार का कोई छेद न हों। वह दिखने में पूर्णतया चिकना, चमकदार तथा आकर्षक होना चाहिए।
- शालिग्राम की पूजा करने से पहले उसकी विधिवत स्थापना करवानी चाहिए। इसके बाद ही उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है। तभी पूजा का लाभ मिलता है, बिना प्राण-प्रतिष्ठा के शालिग्राम की पूजा न करें। एक बार स्थापना के बाद प्रतिदिन पूजा होनी चाहिए। घर में मृत्यु, सूतक आदि लगने पर किसी अन्य से पूजा करवाएं।
- शालिग्राम की पूजा करते समय उस पर भगवान विष्णु के समान ही पीले चंदन का तिलक लगाएं। भोग लगाते समय उसमें तुलसी पत्र भी अवश्य रखें। यदि संभव हो तो शालिग्राम को रखने के लिए एक सुंदर सा आसन भी निर्मित करवाएं, जिस पर इसे विराजमान करवाएं।
- शास्त्रों के अनुसार रजस्वला होने की उम्र में महिलाओं को शालिग्राम की पूजा नहीं करनी चाहिए। अर्थात् ऐसी कन्या जिसका मासिक धर्म शुरू नहीं हुआ हो और वे महिलाएं जिनका मासिक धर्म बंद हो चुका है, केवल वहीं इसकी पूजा कर सकती हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
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